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आलाकमान से अपनी निष्ठा, ईमानदारी और समर्पण दिखाने के लिए कांग्रेस का हर नेता भ्रष्टाचार के मसले पर पार्टी को बेदाग बताने में जुटा है। फिर चाहे कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह हों या संप्रग सरकार में खेलमंत्री अजय माकन। कभी दिग्विजय सिंह पुणे में जाकर कॉमनवेल्थ घोटाले में फंसे सुरेश कलमाड़ी और आदर्श सोसाइटी घपले में फंसे महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को बेगुनाह बताते हैं तो कभी देश के खेलमंत्री अजय माकन कॉमनवेल्थ घोटाले का ठीकरा राजग सरकार पर यह कहकर फोड़ते हैं कि कलमाड़ी की नियुक्ति की प्रक्रिया राजग सरकार के दौरान शुरू हुई। यही नहीं, कांग्रेस के युवा सांसद मनीष तिवारी भी इस पूरे घोटाले का खुलासा करने और इसकी बारीकियों को सामने लाने के लिए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) पर निशाना साधने में जुटे हैं। मनीष तिवारी का मानना है कि अगर कैग जैसी संस्था ने संवैधानिक अधिकारों से छेड़छाड़ की तो इसके दुष्परिणाम देश को भुगतने होंगे और इसकी रिपोर्ट को ब्रह्म वाक्य नहीं समझा जाना चाहिए।
यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी संप्रग सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल भी कैग की भूमिका पर सवाल उठा चुके हैं। दरअसल, आने वाले समय में संप्रग सरकार में बदलाव की आहट से अब कांग्रेस का हर छोटा-बड़ा नेता खुद को तेजतर्रार बताने में जुटा है, ताकि बदलते दौर में कहीं उसे ही न बदल दिया जाए। कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति से अलग हटकर अब बात 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले, कॉमनवेल्थ घोटाले और आदर्श हाउसिंग सोसाइटी जैसे तमाम घपलों की, जिसने संप्रग सरकार और कांग्रेस की छवि को पूरी तरह धूमिल कर दिया है और सरकार भ्रष्टाचार पर ठोस कार्रवाई करने के बजाय पूरे मामले पर परदा डालने की कोशिश में जुटी है। अब बात सबसे पहले कॉमनवेल्थ घोटाले की, जिसे लेकर संसद में इन दिनों विपक्ष सरकार को घेरने में जुटा है और सरकार के सिपहसालार इस पूरे मामले पर अपनी खामियों को ढकने में लगे हैं। आदर्श सोसाइटी घोटाले में सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में इस मामले को बाड़ के खेत खाने का सबसे आदर्श उदाहरण माना है। इसमें कोई शक नहीं कि संप्रग सरकार के कार्यकाल में अब तक जितने भी घोटाले हुए हैं, उसमें बाड़ ही खेत खा रही है। कॉमनवेल्थ खेलों के कर्ता-धर्ता सुरेश कलमाड़ी इन दिनों तिहाड़ जेल में बंद हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इस पूरे मामले में सिर्फ कलमाड़ी ही अकेले कसूरवार है? क्या प्रधानमंत्री कार्यालय की भूमिका को पूरी तरह नजरअंदाज किया जा सकता है? क्या दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को इस मामले में क्लीन चिट दी जानी चाहिए? देश के खेलमंत्री अजय माकन का कहना है कि कलमाड़ी की नियुक्ति की प्रक्रिया राजग शासन के दौरान शुरू हुई थी, लेकिन क्या खेलमंत्री अजय माकन यह बताएंगे कि अगर कांग्रेस के इस सांसद पर खुद कांग्रेस के ही दो-दो खेलमंत्री सुनील दत्त और मणिशंकर अय्यर आरोप लगा रहे थे और उस वक्त प्रधानमंत्री कार्यालय ने किस दबाव में चुप्पी साध ली थी? क्या मौजूदा खेलमंत्री इस बात से वाकिफ नहीं हैं कि संप्रग-1 में 25 अक्टूबर 2004 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तत्कालीन खेल मंत्री सुनील दत्त को आयोजन समिति का अध्यक्ष बना दिया था और बाद में मंत्रिमंडल के फैसले को पलटकर सुरेश कलमाड़ी को अध्यक्ष बना दिया गया था।
14 नवंबर 2004 को तत्कालीन खेलमंत्री सुनील दत्त ने इस बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय को चिट्ठी भी लिखी, लेकिन उस पर गौर नहीं किया गया। इतना ही नहीं, 25 अक्टूबर 2007 को तत्कालीन खेलमंत्री मणिशंकर अय्यर ने भी प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखी चिट्ठी में यह साफ लिखा था कि कलमाड़ी खेल मंत्रालय को दुधारू गाय की तरह दुह रहे हैं और उनके लिए किसी भी नियम-कानून का कोई मतलब नहीं है। प्रधानमंत्री कार्यालय की नाक के नीचे कॉमनवेल्थ खेलों में करोड़ों का घोटाला हो जाता है। दुनिया में देश की साख को बट्टा लगता है, लेकिन अगर कैग जैसी संस्था इस पूरे मामले की सच्चाई सामने लाती है तो सरकार में बैठे मंत्री और सांसद इस संवैधानिक संस्था की पीठ थपथपाने की बजाय उसे संवैधानिक दायरे में रहने की ताकीद करते हैं। कैग की रिपोर्ट के आधार पर कांग्रेस पार्टी शीला दीक्षित पर चुप्पी क्यों साधे बैठी है? 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन के कर्ता-धर्ता और संप्रग सरकार में डीएमके कोटे से मंत्री रहे दूरसंचार मंत्री ए राजा भी इन दिनों तिहाड़ जेल में बंद हैं, लेकिन इस पूरे मामले में भी अकेले राजा को दोषी नहीं माना जा सकता और इस कड़ी में कई और लोग निश्चित तौर पर शामिल होंगे। अभी कुछ दिनों पहले ए राजा ने अदालत में अपने बयान में कहा था कि तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदंबरम और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह स्वान टेलीकॉम और यूनिटेक के शेयरों को विदेशी फर्म एटिलसैट और टेलीनॉर को दिए जाने के मामले से वाकिफ थे। राजा का कहना था कि प्रधानमंत्री की मौजूदगी में ही उस समय के वित्तमंत्री चिंदबरम ने स्पेक्ट्रम बेचने की मंजूरी यह बोलकर दी थी कि इसमें कुछ भी गैर कानूनी नहीं है।
देश में इतना बड़ा घोटाला हो जाता है और प्रधानमंत्री कार्यालय इस बात से बेखबर हो, ऐसा नहीं हो सकता। इस पूरे मामले के खुलासा होने के बाद बहुत दिनों तक खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ए राजा का बचाव करते नजर आ रहे थे, लेकिन कैग की रिपोर्ट और मीडिया के दबाव के बाद जब पानी नाक तक पहुंचा तो राजा सलाखों के पीछे डाल दिए गए। दूरसंचार मंत्रालय के 2जी लाइसेंस घोटाले को लेकर भी कैग ने समय रहते कई सवाल खड़े किए और सरकार पूरे मामले की लीपापोती में जुटी रही। कैग ने राजा की अगुवाई वाले दूरसंचार मंत्रालय से 2008 में हुए इस 2जी लाइसेंस घोटाले को लेकर यह सवाल पूछा था कि जब उसने लाइसेंस आवेदन के लिए अंतिम तारीख 1 अक्टूबर 2007 रखी थी तो उसने 10 जनवरी 2008 को जारी प्रेस विज्ञप्ति में यह क्यों कहा कि वह 25 सितंबर 2007 तक के आवेदनों पर ही विचार करेगा। इस वजह से लाइसेंस स्पेक्ट्रम के लिए मंत्रालय को मिले 575 आवेदनों में से केवल 232 को प्रोसेस किया गया था। आमतौर पर इस तरह का विज्ञप्ति पत्र सूचना कार्यालय के माध्यम से जारी होता है, लेकिन इस जानकारी को केवल मंत्रालय की वेबसाइट पर डाल दिया गया था। आखिर क्यों प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस पूरे मामले पर कुछ कार्रवाई करने के बजाय हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे? कैग ने महाराष्ट्र के आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाले में केंद्र और महाराष्ट्र सरकार की खिंचाई की है।
अपनी रिपोर्ट में कैग ने सेना समेत केंद्र और राज्य सरकार के विभागों की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। कैग ने अपनी जांच में यह भी पाया कि सरकारी पदों पर बैठे जिन लोगों ने भी आदर्श हाउसिंग सोसाइटी को अनुचित ढंग से लाभ पहुंचाने की कोशिश की, बाद में उनके बेटे या किसी रिश्तेदार को इस सोसाइटी का सदस्य बना दिया गया। कैग ने अपनी रिपोर्ट में इस घोटाले को बाड़ के खेत खाने का आदर्श उदाहरण माना है। रिपोर्ट के मुताबिक इस तरह का मामला पूरे देश में शायद ही कहीं देखने को मिले, जहां सभी संबंधित एजेंसियों ने राष्ट्रीय हित से जुड़े किसी मसले के लिए नहीं, बल्कि खुद के फायदे के लिए अपने अधिकारों का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया। कैग का मानना है कि अब तक इस मामले में हुई जांच नाकाफी है और इस पूरे घोटाले की तह तक जाने के लिए इसकी ठीक ढंग से जांच होनी चाहिए। बात सिर्फ कॉमनवेल्थ या फिर 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की ही नहीं है, आज देश में जितने भी घोटाले हो रहे हैं, उन सभी में बाड़ के खेत खाने वाली बात ही साबित हो रही है। सरकारी धन के दुरुपयोग के खिलाफ कैग की भूमिका को लेकर सरकार के नुमाइंदे भले ही उस पर निशाना साधने में जुटे हों, लेकिन यह संवैधानिक संस्था अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही है और आज देश की आम जनता को भी कैग की अहमियत और उसके कामकाज की जानकारी हो गई है। कैग पर सवाल खड़े करने के बजाय बेहतर यह होता कि सरकार ऐसी संस्थाओं को और मजबूत करने पर ध्यान देती, लेकिन जब तक बाड़ के खेत खाने के सवाल का कोई सही हल नहीं निकलेगा, हालात में सुधार की गुंजाइश कम ही रहेगी।
लेखक शिव कुमार राय वरिष्ठ पत्रकार हैं
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