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पदाधिकारी, बीसीसीआइ कैबिनेट ने प्रस्तावित खेल विधेयक को खारिज कर दिया और इसमें बदलाव लाने को कहा है। इससे बीसीसीआइ के लिए खुश होने वाली कोई बात नहीं है। इस विधेयक को तैयार करने के समय हमारी ओर से अरुण जेटली जी दूसरे खेल संघों के पदाधिकारियों के साथ खेल मंत्री महोदय से मिले थे। तब हम लोगों ने सरकार को हर पहलू पर अपना नजरिया स्पष्ट करते हुए बताया था कि हम क्यों सरकार के अधीन नहीं आ सकते। बावजूद इसके खेल मंत्रालय ने अपने नजरिए में बदलाव लाए बिना बीसीसीआइ की कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप करने की कोशिश की। लिहाजा, यह विधेयक कैबिनेट में खारिज हो गया।
मौजूदा विधेयक में सबसे बड़ा विवाद बीसीसीआइ को आरटीआइ के अधीन करने या नहीं करने का भी उठ रहा है। अगर बीसीसीआइ को आरटीआइ के तहत लाया जाता है तो कुछ व्यावहारिक मुश्किलें भी खड़ी हो सकती हैं। मान लीजिए कि किसी ने पूछ लिया कि इंग्लैंड दौरे पर आठ खिलाड़ी कैसे घायल हो गए तो बीसीसीआइ इसका क्या जवाब देगी। लेकिन इन व्यवहारिक दिक्कतों के बावजूद हम लोग यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि आरटीआइ के अधीन आने से बीसीसीआइ को कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन यह सरकार का ही नियम है, जो संस्था सरकार से कोई अनुदान नहीं लेती है, उसे आरटीआइ के अधीन नहीं लाया जा सकता। हम सरकार से कोई अनुदान नहीं लेते हैं। लिहाजा, हमें भी आरटीआइ के दायरे में नहीं होना चाहिए। यह सरकार का ही कानून कहता है। बहरहाल, हम सरकार के उस मकसद का समर्थन कर रहे हैं, जिसमें वह खेल संघों में पारदर्शिता लाने की बात कह रही है। खेल मंत्रालय अभी प्रावधान बना रहा है, जबकि प्रस्तावित विधेयक में से ज्यादातर प्रावधान बीसीसीआइ में पहले से लागू हैं। अगर आप बीसीसीआइ की कार्यप्रणाली को देखेंगे तो पाएंगे कि यहां हर काम पारदर्शिता के साथ ही होता है। मसलन, हमारे प्रतिनिधियों और कार्यालय के पदाधिकारियों का चुनाव हर चौथे साल में होता है। और ज्यादा से ज्यादा कोई भी अपने पद पर तीन साल तक बना रह सकता है।
हम सरकार को हर टैक्स चुकाते हैं और इसमें कोई अनियमितता का मामला नहीं आया है। मैं एक बार फिर कहना चाहूंगा कि हम सरकार से कोई अनुदान नहीं लेते। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को पारदर्शिता से कोई परहेज नहीं है, लेकिन हमें सरकार के हस्तक्षेप या दखलंदाजी पर आपत्ति है। हम एक स्वायत्त संस्था के तौर पर लगातार बेहतर काम करते रहे हैं और बीसीसीआइ की कार्यप्रणाली की प्रशंसा दुनिया भर की अलग-अलग खेल संस्थाओं में समय-समय पर होती रही है। मेरे ख्याल से बीसीसीआइ पर अंकुश लगाने या उसके कामकाज में हस्तक्षेप करने की कोशिश के बजाए खेल मंत्रालय को चाहिए कि वह यह देखे कि दूसरे खेलों में भारत की स्थिति को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है। दूसरे खेल संघों में कहां गड़बडि़यां हैं और उन खेलों में भारत का स्तर क्यों नहीं सुधर रहा है।
आप किसी भी दूसरे खेल संघ में जाकर देखिए, वह घिसट-घिसट कर चलता हुआ दिखेगा। न कोई व्यवस्था होती है और न ही सरकार वहां की व्यवस्था को सुधारने की कोशिश करती दिखाई देती है। बीसीसीआइ दूसरे खेल संघों की मदद के लिए आगे आती रही है। लिहाजा, सरकार को उन खेल संघों को बेहतर बनाने और स्थापित करने पर ध्यान देना चाहिए, जहां इस बात की जरूरत महसूस की जा रही है। जबकि बीसीसीआइ तो व्यवस्थित और पारदर्शी तरीके से एक स्थापित संस्था के तौर पर काम कर रही है। वैसे भी यह कोई बीसीसीआइ की राय नहीं है। इसी साल जून में आइसीसी की एक बैठक हुई थी, जिसमें इसके सदस्यों ने अपने सदस्य संघों को कहा था कि वे अपने आप को सरकारी दखलंदाजी से मुक्त कराएं या फिर पाबंदी झेलने को तैयार रहें। इस लिहाज से भी देखें तो अगर प्रस्तावित विधेयक अपने मौजूदा स्वरूप में ही पास हो जाता तो हमारे लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के सामने जवाब देना संभव नहीं हो पाता, इसलिए भी हम लोगों को इस विधेयक का विरोध करना पड़ा। कुल मिलाकर हमें तो यही लगता है कि बीसीसीआइ में किसी भी सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है, और इससे देश में क्रिकेट को कहीं से कोई नुकसान भी नहीं हो रहा है।
इस आलेख के लेखक रत्नाकर शेट्टी हैं
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