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लैब में खतरनाक वायरस

जागरण मेहमान कोना
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हालैंड के वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में बर्ड फ्लू की एक ऐसी घातक किस्म विकसित की है जो लाखों लोगों को संक्रमित कर उनकी जान ले सकती है। ये वैज्ञानिक अब अपनी रिसर्च को प्रकाशित करना चाहते हैं। इससे पश्चिमी देश काफी विचलित हो गए हैं। उन्हें डर है कि आतंकवादी इस रिसर्च के विवरणों का गलत इस्तेमाल कर जनसंहारक जैविक हथियार विकसित कर सकते हैं। कुछ वैज्ञानिकों को इस बात पर आश्चर्य है कि इस विवादस्पद रिसर्च के लिए किसी विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला को कैसे चुना गया? अमेरिकी सरकार के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक सलाहकार का कहना है कि प्रयोगशाला में विकसित वायरस महामारी फैला सकता है और दुनिया के लिए इसके नतीजे भयंकर हो सकते हैं। डच वैज्ञानिकों ने बर्ड फ्लू के एच5एन1 वायरस में एक ऐसा परिवर्तन कर दिया है जिससे वह खांसी या छींक के जरिये आसानी से हवा में फैल सकता है। अभी तक यह माना जाता था कि एच5एन1 बर्ड फ्लू बहुत करीबी संपर्क से ही एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचता है। इस विवादस्पद रिसर्च के पीछे वैज्ञानिकों का उद्देश्य यह जानने का था कि एच5एन1 वायरस में आनुवंशिक परिवर्तन करके उसे अत्यंत संक्रामक फ्लू में कैसे बदला जा सकता है। उनका मानना है कि रिसर्च के नतीजों का उपयोग नई दवाओं और टीकों के विकास के लिए किया जा सकता है। लेकिन आलोचकों का कहना है कि डच वैज्ञानिकों ने फ्लू की अत्यंत घातक किस्म को विकसित करके पूरी दुनिया को खतरे में डाल दिया है।


बर्ड फ्लू का एच5एन1 वायरस पहली बार 1996 में प्रकट हुआ था। तब से यह अब तक लाखों पक्षियों की जान ले चुका है। इसने अभी तक करीब 600 लोगों को संक्रमित किया है जो फ्लू संक्रमित पोल्ट्री के सीधे संपर्क में आए थे। एच5एन1 किस्म आधुनिक इतिहास में फ्लू की सर्वाधिक घातक किस्मों में से है। नई रिसर्च का ब्यौरा इतना संवेदनशील है कि अमेरिकी सरकार के जैव सुरक्षा संबंधी सलाहकार बोर्ड ने खुद इसकी जांच की है। बोर्ड ने अमेरिकी सरकार से कहा है कि यदि एच5एन1 वायरस के संपूर्ण जीन क्रम का ब्यौरा सार्वजनिक रूप से प्रकाशित कर दिया जाए तो आतंकवादी संगठन इसका गलत इस्तेमाल कर सकते हैं। बोर्ड ने अब प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिकाओं, नेचर और साइंस से कहा है कि वे रिसर्च के ब्योरे को सेंसर करें और सिर्फ संशोधित विवरण को ही प्रकाशित करें। ये पत्रिकाएं इस हिदायत का प्रतिरोध कर रही हैं। एक वरिष्ठ अमेरिकी वैज्ञानिक का कहना है कि विज्ञान के कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां सूचनाओं को नियंत्रित करना जरूरी है। जीव विज्ञान के समक्ष ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं आई। नए दौर में ज्यादा सतर्कता बरतने की जरूरत है। लेकिन वैज्ञानिकों के दूसरे तबके का कहना है कि इस तरह की पाबंदियों से बर्ड फ्लू के टीके के विकास में बाधा आएगी।


फ्लू वायरस पर रिसर्च करने वाली डच टीम का नेतृत्व रोटरडम स्थित इरासमस मेडिकल सेंटर के वैज्ञानिक रोन फुचियर ने किया है। उनका कहना है कि एच5एन1 वायरस को ऐसे वायरस में आसानी से बदला जा सकता है जो तेजी से हवा में फैल सकता है। उन्होंने अपने प्रयोगों को उचित बताते हुए यह तर्क दिया कि महामारी फैलने की स्थिति में हमें यह पहले से मालूम रहेगा कि कौन सा जीन परिवर्तन इसके लिए जिम्मेदार है। इससे हम बीमारी को और ज्यादा फैलने से रोक सकते हैं। इसके अलावा रिसर्च के निष्कषरें से समय रहते प्रभावी टीकों का विकास करने और सही इलाज करने में मदद मिलेगी। फुचियर फ्लू वायरस को विकसित करने वाले अकेले वैज्ञानिक नहीं हैं। योशिहीरो क्वाओका के नेतृत्व में विस्कांसिन और टोक्यो विश्वविद्यालयों के रिसर्चरों की दूसरी टीम ने भी इसी तरह की रिसर्च की है जिसके नतीजे फुचियर के नतीजों से मिलते जुलते है। इससे यह पता चलता है कि प्रयोगशाला में सुपर वायरस निर्मित करना कितना आसान है।


लेखक मुकुल व्यास स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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