- 1877 Posts
- 341 Comments
कहते हैं कि बिना वक्त की शहनाई अच्छी नहीं लगती, लेकिन अन्ना हजारे और भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी को लगता है कि वे जब भी कुछ करेंगे, उन्हें अथाह जनसमर्थन मिलेगा। पता नहीं यह खुशफहमी उन लोगों ने क्यों पाल रखी है। आडवाणी की जन चेतना यात्रा और अन्ना का हिसार उपचुनाव में कांग्रेस का विरोध उसी बिना वक्त की शहनाई की बात की पुष्टि करता है। हिसार के उपचुनाव में कांग्रेस का विरोध कर अन्ना ने अपनी भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को निश्चित तौर पर कुंद कर दिया है। अन्ना ने कहा था कि उनका अभियान भ्रष्टाचार के खिलाफ है, न कि किसी पार्टी विशेष के खिलाफ। लेकिन अन्ना ने हिसार में कांग्रेस का विरोध कर यह जतला दिया है कि वे गांधी टोपी तो पहन सकते हैं, लेकिन गांधी नहीं हो सकते। वह गांधी, जो कहा करते थे कि पाप से घृणा करो, पापी से नहीं।
सवाल यह उठता है कि जब मनमोहन सरकार की ओर से बार-बार यह कहा जा चुका था कि संसद के शीतकालीन सत्र में लोकपाल विधेयक पेश किया जाएगा तो फिर हिसार के उपचुनाव में कांग्रेस का विरोध करने का औचित्य क्या था? क्या अन्ना यह बताएंगे कि राजनीतिक पार्टियों में बाकी सब दूध के धुले हैं और सिर्फ कांग्रेस ही बेईमान है? उसी तरह भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ अपनी रथयात्रा पर निकले आडवाणी आज मुंह के बल गिर पड़े हैं। अपने चालीस दिनों की यात्रा में महज एक सप्ताह बीतते-बीतते यानी 15 अक्टूबर को कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येद्दयुरप्पा जमीन घोटाले में जेल पहुंच गए। भ्रष्टाचार के इस गंभीर आरोप में येद्दयुरप्पा का जेल जाना भाजपा और आडवाणी के तथाकथित देश व्यापी भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को झकझोर कर रख दिया है। सवाल यह उठता है कि क्या आडवाणी की यह रथयात्रा सही और मुनासिब वक्त पर निकाली गई थी? बिल्कुल नहीं। क्या आडवाणी को पता नहीं है कि ख़ुद उनकी पार्टी भ्रष्टाचार के मामले में चौतरफा घिरी है?
आडवाणी की इस यात्रा को लेकर ख़ुद पार्टी के अंदर ही मतभेद था कि इस यात्रा के लिए यह मुनासिब वक्त नहीं है। यही नहीं, पार्टी के कद्दावर नेता व गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस यात्रा का विरोध किया था। चूंकि मोदी की महत्वाकांक्षा भी प्रधानमंत्री की कुर्सी तक जा पहुंची है, इसलिए उन्होंने न सिर्फ इसका विरोध किया, बल्कि गुजरात से यात्रा शुरू करने पर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। नतीजतन, आडवाणी को जेपी की जन्मस्थली सिताबदियारा को चुनना पड़ा। यह कहकर कि जेपी ने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ बिहार से बिगुल फूंका था। इसलिए वह भी बिहार से यात्रा शुरू कर रहे हैं। अपनी पार्टी के भीतर इतने विरोध के बावज़ूद आडवाणी ने अपनी रथयात्रा निकाली, क्योंकि प्रधानमंत्री बनने की असीम लालसा ने उन्हें इस रथयात्रा के लिए मजबूर किया, यह जानते हुए कि संघ उन्हें प्रधानमंत्री बनाना नहीं चाहता और खुद उनकी पार्टी भ्रष्टाचार के दलदल में फंसी है। क्या आडवाणी को पता नहीं कि येद्दयुरप्पा भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप से घिरे हैं और उन्होंने तब अपनी कुर्सी छोड़ी, जब लोकायुक्त की रिपोर्ट में उन्हें दोषी ठहराया गया। इसके पहले तो उन्होंने पार्टी आलाकमान को खूब छकाया।
क्या आडवाणी को बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं के बारे में नहीं मालूम है कि वे माइनिंग माफिया हैं और करोड़ों-अरबों के अवैध खनन के गंभीर आरोप में वे जेल की हवा खा रहे हैं और ये वही रेड्डी बंधु हैं, जो सोने के सिंहासन पर बैठते रहे हैं और चांदी की थाली में खाना खाते रहे हैं। यही नहीं, आडवाणी की इस रथयात्रा के जो राष्ट्रीय संयोजक अनंत कुमार हैं, उन पर भी भ्रष्टाचार के आरोप हैं। इसी आरोप में वह मुख्यमंत्री नहीं बन सके, लेकिन वे आडवाणी की जनचेतना यात्रा में साथ-साथ घूम रहे हैं। इसी तरह उत्तराखंड के मुख्यमंत्री निशंक को भ्रष्टाचार के आरोप में कुर्सी गंवानी पड़ी। इसके पहले भी भाजपा के कई सांसदों व मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग चुके हैं, लेकिन अपने चेहरे के दाग को साफ करने के पहले आडवाणी लगे दूसरे के चेहरे के दाग को बताने और खुद फंस गए बीच यात्रा में, जब येद्दयुरप्पा पहुंच गए जेल। इसी तरह अन्ना हजारे ने हिसार में कांग्रेस का विरोध कर यह जतला दिया है कि वे चंद हाथों की कठपुतलियां बने हुए हैं। दरअसल, गांधी बनने के लिए उन्हें अभी कठिन तप और त्याग के साथ गंभीर आत्ममंथन की जरूरत है।
लेखक नीलांशु रंजन स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
Read Comments