Menu
blogid : 5736 postid : 5732

चुप्पी साधने की हिदायतों का औचित्य

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

Anjali Sinhaहरियाणा राज्य में सोनीपत जिले के खानपुर गांव के भगत फूलसिंह महिला विश्वविद्यालय की छात्रा के साथ दिनदहाडे़ हुए यौन अत्याचार के मामले को रफा-दफा करने की प्रशासन की कोशिश ने एक बार फिर महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने के तमाम दावों एवं असलियत को उजागर किया है। पीडि़ता को दिनदहाडे़ विश्वविद्यालय के गेट से हॉस्टल के संचालक तथा उसके दो साथियों ने न केवल जोर-जबरदस्ती की, बल्कि उसके साथ यौन दुराचार भी किया। अगर अपराधियों पर कार्रवाई को लेकर लड़कियां सड़क पर नहीं उतरतीं तब तो यह मामला दबा ही रहता। अच्छी बात यह है कि तकरीबन दो हजार से अधिक छात्राओं ने घटना के खिलाफ सोनीपत हाइवे को जाम कर दिया और विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की। घटना के बाद पीडि़ता अपने हॉस्टल पहुंचकर रो रही थी तब उसकी सहेलियों के पूछने पर उसने आपबीती बताई। जब छात्राएं अपने हॉस्टल वार्डेन से इसकी शिकायत करने गई तो वार्डेन का व्यवहार बदला हुआ था, जो किसी भी तरह सही नहीं माना जा सकता। उन्होंने न केवल इस घटना को दबाने की कोशिश की, बल्कि मामले की पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं करने के लिए भी कहा। उन्होंने कहा कि यह सब छोटी-छोटी बातें हैं, इसे मुद्दा बनाओगी तो फिर कहीं शादी नहीं होगी। वार्डेन के रवैये से विचलित छात्राएं जब विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार तथा कुलपति के पास गई तो वहां भी उन्हें चुप रहने की सलाह दी गई। वार्डेन जहां लड़की की छवि खराब हो जाने की दुहाई दे रही थीं तो कुलपति को विश्वविद्यालय की छवि खराब होने की चिंता थी। विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने लड़की के माता-पिता पर भी दबाव बनाया और उन्हें लड़की को अपने घर दिल्ली ले जाने के लिए कहा। कहां तो शिकायत मिलते ही वार्डेन को स्वयं थाने पहुंचकर शिकायत करनी चाहिए थी ताकि लड़कियां अपनी सुरक्षा को लेकर कम से कम आश्वस्त होतीं और उसी तरह रजिस्ट्रार तथा कुलपति को भी संस्थान की छवि की चिंता किए बगैर सक्रिय होना चाहिए था, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।


दोषियों को सख्त व शीघ्र सजा मिले


निश्चित ही ऐसा प्रतीत हो रहा था कि सभी अपराधी के वकील बन गए हैं और पीडि़ता का मुंह बंद करने पर आमादा हैं। बहुत स्वाभाविक था कि प्रशासन द्वारा बलात्कारी को बचाने की इस शर्मनाक कोशिश से क्षुब्ध छात्राओं को आंदोलन का रास्ता चुनना पड़ता तथा विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ कार्रवाई की मांग के लिए ऐसे कदम उठाने पड़ते। यह विचारयोग्य है कि एक तो अत्याचार थमने का नाम नहीं ले रहे, दूसरे घटना होने के बाद कोई कार्रवाई नहीं होती और इन्हें दबाने का प्रयास किया जाता है।


आखिर कब तक इस बात के लिए मशक्कत करनी पड़ेगी कि प्रशासन स्वत: अपनी जिम्मेदारी निभाए और अपराधियों पर मामला दर्ज करने के साथ ही पीडि़ता को न्याय दिलाने के लिए प्रयास करे। देखा तो यह भी जाता है कि मामला दर्ज होने के बाद भी केस को रफा-दफा करने का प्रयास होता है। पीडि़त पक्ष यदि कानूनी प्रक्रिया में अपनी सारी ऊर्जा नहीं झोंक पाया तो अपराधियों को छूट मिल जाती है फिर से कहीं और अपराध करने का प्रोत्साहन भी मिलता है। इस विश्वविद्यालय के संदर्भ में यह भी विचार करने लायक है कि पिछले तीन माह के अंदर ही तीन छात्राओं ने वहां आत्महत्या कर ली है। अभी तक आत्महत्या के कारण स्पष्ट नहीं हो सके हैं। हो सकता है कि इनमें से किसी को विश्वविद्यालय प्रशासन से न्याय मांगना संभव न दिखा हो या अन्य सहपाठी और घर वाले साथ देंगे ऐसा भरोसा न रहा हो जैसा कि हालिया घटना में हुआ। संभव है इसी कारण लड़कियों ने खुलकर न्याय के लिए अपनी आवाज बुलंद की। एक के बाद एक इस तरह की यौन हिंसा की घटनाएं हम पहली बार नहीं पढ़ रहे हैं। ऐसी घटनाएं जिनके चलते पूरे समाज में एक किस्म के आतंक का माहौल बनता जा रहा है, से यही लगता है कि कहीं भी कुछ भी हो सकता है। दहशत भरे इस वातावरण में नाइंसाफी सिर्फ उनके साथ नहीं है, जो प्रत्यक्ष हिंसा की शिकार हुई, बल्कि पूरा स्त्री-समुदाय इस भयाक्रांत वातावरण का शिकार हो रहा हैं। बार-बार इंसान इन घटनाओं के बारे में सोचकर पीडि़त का दर्द महसूस कर सकता है। लोग अक्सर कहते हैं कि यह चौबीसों घंटे सक्रिय मीडिया का कमाल है कि ऐसी घटनाओं की रिपोर्टिग अधिक हो रही है मगर यह एक आंशिक सच्चाई भर है। नवंबर 2011 में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा प्रकाशित आंकड़ों पर गौर करेंगे तो वस्तुस्थिति साफ हो सकती है। इसके मुताबिक विगत 40 सालों में महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों की संख्या में 800 फीसदी बढ़ोतरी हुई है, वहीं दूसरी तरफ अपराध साबित होने की दर लगभग एक तिहाई कम हुई है।


तमाम आधुनिकता के दावों के बावजूद हमारा समाज महिलाओं के प्रति इतना क्रूर क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि आज भी औरत सिर्फ उपभोग की वस्तु है। आखिर ऐसे लोग आसमान से तो टपके नहीं हैं और उनके गंदे विचार और मानसिकता के स्रोत कहीं बाहर नहीं हैं। आखिर यह लोग दबंग, स्वच्छंद और कुछ भी हासिल कर लेने की इच्छा बलवती कैसे कर पाते हैं। यह लोग मिलकर पहले षड्यंत्र रचते हैं, प्लानिंग बनाते हैं फिर शिकार पकड़ते हैं। ऐसी घटनाओं में सीधे शामिल होने वाले लोगों के अलावा भी बड़ी संख्या में लोग होते हैं जिनके लिए औरत सिर्फ एक सेक्स आब्जेक्ट है। वे बलात्कार नहीं भी करेंगे तो अपनी निगाहों और हाव-भाव, भाषा से महिलाओं पर दबाव बनाते हैं। यह लोग न सिर्फ तनाव पैदा करते हैं, बल्कि सामाजिक वातावरण को भी असुरक्षित करते हैं। यह विचित्र बात है कि पुरुष चरित्र को लेकर समाज में कोई मानदंड नहीं है। समाज का निर्माण इस ढंग से हो रहा है कि विभिन्न रूपों में पुरुष का यौन व्यवहार लड़कियों का स्वाभाविक तौर पर पीछा करने वाला माना जाता है। इसमें कुछ हद तक यौन आक्रामकता की भी स्वीकृत होती है। ऐसा टीवी सीरियलों के माध्यम से या फिल्मों के जरिए भी हो रहा है।


पुरुष अपने संस्कार न केवल परिवार के अंदर, बल्कि परिवार के बाहर से भी हासिल करता है। उसमें औरत के लिए बराबरी और सम्मान का भाव नहीं होता है। वह कुंठाओं को पालता है और फिर उसे अभिव्यक्त करने के लिए अवसर की तलाश करता है। वजह चाहे जो हो, लेकिन मुद्दा यह है कि औरत इसका खामियाना क्यों भुगते? ऐसी मानसिकता के लोगों के साथ सख्ती से निपटना होगा, लेकिन शासन और प्रशासन में भी ऐसी कुंठित, सड़ी मानसिकता वाले लोग मिल जाएंगे, जो यहां बैठे ही इसलिए हैं ताकि वे लड़की में ही गलती खोज सकें। लंबे समय से मांग हो रही है कि बलात्कार जैसे जुर्म के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई की जाए और ऐसे मामलों में अपराध साबित होने पर सजा तुरंत दी जाए। मगर ऐसे मामलों पर अमल तभी होता है अथवा बहस तभी की जाती है जब किसी विदेशी के साथ ऐसी ही किसी अत्याचार की घटना सामने आती है और जिसके चलते हमारे देश की छवि खराब होने का खतरा होता है। किशोरावस्था में हुए अत्याचार के मामलों की सुनवाई पीडि़ता के वृद्धावस्था की उम्र तक चलती है जो बहुत दुखद है।


लेखिका अंजलि सिन्हा स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


ब्लॉग लेखन, लेखक ब्लॉग, Hindi blog, best blog, celebrity blog, famous blog, blog writing, popular blogs


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh