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चीन का खतरनाक बांध प्रेम

जागरण मेहमान कोना
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Brahmaतिब्बत और पाक अधिकृत कश्मीर में चीन की बांध परियोजनाओं को भारतीय हितों के लिए खतरा बता रहे है ब्रह्मा चेलानी


एक विवादास्पद चीनी बांध परियोजना का काम स्थगित करने का म्यांमार का फैसला कूटनीतिक सुधार का संकेत है। यह परियोजना चीन की संसाधनों की भूख का प्रतीक बन गई थी और इसकी वजह से उत्तरी म्यांमार में जातीय हिंसा भड़क गई थी। जिस मित्सोन बांध का काम रोका गया है वह उन सात बांध परियोजनाओं में से एक है जिनमें उत्पादित बिजली को चीन अपने बाजारों को निर्यात कर देगा, जबकि म्यांमार खुद बिजली के संकट का सामना कर रहा है। इसके अलावा म्यांमार से बहकर चीन आने वाली नदियों पर चीन अपने देश में भी बांध खड़े कर रहा है। इन परियोजनाओं ने पर्यावरण और मानव पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के कारण लोगों का ध्यान खींचा था। यही नहीं, बांधों के लिए विशाल भूभाग खाली कराने के लिए हजारों स्थानीय निवासियों को जबरन बेदखल करने के कारण म्यांमार में नया संघर्ष शुरू हो गया है। इस घटना से म्यांमार सरकार और कचिन मुक्ति सेना के बीच चला आ रहा 17 साल का युद्धविराम खत्म हो गया है और दोनों पक्षों में जंग शुरू हो गई है।


इरावड्डी नदी पर निर्माणाधीन 3,200 मेगावाट के मित्सोन बांध को चीनी परियोजना कहा जा रहा था। लोगों के गुस्से को शांत करने के लिए म्यांमार की इस सबसे बड़ी बांध परियोजना पर काम रुकना चीन के लिए करारा झटका है और स्थानीय समुदायों की बड़ी जीत है, जो अपनी आजीविका और पर्यावरण को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे।


म्यांमार उन अनेक देशों में से एक है जहां चीन द्वारा वित्तपोषित और निर्मित पनबिजली परियोजनाओं ने लोगों को आंदोलित कर दिया है। चीन एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अनेक देशों में बांधों का निर्माण कर रहा है। वह चीन से निकलकर अन्य देशों से होकर बहने वाली नदियों पर सीमा से तुरंत पहले बांधों का निर्माण करने से भी गुरेज नहीं कर रहा। ये बांध पड़ोसी देशों के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकते है। चीन दावा करता है कि बांधों के निर्यात में वैश्विक नेता की उसकी भूमिका से मेजबान देश और चीनी कंपनियों, दोनों को फायदा हो रहा है, किंतु अनेक परियोजनाओं का अनुभव बताता है कि चीनी बांध निर्माता पर्यावरण मानकों का पालन नहीं करते। चीनी बांध गंभीर सामाजिक और पर्यावरण समस्याएं खड़ी कर रहे है। वास्तव में, चीन यह दर्शा रहा है कि उसे विवादित क्षेत्रों में बांध बनाने में भी कोई गुरेज नहीं है। इसीलिए वह पाक अधिकृत कश्मीर और उत्तरी म्यांमार जैसे क्षेत्रों में धड़ल्ले से बांध बना रहा है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में तो चीन ने बांध और अन्य सामरिक परियोजनाओं पर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के हजारों जवानों को भी तैनात कर रखा है, किंतु जब विदेशी कंपनियां दक्षिण चीन सागर में वियतनाम द्वारा पेश किए गए तेल खंडों में तेल की खोज करती है तो वह इसका जोरदार विरोध करता है।


पाक अधिकृत कश्मीर में चीनी सैनिकों की उपस्थिति, चाहे वह निर्माणकर्मियों के रूप में ही क्यों न हो, का मतलब है कि चीन ने भारत को पूर्वी और पश्चिमी, दोनों मोर्चो पर घेर लिया है। ऐसे में चीन या पाकिस्तान किसी भी राष्ट्र से युद्ध की स्थिति में भारत के खिलाफ युद्ध का दोहरा मोर्चा खुल जाएगा। वास्तव में, चीन द्वारा तमाम महत्वपूर्ण तिब्बती नदियों पर बड़े बांध बनाने और ब्रह्मपुत्र नदी को दूसरी नदियों या नहरों से जोड़ने से भारत के लिए गंभीर संकट खड़ा हो गया है। जहां तक ब्रह्मपुत्र का संबंध है, इसकी बड़ी गाज भारत के बजाय बांग्लादेश पर पड़ेगी, जहां यह नदी ताजा पानी का सबसे बड़ा श्चोत है। वृहद रूप में, चीन की घरेलू मामलों में दखलंदाजी बर्दाश्त न करने की घोषणात्मक नीति बांध परियोजनाओं को शुरू करने और स्थानीय लोगों को बेदखल करने के लाइसेंस का काम करती है। चीन घरेलू मोर्चे पर भी नदियों पर बांध बनाने के लिए बड़ी तादाद में लोगों को बेदखल करता रहा है।


आज, 37 चीनी वित्तीय और कॉरपोरेट इकाइयां विकासशील देशों में सौ से अधिक बांध परियोजनाओं से सीधे-सीधे जुड़ी है। इनमें से कुछ इकाइयां बेहद विशाल है और इनकी अनेक अनुषंगी या सहायक इकाइयां है। देश और विदेश में बांध बनाने के चीन के जुनून से दो बातें साफ हो जाती है। पहली यह कि चीनी कंपनियां वैश्विक पनबिजली उपकरण निर्यात बाजार पर छा गई है। चीन की साइनोहाइड्रो कंपनी ही विश्व के कुल बाजार में आधे की हिस्सेदारी रखती है। दूसरे, सरकारी पनबिजली कंपनी के बलबूते चीन विदेशों में आक्रामक तरीके से बांध परियोजनाएं हथिया रहा है। इसके लिए वह सस्ती दरों पर ऋण देने के साथ-साथ चीन से निकलकर अन्य देशों में बहने वाली नदियों का अधिकाधिक दोहन भी कर रहा है। चीन के सबसे बड़े बांध निर्माता हाइड्रोचाइना ने पिछले साल विशाल बांधों की सरकार द्वारा स्वीकृत स्थलों की सूची जारी की थी, जिनमें थ्री जॉर्जेस बांध से भी बड़ा बांध भारत सीमा के निकट बनाने की योजना भी शामिल है।


म्यांमार से लेकर कांगो और जांबिया से लाओस तक अनेक देशों में चीन द्वारा बांध निर्माण का उद्देश्य उन देशों से कच्चे खनिज का आयात करने के लिए ऊर्जा की व्यवस्था करना है। म्यांमार अकेला ऐसा देश नहीं है जहां चीन द्वारा बांध निर्माण से हिंसा भड़की है। सूडान से लेकर पाक अधिकृत कश्मीर में इस प्रकार की परियोजनाओं के कारण हिंसक टकराव और पुलिस गोलीबारी हुई है। म्यांमार में मित्सोन बांध के निर्माण से भड़की हिंसा दाइपीन और श्वैली बांध निर्माण स्थल तक फैल गई। बांधों के माध्यम से चीन विकासशील देशों में आर्थिक संबंधों को भी मजबूत कर रहा है।


जिन देशों में चीन की बांध परियोजनाएं चल रही है, वहां की जनता में चीन के खिलाफ भावनाएं भड़क रही है। इसके लिए चीन ही जिम्मेदार है, जो न तो अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन कर रहा है और न ही खुद अपने देश में बने मानकों का, जिनके तहत चीन को पर्यावरण की सुरक्षा के साथ-साथ विस्थापितों के पुनर्वास और आजीविका की व्यवस्था करना जरूरी है। चीन बांध निर्माण व अन्य परियोजनाओं में विदेशी जनता का शोषण कर रहा है। इसकी पुष्टि इस तथ्य से भी हो जाती है कि वह दूसरे देशों में चल रही परियोजनाओं में भी अधिकांश श्रमिक अपने देश से ही ले जाता है। यह चीनी वाणिज्य मंत्रालय के 2006 अधिनियम का खुला उल्लंघन है। यह कानून जांबिया में चीन विरोधी दंगे भड़कने के बाद बनाया गया था। इसके तहत स्थानीय लोगों को रोजगार देने के साथ-साथ वहां की संस्कृति व मान्यताओं के पालन का भी प्रावधान है। चीन अपने बांध निर्माताओं की छवि और खराब होने से तभी बचा सकता है जब वह अपने देश के कानूनों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मानकों का भी पालन करे।


लेखक ब्रह्मा चेलानी सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं


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