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चीन अमेरिका से नहीं डरता, मंदी से नहीं डरता, डॉलर से नहीं डरता..तो फिर चीन डरता किससे है? चीन डरता है आजादी के लिए उठने वाली आवाज से। जी, हां! अगर ऐसा न होता तो हाल के दशकों में चीन हर उस शख्स को सलाखों के पीछे न डाल देता जिसने आजादी की आवाज उठाई। भले ही चीन अर्थव्यवस्था के मामले में दुनिया के सामने एक चमत्कार की तरह दिखे, भले ही तकनीकी विकास, नागरिक अनुशासन या महत्वाकांक्षी योजनाओं को समय पर पूरा कर लेने के मामले में वह अद्भुत लगता हो, लेकिन जब बात आजादी और मानवाधिकारों की होती है तो चीन का कुरूप चेहरा, उसकी संवेदहीनता और घबराहट सामने आ ही जाती हैं। थ्येनआनमन मामले में पूरी दुनिया को ठेंगे पर रखते हुए चीन ने भयावह नरसंहार किया और उसे उसने अपनी ताकत के रूप में पेश किया, लेकिन ऐसा करते समय वह भूल गया कि नरसंहार या मानवाधिकारों का हनन इतिहास में बतौर ताकत कभी नहीं दर्ज हुए। यही कारण है कि तमाम भौतिक उपलब्धियों, सफलताओं के बाद भी विश्व के राजनीतिक परिदृश्य में चीन की विश्वसनीयता न के बराबर है।
चीन अब अपनी संवेदनहीनता का एक और नमूना पेश कर रहा है। पिछले कुछ दिनों से वह एक ऐसे मानवाधिकार कार्यकर्ता के पीछे पड़ा था, जो नेत्रहीन है। जी, हां! चेन गुआंगचेंग ने आजादी की अलख जगाई थी तो चीन उसे सलाखों के पीछे डालने पर उतारू हो गया। इस पर चेन ने अमेरिकी दूतावास में पनाह ली। जिसके बाद अमेरिकी राजनयिकों ने चीन के शीर्ष नेतृत्व से बातचीत की, तब कहीं जाकर चीन ने भविष्य में इस नेत्रहीन मानवाधिकार कार्यकर्ता को परेशान न करने का आश्वासन दिया है। लेकिन उम्मीद कम ही है कि वह अपने वादे पर खरा उतरेगा। चेंग ऐसे पहले व्यक्ति नहीं हैं जिन्होंने चीन के सरकारी आतंक को झेला हो और न ही पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने चीन की अधिनायकवादी सत्ता का विरोध किया हो। चेंग से पहले कई कार्यकर्ताओं ने यही किया और उनके साथ चीन जितना बुरा कर सकता था, उतना बुरा किया। कुछ तो आज भी जेल की सलाखों के पीछे सड़ रहे हैं और कुछ भाग्यशाली रहे कि उन्हें अमेरिका या किसी दूसरे लोकतांत्रिक देश में पनाह मिल गई। मगर कई असंतुष्ट ऐसे भी हैं जो आज भी जेल से या किसी दूसरे देश से चीनी नेतृत्व की नींद हराम किए हुए हैं। चीन आजादी की हवा जरा भी बर्दाश्त नहीं करता।
2011 में प्रसिद्ध चीनी कलाकार अई वेइवेइ ने लोकतंत्र के समर्थन में एक बयान क्या दे दिया, चीनी सत्ता ने इस मशहूर कलाकार को 80 दिनों तक जेल में डाल दिया। दुनिया भर के दबाव के बाद हालांकि वेइवेइ हिरासत से तो छोड़ दिए गए मगर अभी भी उन पर चीनी खुफिया एजेंसियों की अप्रत्यक्ष नजर रहती है। चीनी सरकार की अधिनायकवादी सोच का एक नमूना लियू जियाओबो भी हैं। मानवाधिकार कार्यकर्ता लियू 11 साल से जेल में हैं। हालांकि लियू को शांति का नोबेल प्राइज मिल चुका है। चीन की सरकार मीडिया पर भी हमेशा नकेल डालकर रखती है। फ्रीलांसर सी ताओ को सत्तारूढ़ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने पिछले दिनों दस साल की कैद इसलिए सुनाई है क्योंकि उसने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के दस्तावेजों को विदेशी वेबसाइट पर प्रकाशित किया था। दुनिया के किसी भी कोने में लोकतंत्र के पक्ष में हलचल होते ही चीन सोशल वेबसाइटों पर शिकंजा कस देता है। जब मिश्च के युवा तहरीर चौक पर पहुंचकर आजादी की मांग कर रहे थे, तब मिश्च के अलावा जिस देश ने सोशल नेटवर्किंग पर पहरा बिठाया था, वह कोई और नहीं चीन ही था। चीन की अधिनायकवादी सत्ता के कई शिकार हैं। राबिया कदीर, जू वेन्ली, वेइ जिंगसेंग, सेंटोंग और वेंग डैन। ये कुछ नाम भर नहीं हैं। ये उस बेचैनी के प्रतीक हैं जो चीन की लौहसत्ता से टकराकर आजादी के लिए कुर्बानी दे रहे हैं।
लेखक लोकमित्र स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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