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कांग्रेस पार्टी के लिए बिडंबना ही कही जाएगी कि एक मुश्किल से उबरती, उससे पहले ही दूसरी मुसीबत उसके गले पड़ जा रही है। अपने दो शीर्ष मंत्रियों के आपसी टकराव से वह अभी फुरसत पाई थी कि समाजसेवी अन्ना हजारे ने एक बार फिर हुंकार भरकर उसकी बेचैनी में इजाफा कर दिया। उन्होंने केंद्र सरकार को आगाह करते हुए कहा कि अगर वह संसद के शीतकालीन सत्र में जन लोकपाल विधेयक पारित नहीं कराती है तो हिसार उपचुनाव के बाद उत्तर प्रदेश सहित जिन पांच राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं, वहां भी कांग्रेस के खिलाफ मतदान के लिए वह जनता से अपील करेंगे। हिसार उपचुनाव में वह हिसार के मतदाताओं से कांग्रेस के विरोध में मतदान करने की गुजारिश कर चुके हैं। उन्होंने इसका कारण भी बताया है कि कांग्रेस पार्टी शुरू से ही जनलोकपाल बिल का विरोध कर रही है। अन्ना की इस घोषणा से कांग्रेस पार्टी में खलबली मच गई है और उसे समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर अन्ना से वह कैसे निपटे। अन्ना के कांग्रेस विरोध के स्वर से कांग्रेस पार्टी में नाराजगी चरम पर है।
अन्ना को लेकर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के एक बाद एक बयान फिर चिट्ठी इसी नाराजगी का ही गुबार है। हालांकि कांग्रेस पार्टी ने दिग्विजय सिंह की अन्ना को लिखी चिट्ठी से खुद को अलग कर लिया है, लेकिन इसे झुठलाया नहीं जा सकता कि कांग्रेस इस समय बौखलाई हुई है। हां, वह अन्ना से सीधे टकराने से बच रही है। कांग्रेस के रणनीतिकारों को अच्छी तरह पता है कि अन्न से सीधे टकराव का क्या मतलब होगा। यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी के खेवनहार बड़े ही सूझबूझ से अन्ना की आक्रामक घोषणा को सहजता से लेते हुए अपना बचाव कर रहे हैं और मर्यादा-शालीनता का परिचय देते हुए एक सीमा तक उन पर आक्रमण भी कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी अन्ना के खिलाफ अपनी आक्रामकता को बहुत तीखा धार देना नहीं चाहती है। पिछले दिनों अपने रणनीतिकारों के बड़बोलेपन का अंजाम वह भुगत चुकी है। वह नहीं चाहती है कि एक बार फिर उसके खिलाफ देश में माहौल बने। इसलिए उसकी कोशिश यह है कि लोकपाल विधेयक के प्रति प्रतिबद्धता जताकर अन्ना की नाराजगी को दूर किया जाए।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अन्ना को चिट्ठी या कह लें जवाब भी इसी कोशिश का हिस्सा है। दूसरी तरफ कांग्रेस की एक नीति यह भी है कि सधे हुए शब्दों से अन्ना और उनकी टीम पर आक्रमण किया जाए ताकि यह न लगे कि सरकार अन्ना के दबाव में है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी के बयान को इस संदर्भ में देखा जा सकता है। उनके बयान में आक्रमण, उपदेश, नसीहत और निवेदन सब कुछ है। उन्होंने कहा है कि अन्ना को लोकतांत्रिक मर्यादाओं का ख्याल रखते हुए देश के सामूहिक विवेक का प्रतिनिधित्व करने वाली संसद पर अपनी आस्था और भरोसा बरकरार रखनी चाहिए और ऐसी कोई हरकत नहीं करनी चाहिए, जिससे उनके द्वारा उठाए गए मसले का राजनीतिक लाभ लेने के लिए उसका राजनीतिक दुरुपयोग किया जा सके। इस बीच कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने अन्ना पर पलटवार करते हुए कहा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई सिर्फ राजनीतिक और लोकतंात्रिक प्रक्रिया से ही लड़ी जा सकती है। कांग्रेस के नेताओं की बयानबाजी से यह लग रहा है कि उनकी कोशिश अब यह होगी कि अन्ना हजारे की घोषणा को भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष न मानकर उसे राजनीतिक एजेंडा करार दिया जाए।
केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने अन्ना को भाजपा के साथ खड़ाकर इसकी पुष्टि भी कर दी है। हालांकि भाजपा की प्रवक्ता निर्मला सीतारमन ने अन्ना का बचाव करते हुए दलील दी है कि अन्ना और भाजपा दोनों ही कांग्रेस के खिलाफ इसलिए हैं कि कांग्रेस पार्टी पूरी तरह से भ्रष्ट हो चुकी है। देखा जा चुका है कि कांग्रेस के कई बड़े नामी-गिरामी चेहरे अन्ना को संघ का मुखौटा तक कह चुके हैं, लेकिन टीम अन्ना पर इसका कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। उसका हौसला इसलिए भी बुलंद है कि मुख्य विपक्षी दल भाजपा उन्हें संसद में जनलोकपाल विधेयक का समर्थन करने का पत्र सौंप चुकी है। अन्ना की असली नाराजगी कांग्रेस से है। उन्होंने नाराजगी की वजह बताते हुए कहा है कि उन्होंने हिसार उपचुनाव की घोषणा के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों को पत्र लिखकर जन लोकपाल विधेयक पर उनके विचार जानने की कोशिश की थी। इस पत्र के उत्तर में कांग्रेस को छोड़कर अन्य सभी दलों का जवाब आ गया है, लेकिन कांग्रेस ने नहीं दिया है।
लेखक अरविंद कुमार सिंह स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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