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मलाईदार मंत्रालयों के लिए मारा-मारी

जागरण मेहमान कोना
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Shivkumar इसे भारतीय राजनीति की विडंबना ही कहा जाएगा कि सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल दलों के ज्यादातर सांसद यही चाहते हैं कि अगर उन्हें मंत्री बनाया जाए तो मंत्रालय ऐसा हो, जिसमें हनक भी हो और खनक भी। यही वजह है कि आज देश की राजनीति में भ्रष्टाचार चरम पर है और आए दिन एक न एक घोटाले सामने आते जा रहे हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल के इस फेरबदल में महाराष्ट्र से कांग्रेस सांसद गुरुदास कामत और उड़ीसा से कांग्रेस सांसद श्रीकांत जेना के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं होने की वजह से संप्रग सरकार की किरकिरी तो हुई ही, साथ ही आम जनता में इस बात का संदेश भी गया कि संप्रग सरकार में हर आदमी मलाईदार कुर्सी पर ही विराजमान होना चाहता है।


गुरुदास कामत मनमोहन सरकार में पहले गृह, दूरसंचार और सूचना तकनीक मंत्रालय में राज्य मंत्री थे और मौजूदा फेरबदल में उन्हें पेयजल और सफाई विभाग का जिम्मा देकर स्वतंत्र प्रभार वाला राज्यमंत्री बनाया गया था। कामत शपथ ग्रहण समारोह में नहीं पहुंचे और बाद में एक प्रेस विज्ञप्ति के जरिए उन्होंने मंत्री पद छोड़ने की बात कही। प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कामत ने मंत्री पद से मुक्त किए जाने की इच्छा जताई और अंतत: बुधवार को उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा भी दे दिया। कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री को लिखी चिट्ठी में गुरुदास कामत का कहना है कि वे कार्यकर्ता बनकर पार्टी के लिए काम करना चाहते हैं।


शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हुए उड़ीसा से कांग्रेस सांसद श्रीकांत जेना को सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन विभाग का जिम्मा राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार के तौर पर मिला था। सबसे बड़ी बात यह है कि सरकार में बैठे ज्यादातर मंत्रियों का आम जनमानस की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं है। देश के तमाम गांवों में पीने के पानी का संकट जगजाहिर है, लेकिन गुरुदास कामत को यह विभाग पसंद नहीं आया। आज अगर खुद महाराष्ट्र के गांवों की बात की जाए तो पानी के कई स्त्रोत सूख चुके हैं और गांवों में कुएं कूड़ेदान के तौर पर इस्तेमाल हो रहे हैं। क्या किसी भी केंद्रीय मंत्री के लिए यह एक बड़ी चुनौती नहीं होती कि वह पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय का जिम्मा लेकर इस काम के जरिए देश के पेयजल संकट को दूर करने में अपना योगदान देता?


दरअसल, मलाईदार मंत्रालय ही इस देश में घोटालों की सबसे बड़ी वजह है। ऐसा ही एक मलाईदार मंत्रालय दूरसंचार भी है, जिसमें कुछ दिनों पहले तक डीएमके कोटे से मंत्री ए राजा थे। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में इसी विभाग की कारस्तानी की वजह से सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक देश को 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। जब से देश की सियासत में गठबंधन राजनीति का जन्म हुआ, मलाईदार मंत्रालयों को पाने की ललक सरकार को समर्थन देने वाले क्षेत्रीय दलों में पैदा हो गई है। यही वजह है कि संचार मंत्रालय पहले डीएमके कोटे से मंत्री दयानिधि मारन के पास था और उसके बाद करुणानिधि के कहने से यह मंत्रालय ए राजा को दिलवा दिया गया। चाहे गठबंधन से जुड़े लोग हों या फिर अपनी ही पार्टी के सांसद, ज्यादातर लोगों की ख्वाहिश यही रहती है कि उसे ऐसा मंत्रालय मिले, जिसमें हनक भी हो और खनक भी या कह लें मंत्रालय ऐसा मिले, जिसमें रुतबा भी बरकरार रहे और इसके साथ ही वह मलाईदार भी हो।


मंत्रिमंडल में फेरबदल को लेकर लोगों की नाराजगी के बारे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कहना है कि नाखुश तो लोग होंगे, लेकिन उन्हें देशहित के बारे में सोचना चाहिए। मंत्रिमंडल विस्तार में हमने सिर्फ इसी बात को ध्यान में रखा। सवाल यह उठता है कि क्या वाकई हमारी सरकार देशहित को ध्यान में रखकर फैसला ले रही है? ग्रामीण विकास मंत्रालय जैसे अहम मंत्रालय में बार-बार मंत्री बदलने से यही संदेश जाता है कि सरकार के पास ऐसे लोगों की कमी है, जो ग्रामीण विकास जैसे मंत्रालय में अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा सकें। पहले कभी यह विभाग राजस्थान से सांसद सीपी जोशी के हाथ में था, इसके बाद विभाग की जिम्मेदारी विलासराव देशमुख को दी गई, लेकिन अब इसका जिम्मा जयराम रमेश को दे दिया गया है। एक सवाल यह भी उठता है कि क्या इसे देशहित में लिया गया कदम कहा जा सकता है कि अगर कोई मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा है तो उसे हटाने की बजाय प्रधानमंत्री उसका मंत्री पद बरकरार रखते हुए उसका विभाग बदल दें? क्या मौजूदा दौर में राजनीति को समाज सेवा का जरिया माना जा सकता है या आज के दौर के नेता इसे एक अलग तरह का कारोबार समझने लगे हैं? क्या वाकई गुरुदास कामत ने संगठन में रहकर पार्टी की सेवा करने के लिए मंत्री पद से इस्तीफा दिया है? क्या गठबंधन की राजनीति में प्रधानमंत्री के सामने मंत्रालय के विभागों का बंटवारा करना वाकई एक मुश्किल काम हो गया है?


CABINET RESHUFFLEक्या मंत्रियों को विभागों का बंटवारा वाकई उनकी काबिलियत के आधार पर किया जाता है कि या इसके लिए जोड़-तोड़ और तमाम दूसरे समीकरण ही सरकार की प्राथमिकता होती है? क्या अच्छा काम करने वाले कुछ मंत्रियों के विभाग इसलिए नहीं बदल दिए जाते हैं, क्योंकि ऐसे लोगों की वजह से कुछ लोगों की उस मंत्रालय विशेष में दाल नहीं गल पाती? मौजूदा मंत्रिमंडल में ऐसे भी कई मंत्री है, जिनके कामकाज और आचरण को लेकर सवाल उठ रहे हैं, लेकिन सरकार उन्हें इसलिए नहीं हटाना चाहती, क्योंकि ये लोग आरोपों से घिरी सरकार के लिए ढाल बनने का काम कर रहे हैं।


कुल मिलाकर कहीं गठबंधन के नाम पर कुछ मंत्रालयों का आरक्षण किसी एक दल विशेष के लिए हो गया है तो कहीं भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे अपनी ही पार्टी के किसी बड़े नेता को चाहकर भी सरकार मंत्री पद से नहीं हटा पा रही है। यह बात अलग है कि सरकार ऐसे लोगों के विभागों में फेरबदल कर यह जतलाने की कोशिश जरूर करती नजर आती है कि आरोपों से घिरे व्यक्ति का विभाग बदलकर उसका कद घटा दिया गया है। सरकार की यह कवायद देखकर उद्योगपति परिवार से ताल्लुक रखने वाले अपने उस साथी की बात याद आ गई कि जब उसके परिवार में किसी शरारती बच्चे को स्कूल के इम्तिहान में कम नंबर मिलते थे तो उसके माता-पिता सजा के तौर पर उसे यह फरमान सुनाते थे कि आज से तुम्हें नॉन एसी वाले कमरे में सोना होगा। कुछ ऐसा ही हाल इन दिनों हमारी सरकार का भी है। यहां तो अगर कोई खास मंत्री अपने इम्तिहान में कम नंबर की बात तो दूर, अगर फेल भी हो जाए तो प्रधानमंत्री उसे हटाने के बजाय उसे दूसरे विभाग का मंत्री बना देंगे।


जो भी हो, इस फेरबदल को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 2014 में होने वाले आम चुनाव के पहले का आखिरी बदलाव बता रहे हैं। हालांकि यह बात अभी पूरी दावे के साथ नहीं की जा सकती, क्योंकि जिस प्रकार आए दिन संप्रग सरकार के मंत्रियों की कलई खुलती जा रही है, उसे देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि आने वाले दिनों में कितने और मंत्रियों को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़े या फिर उनके विभागों में फेरबदल हो।


यह बात ठीक है कि मनमोहन सरकार में इस बार आठ नए चेहरों को जगह दी गई है, लेकिन अब देखना यह होगा कि असरदार और मलाईदार मंत्रालयों को लेकर मंत्रियों की नाराजगी के बीच सरकार के ये मंत्री अपने कामकाज से देश को तरक्की के रास्ते पर ले जाकर अपनी और सरकार की छवि को कैसे बेहतर बना पाएंगे?


लेखक डॉ. शिव कुमार राय वरिष्ठ पत्रकार हैं


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