Menu
blogid : 5736 postid : 5675

इंटरनेट पर बेजा नकेल

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

Rajeev chandrasekharसंयुक्त राष्ट्र में पेश भारत के उस प्रस्ताव को वापस लेने की सख्त जरूरत है, जिसमें इंटरनेट पर सरकारी नियंत्रण कायम करने की बात कही गई है। इसके लिए इंटरनेट संबंधी नीतियों की संयुक्त राष्ट्र समिति (सीआइआरपी) में 50 सदस्यीय सरकारी/नौकरशाही निकाय के माध्यम से नियंत्रण का प्रावधान भी किया गया है। यह प्रस्ताव मौजूदा बहुपक्षीय नियंत्रण मॉडल का स्थान लेगा। भारत ने यह प्रस्ताव मूल रूप से अक्टूबर 2011 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा के 66वें सत्र में रखा था और इस पर 18 मई, 2012 को जेनेवा में होने वाली व‌र्ल्ड समिट ऑन द इंफॉरमेशन सोसायटी में चर्चा होने की संभावना है। इस प्रस्ताव का देशभर में 80 करोड़ मोबाइल ग्राहकों तथा इंटरनेट उपभोक्ताओं पर व्यापक असर पड़ेगा। साथ ही यह प्रस्ताव भारत में इंटरनेट के मुक्त विकास की राह की बड़ी अड़चन भी बन सकता है। फिलहाल इंटरनेट गवनर्ेंस की प्रक्रिया में अनेक पक्षों की भागीदारी है, जिनमें इंजीनियर, नागरिक समाज, निजी क्षेत्र, गैरसरकारी संगठन, तकनीकी और शैक्षिक बिरादरी के साथ-साथ सरकार भी शामिल हैं। इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता कि इंटरनेट हमारे दौर में आया ऐसा बदलाव है, जिसने जीवन को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है। लेकिन भारत ने सर्वोच्च स्तर पर केंद्रीकृत अंतरराष्ट्रीय सरकारी व्यवस्था का जो प्रस्ताव रखा है, वह इंटरनेट यानी भौगोलिक सीमाओं से मुक्त नेटवकरें की मौजूदा संकल्पना से एकदम उलट है। ऐसे में कोई भी सरकार इंटरनेट की दुनिया के हिसाब से अत्यंत द्रुत गति से इंजीनियरिंग या आर्थिक फैसले नहीं ले सकती।


सोशल मीडिया पर अंकुश


भारत के इस नजरिये में न सिर्फ अनेक खामियां हैं, बल्कि इससे यह बू भी आती है कि सरकार इंटरनेट पर नियंत्रण अपने हाथों में लेना चाहती है जो स्वतंत्र अभिव्यक्ति और विचारों की आजादी पर अंकुश लगाएगी। साथ ही, यह भी कि सरकार ने अपना यह रुख देश में जनता के स्तर पर परामर्श या बहुपक्षीय समूहों के साथ विचार-विमर्श के बगैर ही किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्पष्ट किया है, जबकि इसके बारे में उनकी राय लेने की भी जरूरत नहीं समझी गई जो इस प्रस्ताव के मंजूर होने पर इसकी वजह से स्थायी रूप से प्रभावित हो सकते हैं। इसके अलावा, यह भारत की बहु-नस्लीय, बहु-सांस्कृतिक लोकतांत्रिक समाज की छवि के भी खिलाफ है। यदि इंटरनेट के विकास से संबंधित इंजीनियरिंग एवं व्यावसायिक फैसलों को किसी वैश्विक विनियामक संगठन के दायरे में लाया गया तो भारत में उत्पादकता, लगातार ऊंचे उठते जीवन स्तर और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर निश्चित रूप से प्रतिकूल असर पड़ेगा। सरकार द्वारा इंटरनेट पर अपना शिकंजा कसने के किसी भी प्रयास का हर कीमत पर विरोध होना चाहिए, भले ही वह ऊपरी तौर पर अनुकूल लगे या अहितकर न भी दिखाई दे।


इंटरनेट प्रशासन पर किसी एक सरकार के प्रभाव को कम करने संबंधी सुधारों को निश्चित रूप से समर्थन देना चाहिए। आधुनिकीकरण और सुधारों की प्रक्रिया रचनात्मक हो सकती है, लेकिन उस स्थिति में नहीं जब अंतिम नतीजे के रूप में हमें ऐसी नई सरकारी नियंत्रण वाली, नौकरशाही से संचालित व्यवस्था मिले जो बहुपक्षीय नियंत्रण आधारित मॉडल से अलग हो। रूस, चीन, सऊदी अरब, क्यूबा और रवांडा जैसे देशों द्वारा संयुक्त राष्ट्र को वैश्विक इंटरनेट नियंत्रक के तौर पर स्थापित करने के प्रयास गंभीर रूप से जारी हैं। इस तरह की कोशिशों से पिछले कई दशकों से जारी सीमित सरकारी हस्तक्षेप की उस नीति को धक्का लगेगा जिसकी बदौलत ही आज इंटरनेट मुक्त और सही मायने में वैश्विक माध्यम के रूप में हमारे सामने है और जिस पर हम सभी किसी न किसी रूप में निर्भर भी हैं। सीआइआरपी के गठन के लिए भारत के प्रस्ताव से उस सफल वैश्विक इंटरनेट नीतिगत तंत्र को झटका लगेगा जिसने आज 2.5 अरब इंटरनेट ग्राहकों का आधार खड़ा कर लिया है और जिससे हर दिन करीब पांच लाख नए ग्राहक जुड़ रहे हैं। इस तरह का प्रस्ताव देने की बजाय भारत को खुद एक सीमारेखा बना लेनी चाहिए और उन प्रस्तावों का पुरजोर विरोध करना चाहिए जो इंटरनेट पर सीधे सरकारी नियंत्रण थोपने को जायज ठहराते हों।


भारत को बहुपक्षीय नियंत्रण मॉडल को मजबूत बनाने की वकालत करनी चाहिए और बहुपक्षीय प्रक्रिया में सुधार की भूमिका का स्वागत करना चाहिए जो आइटीयू (संयुक्त राष्ट्र) के लिए भी गैर-विनियामक भूमिका को शामिल करती हो। समय हाथ से निकल रहा है। हमें तत्काल कोई कदम उठाना चाहिए और जेनेवा में होने वाली बैठक में और इसके बाद नवंबर 2012 में बाकू में आइजीएफ के तत्वावधान में होने वाली चर्चा तथा 2012 के अंत में दुबई में डब्ल्यूएसआइएस की प्रस्तावित बैठक में अपने रुख को बदलना चाहिए। मौजूदा स्थिति में किसी भी किस्म के बदलाव से पहले उस बारे में आम जनता के साथ व्यापक रूप से सलाह-मश्विरा करना जरूरी है। इंटरनेट यूजर्स, ब्लॉगर्स, नागरिक समाज के सदस्यों, तकनीकी समुदायों और निजी क्षेत्र को सरकार के इस कदम का सख्ती से विरोध करना चाहिए और साथ ही बहु-पक्षीय व्यवस्था को मजबूत बनाने के उपाय भी सुझाने चाहिए, ताकि इंटरनेट ढांचे से किसी सरकार या निजी क्षेत्र का नियंत्रण कम किया जा सके।


राजीव चंद्रशेखर राज्यसभा के सदस्य हैं


Read Hindi News


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh