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गहराता बिजली संकट

जागरण मेहमान कोना
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इस समय उत्तर भारत और खास तौर पर उत्तर प्रदेश गंभीर बिजली संकट से जूझ रहा है। हरियाणा, मध्य प्रदेश और बिहार में भी हालात सही नहीं हैं। उत्तर प्रदेश में बिजली की कमी के लिए कोयला संकट और केंद्रीय सेक्टर से कम बिजली मिलने को जिम्मेदार माना जा रहा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि भारत जैसे विकासशील देश में बिजली क्षेत्र की वृद्धि दर संतोषजनक नहीं है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने अर्थव्यवस्था के ताजा हालात पर अपनी रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि सरकार बिजली क्षेत्र में सुधार को आगे बढ़ाने के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठा पा रही है। विडंबना यह है कि नई बिजली परियोजनाओं को कोयले की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। साथ ही लंबित परियोजनाओं को पर्यावरण व वन मंत्रालय की शीघ्र मंजूरी भी नहीं मिल पा रही है। रिपोर्ट के अनुसार अगर बिजली क्षेत्र के हालात में सुधार नहीं हुआ तो आर्थिक मंदी और बढ़ सकती है।


बिजली उत्पादन के ताजा आंकडों के अनुसार 11वीं योजना के लिए नई क्षमता जोड़ने का लक्ष्य प्राप्त करने में भी अनेक समस्याएं आ रही हैं। पहले यह लक्ष्य 78,700 मेगावाट क्षमता जोड़ने का था। बाद में इसे घटाकर 62,000 मेगावाट कर दिया गया। पहले चार सालों में 34,462 मेगावाट अतिरिक्त उत्पादन क्षमता जोड़ी गई है। मौजूदा अंतिम वर्ष में 17,600 मेगावाट की नई क्षमता और जुड़ गई है। हमारे देश में बिजली की मांग लगातार बढ़ती जा रही है, यही कारण है कि अब सर्दियों में भी आवश्यकतानुसार बिजली नहीं मिल पाती है। गर्मियां आते-आते देश के बिजलीघर हांफने लगते हैं। बिजली की मांग पूरी करने के लिए राज्य सरकारें तरह-तरह की योजनाएं बनाती हैं लेकिन ये सारी योजनाएं कागजों तक ही सीमित रह जाती हैं। बिजली की आपूर्ति सुधारना एक-दो महीने का काम नहीं है। इसके लिए आधारभूत ढांचे एवं बड़ी परियोजनाओं के क्रियान्वयन की आवश्यकता है। इस व्यवस्था में हम अपनी जिम्मेदारियों से बचकर सारा दोष सरकार पर मंढ़ना चाहते हैं। साथ ही बिजली विभाग के अधिकारी एवं कर्मचारी भी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ते हुए इसी व्यवस्था का हिस्सा बन जाते हैं। स्ट्रीट लाइटें दिन भर जलती रहती हैं लेकिन इन्हें बंद करने या कराने की सुध कोई नहीं लेता। बिजली विभाग के कर्मचारी दिन भर गली-मौहल्लों में घूमते रहते हैं, लेकिन दिन मे जलती हुई स्ट्रीट लाइटें उन पर कोई बिजली नहीं गिरा पाती हैं।


अगर बिजली की इस फिजूलखर्ची को रोक लिया जाए तो काफी हद तक बिजली बचाई जा सकती है। गांवों में भी बिजली की फिजूलखर्ची को रोका जा सकता है। हालांकि शहरों के मुकाबले गांवों में बिजली आपूर्ति बहुत कम है, लेकिन जब गांवों में बिजली आती है तो वहां बिजली चोरी भी जमकर होती है। गांवों में सीमित मासिक बिल होने के बावजूद भी बिजली चोरी एक बड़ी समस्या है। इस व्यवस्था में अनेक ग्रामीण बिजली के तारों पर कटिया डालना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। गांवों में खाना पकाने के लिए इसी बिजली से हीटर चलाना भी आम है। यह कटु सत्य है कि बडे़-बडे़ राजनेता और औद्योगिक संस्थान भी भारी मात्रा में बिजली चोरी कर रहे हैं। यह सारा काम बिजली विभाग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की मिलीभगत से हो रहा है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में जब घर-घर में इलेक्ट्रॉनिक मीटर लग रहे थे तो बिजली विभाग के कर्मचारी सुविधा शुल्क लेकर स्वयं ही जनता को मीटर रीडिंग कम करने का जुगाड़ बता रहे थे। दरअसल, इस मुददे पर हमाम में सब नंगे हैं। हमारे लिए बिजली आपूर्ति सुचारू न होने पर हल्ला मचाना आसान है, लेकिन इसके कारणों पर विचार करना कठिन है। शायद यही कारण है कि हमारे देश में बिजली आपूर्ति की समस्या लगातार बिगड़ती जा रही है। दरअसल, सीएफएल के प्रयोग, एसी के सीमित उपयोग, बेकार जल रही लाइटों को बंद करने तथा बेवजह चल रहे पंखों को बंद करने से काफी मात्रा में बिजली बचाई जा सकती है।


लेखक रोहित कौशिक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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