Menu
blogid : 5736 postid : 680

लोकसभा में सफाई देने की चुनौती

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

Rajiv dhavanकलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश सौमित्र सेन के खिलाफ राज्यसभा में महाभियोग बहुमत से पारित हो गया है। इस तरह जस्टिस सेन संसद के ऊपरी सदन में गुनाहगार मान लिए गए हैं। मेरा मानना है कि वह अपना बचाव खुद कर रहे हैं, इससे उनका नुकसान हो रहा है। वे राज्यसभा के सामने अपना पक्ष ठीक ढंग से नहीं रख पाए हैं। हालांकि वे कह रहे हैं कि उन्हें अपना पक्ष ठीक से रखने का मौका नहीं मिला, लेकिन अगर वे किसी सुलझे हुए वकील या कानून के जानकार को अपना पक्ष सही ढंग से पेश करने के लिए रखते तो स्थिति दूसरी हो सकती थी। वैसे, उनके मामले में ऐसा लग रहा है कि कुछ न कुछ गड़बड़ है। सोमनाथ चटर्जी जी ने भी कहा है कि उनके साथ गड़बड़ हो रही है। उन्होंने इस बाबत राज्यसभा के चेयरमैन को खत भी लिखा है कि यह मामला महाभियोग के लायक नहीं था और सौमित्र सेन के साथ पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन ने सही तरीका नहीं अपनाया है। ऐसे में इस बात का भी ख्याल रखना होगा कि कहीं सौमित्र सेन के साथ वास्तव में अन्याय नहीं हो जाए, लेकिन इसके लिए उन्हें अपना बचाव खुद ही मजबूती से करना होगा और लोकसभा के सामने उनके पास मौका है कि वे वास्तविक तस्वीर विश्वसनीयता के साथ रखें।


लोकसभा में अपना पक्ष रखने के लिए किसी अन्य व्यक्ति का चुनाव करना चाहिए, जो उनकी बातों को ठीक ढंग से रख सके। सौमित्र सेन पर आरोप है कि वकील के तौर पर उन्होंने एक खरीददार से 33.22 लाख रुपये लिए थे और उस रकम को बचत खाता में रख लिया था। इसी मामले में उन्हें नवंबर, 2010 में राज्यसभा की तीन सदस्यीय समिति दोषी ठहरा चुकी है, लेकिन उन्होंने तब भी अपने खिलाफ लगे आरोपों को खारिज किया था। इसके बाद उनसे दो बार इस्तीफा देने को कहा गया, लेकिन हर बार उन्होंने इनकार कर दिया। हालांकि वर्ष 2006 में अपने खिलाफ पहले विपरीत आदेश जारी होने के बाद उन्होंने किसी मामले की सुनवाई नहीं की। इससे पहले सुप्रीमकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश वी रामास्वामी पहले ऐसे न्यायाधीश थे, जिनके खिलाफ पद पर रहते हुए वर्ष 1991 में महाभियोग चलाया गया था। उन पर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के तौर जानबूझकर पद का दुरुपयोग करने का आरोप था।


जस्टिस रामास्वामी के खिलाफ 12 में से 9 आरोपों को सही पाया गया, लेकिन जब यह मामला संसद में पहुंचा तो उन्हें हटाने के पक्ष में एक वोट भी नहीं डाला गया। महाभियोग का प्रस्ताव लोकसभा में 1993 में इसलिए गिर गया था, क्योंकि तब लोकसभा के 405 सदस्यों में से 205 ने मतदान में भाग नहीं लिया था। यह भी कहना सही है कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के मामले हाल के दिनों में ज्यादा सामने आए हैं। सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे केजी बालाकृष्णन ने पद पर अपने आखिरी दिन न्यायिक भ्रष्टाचार पर न्यूनतम करार दिया था, लेकिन एक साल बाद ही बालकृष्णन खुद वित्तीय कदाचार और पद के दुरुपयोग के आरोपों से घिरे हैं। कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पीडी दिनकरन ने थोड़े दिन पहले ही इस्तीफा दिया है। पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट की पूर्व न्यायाधीश निर्मल यादव के खिलाफ मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसएच कपाडि़या ने जांच की मंजूरी दी है और उन्हें सीबीआइ का नोटिस भेजा गया है।


सुप्रीमकोर्ट ने हाल ही में वर्ष 2010 में न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ जांच की सूची का खुलासा किया है, जिसमें बताया गया है कि 305 न्यायाधीशों की जांच में 38 से दंड भरवाया गया। ऐसे उदाहरण बताते हैं कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह तो यही है कि मौजूदा समय में न्यायपालिका के अंदर भ्रष्टाचार को रोकने के लिए मौजूद कानून उतने प्रभावी नहीं हैं। वे कमजोर साबित हो रहे हैं, जिसके चलते अलग कानून बनाने की मांग भी उठ रही है। सरकार ने भी इस दिशा में तेजी दिखानी शुरू की है। हम भी चाहते हैं कि न्यायिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार के लिए कोई जगह नहीं हो। भ्रष्ट लोगों के लिए कोई जगह नहीं हो। सौमित्र सेन के महाभियोग से भी संदेश तो गया ही है कि भ्रष्टाचारियों पर शिकंजा कसेगा, लेकिन यहां इस बात पर भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है कि क्या सौमित्र सेन वाकई दोषी हैं या फिर उन्हें किसी साजिश का शिकार बनाया गया है।


लेखक राजीव धवन सुप्रीमकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh