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भारतीय उपभोक्ता सोशल मीडिया के तमाम मंचों का दुनिया के अन्य देशों के उपभोक्ताओं की तुलना में कहीं बेहतर इस्तेमाल कर रहे हैं। यह तथ्य चौंकाता जरूर है, लेकिन गलत नहीं है। हाल में अमेरिकन एक्सप्रेस ने सालाना वैश्विक ग्राहक सेवा बैरोमीटर रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक ग्राहक सेवा का उपयोग करने के मामले में भारतीय विदेशियों से कहीं आगे हैं। भारत में हुए सर्वे में हिस्सा लेने वाले 54 फीसदी लोगों ने बताया कि उन्होंने ग्राहक सेवा प्रतिक्रिया पाने के लिए साल में कम से कम एक बार जरूर सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया। यह आंकड़ा अन्य देशों के मुकाबले दोगुना है। यह अध्ययन भारत समेत कुल 11 देशों में किया गया था। सर्वे के मुताबिक भारत में ग्राहक सेवा संबंधी प्रमुख गतिविधियों में सेवा उत्पाद के विषय में अपने अनुभव को बड़े समूह में बांटना, लोगों को बेहतर सेवा पाने के तरीके बताना, सेवा प्रदाताओं के बारे में लोगों से जानकारी हासिल करना, अच्छी सेवा देने के लिए कंपनी की तारीफ करना और किसी मुद्दे पर कंपनी से वास्तविक प्रतिक्रिया पाना रहा।
हालांकि रिपोर्ट में यह भी साफ हुआ कि अति गंभीर मसलों पर प्रतिक्रिया चाहने अथवा शिकायत करने के लिए 25 फीसदी भारतीय पांरपरिक तरीके का इस्तेमाल पसंद करते हैं यानी सीधे संबंधित अधिकारी से बात करना। वैसे यह आंकड़ा अन्य देशों में 37 फीसदी है। इसका सीधा मतलब यही है कि भारत में उपभोक्ताओं को अब सोशल मीडिया की उपयोगिता न केवल समझ आ रही है, बल्कि वे इसका बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं। एक बड़े उपभोक्ता वर्ग की शिकायतें भी सोशल मीडिया के जरिये खूब हल हो रही हैं। उदाहरण के लिए बेंगलुरु के सॉफ्टवेयर इंजीनियर विवेक द्विवेदी ने एक जानी-मानी कंपनी का लैपटॉप खरीदा। लैपटॉप में पहले हफ्ते में ही कुछ परेशानी आ गई। दुकानदार ने उनका लैपटॉप दो दिनों बाद सही करने के दावे के साथ वापस कर दिया, लेकिन एक दिन बाद ही लैपटॉप में वही पुरानी दिक्कत फिर आ गई। विवेक ने नाराजगी में इस बात का जिक्र कंपनी के ट्विटर खाते पर कर दी। फिर क्या था! कंपनी की तरफ से चंद घंटे के भीतर फोन आया और तीन दिन के भीतर विवेक के लैपटॉप की समस्या पूरी तरह दूर हो गई। इस तरह के उदाहरणों की लंबी फेहरिस्त है, जहां भारतीय उपभोक्ताओं की शिकायतों का निपटारा सोशल मीडिया के किसी मंच के जरिये हुआ।
महानगरों में फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किग साइटों की बढ़ती लोकप्रियता के बीच उनका सार्थक इस्तेमाल इस तरह भी हो रहा है। उपभोक्ता से जुड़े एमेक्स के एक सर्वे में 37 फीसदी उपभोक्ताओं ने माना कि उनकी समस्या सोशल मीडिया के जरिये हल हो जाती है। जबकि 14 फीसदी ने कहा कि उन्हें कभी-कभार या कभी भी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। फेसबुक और ट्विटर के रूप उपयोक्ताओं को आज नए हथियार मिल गए हैं जो सीधे प्रहार करते हैं। आज भारत में साढ़े चार करोड़ से ज्यादा फेसबुक उपयोक्ता हैं तो ट्विटर के भी एक करोड़ से ज्यादा यूजर्स हैं।
भावनाओं को व्यक्त करने की ये साइट्स बड़ा मंच हैं। यहां बात जंगल में आग की तरह फैलती है। यही वजह है कि कंपनियों के लिए अपनी छवि को बचाए रखने के लिए सोशल मीडिया पर लिखे-कहे जा रहे हर शब्द पर गौर फरमाना धीरे-धीरे जरूरी होता जा रहा है। तस्वीर का एक पहलू यह भी है कि कंपनियां ग्राहकों को बेहतर सुविधाएं देना चाहती हैं। कई बार अलग अलग वजहों से ग्राहकों को समस्या होती है, लेकिन सोशल मीडिया ग्राहकों को सीधे उच्च अधिकारियों तक पहुंच का अवसर देती है। इससे निचले स्तर के कर्मचारियों पर दबाव बनता है। दूसरी तरफ उच्च अधिकारियों के लिए ग्राहकों का फीडबैक पाना आसान हो जाता है। आज आईसीआईसीआईए एचडीएफसी बैंक से लेकर किंगफिशर, जेट जैसी एयरलाइंस और मेकमाइट्रिप, वोडाफोन, एयरटेल, टाटा डोकोमो, आदि ब्रांड्स के अपने फेसबुक पेज व ट्विटर खाते हैं।
इस आलेख के लेखक पीयूष पांडेय हैं
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