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डीएनए का विकल्प तैयार

जागरण मेहमान कोना
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वैज्ञानिकों ने एक ऐसी कृत्रिम आनुवंशिक सामग्री तैयार की है, जो सूचना को संग्रहित कर सकती है और डीएनए की तरह पीढ़ी दर पीढ़ी विकसित होती रहती है। यह उपलब्धि चिकित्सा विज्ञान और बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में नई रिसर्च को बढ़ावा देगी। साथ ही यह इस बात पर भी रोशनी डालेगी कि अरबों वर्ष पहले मोलिक्युल्स (अणु-समूह) किस तरह विभाजित हुए और किस तरह उन्होंने जीवन का निर्माण किया। डीएनए का विकल्प बनाकर वैज्ञानिक एक दिन प्रयोगशाला में जीवन के नए रूप सृजित कर सकते हैं। कैंब्रिज स्थित एमआरसी लेबोरेटरी ऑफ मॉलिक्युलर बायोलॉजी के रिसर्चरों ने एक ऐसी रासायनिक विधि विकसित की है, जिससे डीएनए और आरएनए (राइबोन्यूक्लिक एसिड) को छह वैकल्पिक आनुवंशिक पॉलिमर में बदला जा सकता है। इस वैकल्पिक आनुवंशिक सामग्री को एक्सएनए कहा जा रहा है। अभी पृथ्वी पर ज्ञात जीवन के ब्लूप्रिंट डीएनए और आरएनए में छिपे हुए हैं। रिसर्चरों ने पाया कि एक्सएनए डीएनए के साथ मिलकर दोहरी कुंडली बना सकता है और इस तरह तैयार होने वाली संरचना कुदरती आनुवंशिक सामग्री से ज्यादा स्थिर होती है। कृत्रिम जीव वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि छह वैकल्पिक मॉलिक्युल्स भी आनुवंशिक सूचनाओं को संग्रहित कर सकते हैं और उन्हें दूसरी पीढ़ी तक पहुंचा सकते हैं।


प्रयोगशाला में पहले भी वैकल्पिक न्यूक्लिक एसिड बनाए जा चुके हैं, लेकिन इनमें से कोई भी डीएनए की तरह कार्य नहीं कर पाया। अभी तक सभी यही सोचते थे कि हम सिर्फ आरएनए और डीएनए तक ही सीमित हैं। यह पहला मौका है जब कृत्रिम मॉलिक्युल्स जीनों को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने में कामयाब हुए। यह खोज इस सिद्धांत का सबूत है कि जीवन का आरएनए और डीएनए पर आधारित होना जरूरी नहीं है। एक मॉलिक्युल से दूसरे मॉलिक्युल में सूचना की कॉपी करना समस्त जीवन की बुनियाद है। जीव-जंतु अपने वंशजों में अपने जीन पहुंचाते हैं। इन जीनों में थोड़ा-बहुत परिवर्तन होता रहता है और इसके फलस्वरूप जीवन क्रमिक रूप से विकसित होता रहता है। कुछ अपवादों को छोड़ कर सभी ज्ञात जीव-जंतु डीएनए का इस्तेमाल सूचना के वाहक के रूप में करते हैं। रिसर्चरों ने साइंस पत्रिका में अपनी रिसर्च का ब्यौरा दिया है। उनके मुताबिक एक्सएनए को किसी प्रोटीन के साथ जोड़ा जा सकता है। इस काबिलियत का अर्थ यह है कि आनुवंशिक पॉलिमर का प्रयोग दवा के रूप में भी किया जा सकता है। प्रमुख रिसर्चर फिलिप होलिगर का कहना है कि वंशानुक्रम और क्रमिक विकास जीवन के दो मुख्य आधार हैं और ये दो आधार वैकल्पिक आनुवंशिक सामग्री से भी मिल सकते हैं।


रिसर्च पेपर के सहलेखक वाइटर पिन्हीरो का ख्याल है कि उनकी रिसर्च से वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद मिलेगी कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति में डीएनए और आरएनए इतने महत्वपूर्ण क्यों हो गए? इससे परग्रही जीवों की खोज में भी मदद मिल सकती है। अनेक जीव-वैज्ञानिकों का ख्याल है कि पृथ्वी पर प्रथम जीव-रूपों ने आरएनए का ही इस्तेमाल किया था। डीएनए बाद में जैविक प्ररिया से जुड़ा। लेकिन यह कोई नहीं जानता कि सिर्फ इन दो मॉलिक्युल्स का ही चयन क्यों किया गया। क्या वे सूचनाओं को संग्रहित करने के लिए सबसे उपयुक्त माध्यम थे या उनका कोई विकल्प नहीं था। कैलिफोर्निया में ला जोला स्थित स्रिप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक गेराल्ड जोयस का कहना है कि कैंब्रिज के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए नए अध्ययन से कृत्रिम आनुवंशिक विज्ञान और बायोटेक्नोलॉजी के एक नए दौर की शुरुआत हो सकती है। वैकल्पिक रासायनिक संरचनाओं के आधार पर आनुवंशिक प्रणालियां निर्मित करके जीवन के नए रूप उत्पन्न किए जा सकते हैं। जोयस ने कृत्रिम आनुवंशिकी के संभावित खतरों की तरफ भी इशारा किया है। आज हम एक्सएनए और दूसरे कृत्रिम आनुवंशिक मॉलिक्युल्स से वैकल्पिक जीवन बनाने की बातें तो कर रहे हैं, लेकिन हमें ऐसे क्षेत्रों में नहीं कूदना चाहिए जो हमारे जीव विज्ञान को नुकसान पहुंचा सकते हैं।


लेखक मुकुल व्यास स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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