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पाकिस्तान का संकट

जागरण मेहमान कोना
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जन्म के बाद से अब तक पाकिस्तान में लोकतंत्र सीधा खड़ा नहीं हो पाया। वहां वर्चस्व की लड़ाई में सेना के साथ-साथ न्यायपालिका की भूमिका भी बेहद दिलचस्प रही। आज पाकिस्तान फिर इतिहास दोहराने की स्थिति में पहुंच गया है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अवमानना का दोषी मानते हुए सजा चुका है। हालांकि उनको दी गई सजा कुछ मिनट में ही पूरी हो गई, लेकिन इससे संवैधानिक संकट तो खड़ा ही हो गया। पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (26 अप्रैल) की सुबह फैसला सुनाते हुए प्रधानमंत्री गिलानी को एनआरओ (नेशनल रीकंसीलिएशन ऑर्डिनेंस) मामले में अदालत की अवमानना का दोषी करार दिया और उस समय तक अदालत में रहने की सजा सुनाई जब तक अदालती कार्यवाही खत्म न हो जाए। हालांकि सजा के बाद भी प्रधानमंत्री अदालत से हीरो की तरह बाहर आए और हाथ हिला कर मौजूद लोगों का अभिवादन किया। लेकिन उनके इस प्रदर्शन को आत्मविश्वास का परिचायक नहीं माना जा सकता।


वाह पाक का पाक इंसाफ


संभव है कि यह कृत्रिम प्रदर्शन हो जो लोकतंत्र में तो बहुत ही जरूरी होता है। असल पक्ष तो यह है कि गिलानी की कुर्सी खतरे में है ही और साथ ही लोकतंत्र पर ग्रहण लगने की आशंका भी पैदा हो गई है। हालांकि अब 1958 या 1977 वाली स्थिति नहीं है, इसलिए लोकतंत्र को शायद उस तरह से रौंदा न जा सके। लेकिन न्यायपालिका और सेना के बीच की नजदीकियां थोड़ी चिंताजनक हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि गिलानी को संविधान के अनुच्छेद 63(1)(जी) के तहत दोषी करार दिया गया। इसके बाद कानून और नैतिक रूप से वह प्रधानमंत्री बनने लायक नहीं रह गए हैं। विशेषज्ञ यह भी मान रहे हैं कि अदालत का आदेश भले ही सांकेतिक था, लेकिन यह पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार हुआ है कि किसी प्रधानमंत्री को कुर्सी पर रहते सजा सुनाई गई हो और सजा पूरी करनेके बाद वह कुर्सी पर बना रहा हो। हालांकि सरकारी न्यूज चैनल पीटीवी की तरफ से स्पष्ट किया गया है कि गिलानी इस्तीफा नहीं देंगे।


गिलानी पर राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दोबारा खोलने के लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना का आरोप था। गिलानी ने पहले ही कह दिया था कि कि वह सजा मंजूर करेंगे, लेकिन जरदारी के खिलाफ मामले खोलने के लिए स्विटजरलैंड सरकार को पत्र नहीं लिखेंगे। गिलानी का तर्क था कि राष्ट्रपति पद पर रहते हुए जरदारी के खिलाफ कार्यवाही नहीं की जा सकती क्योंकि उन्हें आपराधिक मामलों में इम्यूनिटी (प्रतिरक्षा) प्राप्त है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को सजा सुनाए जाने के बाद पाकिस्तान में जटिल स्थिति बनती नजर आ रही है। गिलानी अब प्रधानमंत्री के पद पर बने रहने के योग्य नहीं रह गए हैं, लेकिन अभी तक उन्होंने इस्तीफे की घोषणा नहीं की है। अगर गिलानी सजा पाने के बाद भी पद पर बने रहने की कोशिश करते हैं तो न्यायपालिका के साथ तीव्र टकराव पैदा हो सकता है।


चूंकि सुप्रीम कोर्ट को सेना को आदेश देकर कार्रवाई कराने का अधिकार है इसलिए स्थिति को इतनी सहजता से लेने वाला नहीं है। सेना पहले ही कई मुद्दों को लेकर प्रधानमंत्री और जरदारी के खिलाफ है, खासकर प्रधानमंत्री द्वारा रक्षा सचिव लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) खालिद नईम लोधी की बर्खास्तगी, चीनी पत्रकार को दिए गए एक साक्षात्कार में सेना और आइएसआइ की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाब को गैरकानूनी बताना और जरदारी द्वारा ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद देश में तख्तापलट की आशंका जताते हुए अमेरिका से मदद मांगना..आदि। संभव है कि सेना आगे कोई अवसर न छोड़े। अगर गिलानी पद छोड़ भी देते हैं तब भी स्थितियां सुधरने वाली नहीं हैं क्योंकि अगले प्रधानमंत्री पर भी जरदारी के खिलाफ कार्रवाई करने का दायित्व होगा और पीपीपी का कोई भी प्रधानमंत्री ऐसा नहीं कर सकता।


लेखक रहीस सिंह स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं

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