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इस मानसिकता की मौजूदगी के मायने

जागरण मेहमान कोना
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पंजाब सरकार में मंत्री रही बीवी जागीर कौर पर बेटी हरप्रीत कौर को बंधक बनाने, जबरत गर्भपात कराने तथा हत्या की साजिश रचने के आरोप में उन्हें जेल भेज दिया गया। हालांकि हत्या के आरोप से वह बरी हो गई हैं। दरअसल उनकी बेटी हरप्रीत कौर ने एक ऐसे युवक कमलजीत से अंतरजातीय विवाह किया था जो सामाजिक सोपानक्रम में निचली जाति से संबंधित था। बावजूद इसके हरप्रीत ने चंडीगढ़ में कमलजीत से शादी कर ली। बाद में जब हरप्रीत के गर्भवती होने का पता जागीर कौर को चला तो उन्होंने उसे घर में नजरबंद कर दिया और गुपचुप तरीके से गर्भपात करवाने की कोशिश में उनकी बेटी की जान चली गई। इस मामले को दबाने के लिए जागीर कौर ने भरसक कोशिश की, लेकिन बाद में हरप्रीत के पति कमलजीत ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया तब जाकर सीबीआइ ने मामला दर्ज किया। जागीर कौर एवं उनके करीबी सहयोगियों द्वारा अंजाम दी गई इस घटना के कई ऐसे पहलू हैं जिन पर अभी बात होना संभव नहीं है। इस मामले में गवाह बने डॉ. बलविंदर सिंह सोहल एवं संजीव कुमार की 2006 एवं दिसंबर 2011 में सड़क दुर्घटना में हुई मौत ऐसा ही अहम पहलू है? क्या यह मौतें बिल्कुल स्वाभाविक थीं या उसमें भी कुछ संदेहास्पद था। बहरहाल सत्तासंपन्न शख्यियत पर कार्रवाई समाज में ऐसे अपराध करने वाले तथा इस प्रकार की मानसिकता रखने वालों के लिए विशेष संदेश देता है।


हालांकि दोषसिद्ध होने में 12 साल लग गए और अभी भी जागीर कौर ने इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने की बात कही है। वैसे इन दिनों यही बात सुर्खियां बन रही हैं कि किस शाही अंदाज में उन्हें जेल में रखा गया है। जेल में उनके आगमन पर जिस तरह जेल के चंद वरिष्ठ अधिकारियों ने उनके पैर छुए, उनकी कोठी में जिस तरह तत्काल एसी, एलसीडी टीवी का इंतजाम किया गया, उसके बारे में अखबारों में आ चुका है। विडंबना यही है कि बेटी के अपहरण, हत्या आदि में उनके नाम की चर्चा होने के बावजूद उन्होंने कपूरथला की मुलत्थ सीट से विधायक के रूप में जीत हासिल की। उनके रुतबे में कोई कमी नहीं आई है। वह शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में भी पदासीन थीं। कहीं न कहीं यह लोगों की मानसिकता को प्रतिबिंबित करता है जिनके बीच उनकी स्वीकार्यता अभी भी बनी हुई है। सवाल यह है कि यदि आगे की कानूनी कार्रवाइयों में उन्हें को‌र्इ्र राहत नहीं मिलती है और अपनी पांच साल की कैद की सजा काटकर वह बाहर आती हैं तो समाज उन्हें अपनी नजर में दोषी ठहराता है या नहीं।


आज जागीर कौर प्रकरण का विश्लेषण इसलिए अहम है, क्योंकि कथित इज्जत के लिए परिवार वालों द्वारा युवाओं का उत्पीड़न उनके मानवाधिकारों का हनन तथा हत्या जैसे कृत्य भारत में खासतौर पर पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हल्कों में गंभीर सामाजिक समस्या बने हुए हैं। ऐसा नहीं है कि अन्य राज्यों में ऐसी घटनाएं नहीं होती हैं, लेकिन ये इलाके ऐसी हत्याओं में और उसे मिली सामाजिक वैधता के मामले में सबसे आगे हंै। आंकड़े बताते हैं कि हरियाणा में हत्याओं में 10 प्रतिशत मामले इज्जत की खातिर होते हैं। जब घर वाले अपने बच्चों को इज्जत में बट्टा लगते देखते हैं तो वे बच्चों को मौत के घाट उतार देते हैं। हरियाणा के करनाल घटना में भी देखने को मिला जिसमें अपनी प्रेमी के साथ खुशी-खुशी सहजीवन बिता रही बेटी और उसके प्रेमी का दूसरे गांव से अपहरण कर उसे अपने गांव लाया गया और वहीं पीट-पीटकर मार डाला गया।


बेटी के हत्यारे परिवारजनों ने दोनों की लाशों को काफी देर तक अपने घर के सामने ही रखा ताकि समूचे गांव का कोई युवक या युवती भविष्य में ऐसी हिमाकत न करे। इतना ही नहीं गांव की पंचायत ने भी मीटिंग बुलाकर इस पर मुहर लगाई। यही नहीं, बाद में 36 गांवों की पंचायत हुई, जिसमें लोगों ने मंच से कहा कि जो हुआ, वह अच्छा हुआ। लड़की की मां से जब मीडिया वालों ने पूछा तो उसने कहा कि वह इसी के लायक थी। ऐसी ही घटना कुछ दिन पहले दिल्ली से भी सुनाई दी जहां अपनी मर्जी से विवाह कर रह रहे युवक एवं युवती को मार कर और फिर उनकी लाश को बोरे में भरकर नजफगढ़ के पास नहर में फेंक दिया गया। अमृतसर की राजदीप कौर ने भागकर मनवीर सिंह से शादी कर ली थी और उत्तराखंड के बाजपुर में हंसी-खुशी रह रहे थे। राजदीप के पिता स्वर्णसिंह उनके ठिकाने का पता लगाकर हथियारों से लैस होकर वहां पहुंचे तथा राजदीप को घर लाए और उसी रात बेटी का गला घोंटकर मार दिया। पितृसत्तात्मक समाज में स्ति्रयों का जिस तरह बचपन से समाजीकरण होता है।


स्त्री-पुरुष के लैंगिक भेद की बात करते हुए उनके बीच आपस में सामाजिक भेद कायम किया जाता है और उसी आधार पर उनका निर्माण होता है। चर्चित फ्रांसीसी दार्शनिक एवं लेखिका सीमोन द बुवा ने अपनी विश्वविख्यात किताब द सेकंड सेक्स में इस स्थिति का निचोड़ पेश किया है। वह लिखती हैं कि स्त्री जनमती नहीं है, बल्कि बनाई जाती है। इसका प्रतिबिंबन उन भूमिकाओं में भी नजर आता है जो बचपन से उन्हें सौंपी जाती है। ऑनर किलिंग की तरह अपनी ही कोख को सूना कर देने में भी महिलाओं के आगे रहने के समाचार समय-समय पर मिलते हैं। गर्भजलपरीक्षण के जरिये लिंग जानकर गर्भावस्था में ही कन्या भ्रूण को खत्म करने में महिलाएं शामिल होती हैं। जातिगत श्रेणियों में बंटा हमारा समाज कितना असभ्य, क्रूर और पिछड़ा है, उसी का प्रमाण है कि व्यक्तियों के व्यक्तिगत और नागरिक अधिकारों का हनन गर्वपूर्ण माहौल में डंका बजाकर किया जाता है। संतान सिर्फ संतान नहीं होती। वह इंसान व नागरिक भी होती है।


दरअसल, हमारे समाज में व्यक्ति के व्यक्तिगत अधिकारों के प्रति चेतना का स्तर लोगों मे अभी काफी पीछे है। देखने और बोलने में आधुनिक लगने वाले भी कबीलाई मानसिकता के होते हंै, जो मौका मिलते ही धावा बोल देते हैं। किसी भी प्रकार की असहमति के सर्वसामान्य व्यवहार और स्वीकृति का अभाव सामाजिक-पारिवारिक वातावरण में आम लगता है। यह बात समझी जा सकती है कि संतानों का हर व्यवहार जरूरी नहीं है कि मां-बाप या घर वालों को सही लगे या पसंद आए। सहमति-असहमति या पसंदगी-नापसंदगी मां-बाप का भी अधिकार है और वे इस आधार पर बच्चों के साथ अपना संबंध तय कर सकते हैं। लेकिन अपनी संतानों के निजी मामलों में मौत जैसी कार्रवाई का अधिकार किसी को कैसे हासिल हो सकता है। इसमें पचायतों को कहां से अधिकार मिल जाता है। यह सब तो व्यक्ति के व्यक्तिगत अधिकारों का हनन है फिर भले ही कोई उस व्यक्ति के व्यवहार से असहमत हो। जागीर कौर को सजा मिली मगर समाज में जो मानसिकता मौजूद है, उस पर लंबा रास्ता अभी तय करना शेष है।


लेखिका अंजलि सिन्हा स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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