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नेपाल से सीख लें माओवादी

जागरण मेहमान कोना
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जिस ममता बनर्जी ने एक साल पहले लालगढ़ में सार्वजनिक सभा में कहा था कि आजाद की हत्या हुई है, उसी ममता बनर्जी का बंगाल की मुख्यमंत्री बनने के चार माह बीतते-बीतते माओवादियों से मोहभंग हो गया है। फिर भी उन्होंने माओवादियों से बातचीत का रास्ता खुला रखा है। ममता के अब तक के मुख्यमंत्रित्वकाल में माओवादियों ने पश्चिम बंगाल के जंगलमहल में छह राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी है। जंगलमहल में तीन जिले आते हैं-पश्चिमी मेदिनीपुर, पुरुलिया तथा बांकुड़ा। जंगलमहल में माओवादी हिंसा की हाल की घटनाओं पर मुख्यमंत्री के तल्ख तेवर अपनाने के बाद माओवादी दबाव में आने को बाध्य हुए हैं और उन्होंने एक महीने तक जंगलमहल में हिंसा बंद रखने का ऐलान किया है। माओवादियों से बातचीत की पहल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सरकार बनाने के तुरंत बाद ही कर दी थी। ममता ने माओवादियों से वार्ता के लिए छह लोगों को मध्यस्थ भी नियुक्त किया था। ये हैं-सुजाता भद्र, छोटन दास, अशोकेंदु सेनगुप्त, कल्याण रुद्र, प्रसून भौमिक और देवाशीष भट्टाचार्य। मध्यस्थों से माओवादियों ने कहा है कि वे सरकार के साथ संवाद कर सकते हैं पर उसके लिए उपयुक्त परिवेश बनाना होगा, अकारण जेलों में बंद कैदियों की रिहाई करनी होगी, जंगलमहल में ऑपरेशन ग्रीन हंट बंद करना होगा। इन दोनों मांगों पर सरकार ने सकारात्मक रुख अपनाया।


ममता ने बंदी मुक्ति कमेटी बनाई थी, जिसने 52 बंदियों की रिहाई की सिफारिश की। उसे ममता ने स्वीकार कर लिया है और इस बाबत केंद्र सरकार की मंजूरी का इंतजार राज्य सरकार कर रही है। सरकार ने ऑपरेशन ग्रीन हंट भी पिछले चार महीने से स्थगित रखा है ताकि माओवादियों से संवाद का माहौल बन सके। जंगलमहल की समस्या का समाधान ढूंढ़ने के लिए ममता ने राजनीतिक प्रयास के समानांतर ही प्रशासनिक कदम भी उठाए हैं। मुख्यमंत्री ने विकास कार्यो के लिए विशेष पैकेज की घोषणा की है। उन्होंने ऐलान किया है कि जो माओवादी आत्मसमर्पण करेंगे या समाज की मुख्यधारा में लौटेंगे उन्हें सरकार नौकरी, मुआवजा तथा अन्य सुविधाएं देगी। जंगलमहल के दस हजार नागरिकों को राज्य सुरक्षा एजेंसी व होम गार्ड में भर्ती करने की प्रक्रिया भी प्रारंभ कर दी गई है।


आदिवासी क्षेत्रों में बीपीएल कार्ड व नई राशन व्यवस्था के साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य की योजनाएं नई सरकार ने घोषित की हैं। मुख्यमंत्री जंगलमहल की नई विकास योजनाओं की प्रक्रिया का पूरी तरह विकेंद्रीकरण भी करना चाहती हैं ताकि निर्णय के हर स्तर पर जंगलमहल की आदिवासी जनता की भागीदारी बनी रहे। यदि निकट भविष्य में माओवादियों के साथ ममता सरकार की बातचीत संभवहोती है तो जंगलमहल में जिस तरह का विकास माओवादी चाहते हैं, उसे स्वीकार करने में भी राज्य सरकार को कोई दिक्कत नहीं होगी।


राज्य सरकार के अब तक के प्रयासों के बाद ममता की यह अपेक्षा स्वाभाविक थी कि माओवादी भी अपनी हिंसक गतिविधियां बंद कर देंगे किंतु जंगलमहल में उनके द्वारा की गई छह राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या से मुख्यमंत्री की भृकुटि इस कदर तन गई कि उन्होंने जंगलमहल के लिए केंद्र से सुरक्षाबलों की और दो कंपनियों की मांग कर डाली। यही नहीं, पिछले चार महीने के बाद पहली बार केंद्रीय अ‌र्द्धसैनिक बलों को भी सक्रिय होने का निर्देश मुख्यमंत्री ने दिया। इसके बाद ही माओवादियों का बयान आया कि वे जंगलमहल में एक महीने तक हथियारों के इस्तेमाल में संयम बरतेंगे बशर्ते सुरक्षा बल भी बैरकों से बाहर न निकलें। राज्य सरकार ने कहा है कि माओवादियों के युद्धविराम के बाद यदि जंगलमहल में शांति रहती है तो सुरक्षा बल कोई कार्रवाई नहीं करेंगे किंतु अशांति होने पर प्रशासन अपना काम करेगा। माओवादियों की हिंसा सुरक्षा बलों की हिंसा को वैध ठहराने का बहाना भी बन जाती है और कई बार सुरक्षाबलों द्वारा की गई हिंसा माओवादियों को प्रतिहिंसा करने का अवसर प्रदान कर देती है। हिंसा का रास्ता छोड़कर नेपाल के माओवादी यदि संसदीय राजनीति में प्रवेश कर सकते हैं तो उसका अनुसरण भारत के माओवादी क्यों नहीं कर सकते?


लेखक कृपाशंकर चौबे स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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