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तीन महीनों के भीतर भारत अंतरमहाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल से संपन्न देशों के अति विशिष्ट क्लब में शामिल हो जाएगा। 3500 किलोमीटर की रेंज वाली अग्नि-4 के सफल परीक्षण ने भारतीय रक्षा वैज्ञानिकों में जबरदस्त आत्म विश्र्वास पैदा किया है और उन्होंने अगले साल फरवरी तक भारत की अति महत्वाकांक्षी अग्नि-5 मिसाइल को दागने की तैयारियां जोरशोर से आरंभ कर दी हैं, जिसकी मारक दूरी 5000 किलोमीटर से अधिक होगी। अग्नि-4 की सफल उड़ान उन पश्चिमी देशों के मुंह पर एक करार तमाचा है, जिन्होंने 1974 के बाद से भारत को सामरिक महत्व के टेक्नोलॉजी के निर्यात पर तरह-तरह की बंदिशें लगा रखी थीं। टेक्नोलॉजी से वंचित किया जाना भारत के लिए एक तरह से वरदान ही साबित हुआ क्योंकि इसने भारतीय वैज्ञानिकों को और ज्यादा जुझारूपन और अधिक संकल्पबद्धता के साथ अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए प्रेरित किया। इन प्रतिबंधों के चलते रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन और रक्षा इकाइयों ने मिसाइल तकनीकों में आत्मनिर्भरता हासिल करने की कोशिशें तेज कर दीं। आज नतीजा सबके सामने है। सितंबर के अंतिम सप्ताह में शौर्य, पृथ्वी और अग्नि-2 मिसाइलों की सफल उड़ान के बाद अग्नि-4 की कामयाबी भारत की मिसाइल टेक्नोलॉजी की परिपक्वता को बखूबी दर्शाती है।
भारतीय मिसाइल कार्यक्रम एक नई ऊंचाई पर पहुंच चुका है और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित नई स्वदेशी टेक्नोलॉजी कसौटी पर खरी उतरी है। भारत के लिए यह कम गौरव की बात नहीं है कि अग्नि-4 की टीम का नेतृत्व एक महिला वैज्ञानिक डॉ. टेसी थॉमस ने किया है, जो अब अग्नि-पुत्री के रूप में लोकप्रिय हो गई हैं। डॉ. थामस के अलावा इस समय करीब 20 अन्य महिला वैज्ञानिक अग्नि कार्यरम से जुडी हुई हैं। जहां तक टेक्नोलॉजी का सवाल है, अग्नि-4 और अग्नि-6 की तुलना दुनिया की सर्वश्रेष्ठ मिसाइलों से की जा रही है। इनमें चीनी मिसाइल शामिल हैं। अग्नि कार्यक्रम से जुड़े शीर्ष अधिकारियों के मुताबिक 17.5 मीटर ऊंची, तीन चरणों वाली अग्नि-5 मिसाइल को 2014 तक सेना में सम्मिलित कर लिया जाएगा। इस मिसाइल के पूरी तरह से संचालन योग्य हो जाने के बाद पूरा उत्तरी चीन भारत की रेंज में आ जाएगा। दो चरण वाली अग्नि-4 मिसाइल वजन में हलकी है। इसे दो से चार परीक्षणों के बाद 2013 तक संचालन योग्य घोषित कर दिया जाएगा।
सेना में तैनाती के बाद 20 टन वजनी अग्नि-4 और 50 टन वजनी अग्नि-5 चीन के खिलाफ भारत की परमाणु प्रतिरोधक क्षमता को निश्चित रूप से और मजबूत करेंगे। परमाणु और मिसाइल ताकत में चीन अभी हमसे बहुत आगे है। उसके पास डोंग फेंग 31ए जैसी अंतरमहाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल है, जिसकी रेंज 11,200 किलोमीटर है और वह भारत के किसी भी शहर को निशाना बना सकता है। लेकिन भारत की दोनों नवीनतम अग्नि मिसाइलें अधिक सटीक हैं, और तीव्र प्रतिक्रिया क्षमता के साथ सड़क से लांच की जा सकती हैं। इन गुणों के कारण संचालन की दृष्टि से ये मिसाइलें भारत को लाभदायक स्थिति में रखती हैं। यहां एक सवाल यह भी पूछा जा सकता है कि क्या भारत भी 10,000 किलोमीटर रेंज वाली मिसाइल बनाएगा। डीआरडीओ का दावा है कि हमारे पास इस रेंज की मिसाइल बनाने की क्षमता है, लेकिन सरकार नहीं चाहती कि हमारे मिसाइल कार्यक्रम को लेकर दुनिया में किसी प्रकार का हड़कंप मचे।
भारत हथियारों की दौड़ में शामिल होने या चीन या पाकिस्तान के साथ आंकड़ों के खेल में उलझने के बजाय सिर्फ यह चाहता है कि किसी संकट के समय देश की रक्षा के लिए उसके पास न्यूनतम विश्र्वसनीय प्रतिरोध क्षमता अवश्य हो। भारत का मुख्य ध्यान अग्नि मिसाइलों को शत्रुओं की बैलिस्टिक मिसाइल रोधी प्रणालियों को भेदने में सक्षम बनाने पर है। डीआरडीओ अग्नि मिसाइलों को अधिक घातक बनाने के लिए ऐसे पेलोड पर काम कर रहा है, जो एक साथ कई परमाणु हथियार ले जा सकता है। बैलिस्टिक मिसाइल रोधी प्रणालियों को पराजित करने के लिए इन हथियारों को अलग-अलग लक्ष्यों की तरफ निर्देशित किया जा सकता है।
लेखक मुकुल व्यास स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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