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विश्वासघात की नीति

जागरण मेहमान कोना
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अब दुनियाभर में यह सच स्वीकार कर लिया गया है कि अलकायदा, तालिबान, लश्करे-तैयबा और तहरीके-पाकिस्तान या किसी भी नाम से विभिन्न इस्लामी कट्टरपंथी काम कर रहे सभी जिहादी आतंकवादियों को पाकिस्तान आर्मी और उसकी आइएसआइ ट्रेनिंग देने और उन्हें हैंडल करने में लगी हैं। कहते हैं कि टीटीपी नियंत्रण से बाहर हो गया है और पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या के लिए बैतुल्लाह महसूद को दोषी ठहराने के लिए उसने, बदले में पाकिस्तान आर्मी पर हमले किए हैं। बैतुल्लाह, अमरीकी ड्रोन हमले में मारा गया था। इन कई बदलावों के बीच कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जब किसी संगठन विशेष ने स्वतंत्र होकर कार्रवाई की है। इस बात का फायदा उठा कर पाकिस्तान आर्मी ने यह साबित करने की कोशिश की है कि उसका जिहादियों पर कोई नियंत्रण नहीं है, लेकिन सच तो यह है कि जब अफगानिस्तान में पश्चिमी गठबंधन, सोवियत संघ से लड़ाई कर रहा था, तब ही से पाकिस्तान, इस्लामी जिहादी आतंकवाद का मूल स्रोत रहा है। जिहादी आतंकवाद को पोषित करने के आरोपों में खुद अमेरिका की ओर उगलियां उठ रही हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अफगानिस्तान से सोवियत रूस के हटने के बाद अमेरिका ने जिहादियों की अनियमित फौज का नियंत्रण, आइएसआइ की सरपरस्ती में पूरी तरह से पाकिस्तान सेना पर छोड़ दिया था, जिसके चलते यह बिन लादेन के अधीन अलकायदा में तब्दील हो गई जिसे दुनियाभर में आतंकी हमलों की साजि़श रचने और उन्हें अंजाम देने के लिए अफगानिस्तान की आजादी दे दी गई थी। इन हमलों में व‌र्ल्ड ट्रेड सेंटर और पेंटागन पर 9/11 के हमले भी शामिल हैं। ऐसे ही ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान की एक महत्वपूर्ण छावनी में शहंशाह की भांति रह रहा था और जहां उसे अमेरिका ने ढूंढ कर मार डाला था।


आतंक के खिलाफ वैश्विक युद्घ में पाकिस्तान के शामिल होने का एकमात्र कारण टेलीफोन पर सैन्य तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ को अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश की साफ-साफ धमकी थी अगर आप हमारे साथ नहीं हैं तो आप हमारे खिलाफ हैं और हम इतने बम बरसाएंगे कि पाकिस्तान पाषाण काल में लौट जाएगा। पाकिस्तान इस वैश्विक युद्घ में तो शामिल हो गया, लेकिन मुशर्रफ़ ने इस प्रकार पटकथा लिखी कि अफगानिस्तान में आतंकवादियों का पीछा करने का नाटक करते हुए पाकिस्तान में उन्हें सुरक्षित पनाह मिले। साहूकार को चोरी के बारे में चेताने और चोरों से चोरी करने को कहने की नीति के चलते, मुशर्रफ ने अरबों डॉलर कमाए, लेकिन बड़ी देर में जाकर अमेरिका को पाकिस्तान की इन चालबाजियों का पता चला और उसने सीआइए द्वारा अपने ही सूत्रों के जरिए तलाशे गए आतंकी कमांडरों पर ड्रोन हमले शुरू कर दिए। यहीं से पाकिस्तानियों के लिए हालात बिगड़ने शुरू हो गए। जब उन्होंने खुद को घिरा पाया और उससे उन्हें तकलीफ होनी शुरू हो गई, तो उन्होंने चीख-पुकार मचाना शुरू कर दिया। मोहभंग का अंतिम अवसर तब आया जब अमेरिका ने अफगान की सीमा के निकट एक चौकी पर हमला किया जिसमें दर्जनों पाकिस्तानी फौजी मारे गए। इस बात की अभी भी जांच चल रही है कि क्या यह हमला अमेरिकी गनशिपों का खुलेआम हमला था या पाकिस्तान की ओर से पाकिस्तानी सैनिकों की गोलीबारी या पाकिस्तान की जमीन पर सक्रिय जिहादी आतंकवादियों के हमले की वजह से गठबंधन सेनाएं भड़क उठी थीं।


अफगानिस्तान के लिए पाकिस्तान के रास्ते रसद-मार्ग, अमेरिकियों के हाथ से निकल गया है और शम्सी एयरबेस के किराए और अफगानिस्तान में अंतरराष्ट्रीय सहायता बल के लिए पेट्रोल और लुब्रिकेंटस तथा दूसरी सप्लाई के लिए ट्रांजिट शुल्क के रूप में पाकिस्तानियों को 60 करोड़ डॉलर का नुकसान होने वाला है।


लेखक सेसिल विक्टर स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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