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लाख अफवाहों के बावजूद हमारी यह प्यारी और निराली धरती 21 दिसंबर यानी आज के बाद भी सलामत रहेगी। साढ़े चार अरब वर्ष पहले जन्म लेकर जिस तरह यह लगातार सूर्य की परिक्रमा कर रही है, उसी तरह अब भी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती रहेगी और अपनी धुरी पर उसी तरह घूमती रहेगी। उसी तरह सूर्योदय, सूर्यास्त, रात और दिन होंगे और उसी तरह ऋतुएं बदलेंगीं। पृथ्वी के विनाश का झूठा भ्रम फैलाने वाले लोगों को विज्ञान एक बार फिर आईना दिखा रहा है। यह घटना एक बार फिर साबित कर देगी कि जैसे पत्थर की मूर्तियां दूध नहीं पीतीं, रातों को जागने से जीते-जागते आदमी पत्थर नहीं बन जाते, खारा पानी किसी चमत्कार से मीठा नहीं बन जाता, ओझा-तांत्रिकों की हुंकार से कोई बीमारी ठीक नहीं हो जाती और बिल्लियों के रास्ता काटने, कौवे के बोलने या छिपकली के गिरने से कोई शुभाशुभ फल नहीं मिलते, उसी तरह माया कैलेंडर की आखिरी तारीख के बाद हमारे इस ग्रह का भी अंत नहीं होगा। जब भी ऐसी किसी घटना के बारे में सुनता हूं तो मराठी विज्ञान लेखक दत्तप्रसाद दाभोलकर की विज्ञानेश्वरी की ये पंक्तियां याद आ जाती हैं, कोई हांक ले जाए कहीं भी/ऐसी गूंगी और बेचारी/भेड़-बकरियां मत बनना..मत बनना। यही बात 21 दिसंबर 2012 को दुनिया समाप्त होने की अफवाह पर भी लागू होती है।
किसी ने माया सभ्यता के सदियों पुराने कैलेंडर का हवाला देकर बिना सच सामने रखे, यह अफवाह फैला दी कि उस कैलेंडर में 21 दिसंबर 2012 के बाद की कोई तारीख ही नहीं है। यानी उस दिन के बाद दुनिया खत्म हो जाएगी, लेकिन यह ऐसी ही बात है जैसे 31 दिसंबर को हमारे ग्रेगोरियन कैलेंडर का वार्षिक चक्र पूरा हो जाता है। ठीक वैसे ही माया सभ्यता के कैलेंडर में भी समय का एक चक्र या युग 21 दिसंबर 2012 को पूरा हो जाता है। उससे आगे की गणना नहीं की गई है, क्योंकि पत्थर के गोले पर खुदे उस कैलेंडर की आगे की तारीखों के लिए जगह ही नहीं बची है। सच यह है कि माया कैलेंडर को सही ढंग से पढ़ा ही नहीं गया है। माया सभ्यता के कैलेंडर का गहन अध्ययन करने वाली यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले की मानव-विज्ञानी रोजालिंड जॉयस का कहना है, माया सभ्यता के लोगों ने दुनिया के नष्ट हो जाने की भविष्यवाणी कभी नहीं की। माया कैलेंडर में 1,44,000 दिनों का एक चक्र माना गया है जिसे उन्होंने बक्तून नाम दिया था। ऐसे कई समय चक्रों से युग बनते हैं। यानी हजारों-हजार साल लंबी गणनाएं हैं। उनके कैलेंडर के अनुसार समय सतत रूप से चलता रहता है, उसका अंत नहीं होता। उनके कैलेंडर के हिसाब से वर्तमान समय में 13वां बक्तून चल रहा है जो 21 दिसंबर 2012 को पूरा हो जाएगा। उसके बाद 14वां बक्तून शुरू होगा। इसलिए न दुनिया के समाप्त होने की कोई बात है और न इससे भयभीत होने का कारण। दुनिया समाप्त हो जाने की कई और भी बेसिर-पैर की भविष्यवाणियां हुई हैं। उनमें से एक भ्रामक भविष्यवाणी यह है कि 21 दिसंबर को ही अंतरिक्ष से निबिरु या कोई दसवां ग्रह आएगा और धरती को ध्वस्त कर देगा। यह ग्रह कौन-सा है, कोई नहीं जानता।
असल में सुमेरियाई सभ्यता के लोगों ने प्राचीनकाल में इसकी कल्पना की थी। आज धरती पर स्थित तमाम वेधशालाओं और अंतरिक्ष में घूमती शक्तिशाली दूरबीनों से खगोल वैज्ञानिक अंतरिक्ष के चप्पे-चप्पे को टटोल रहे हैं, लेकिन उन्हें निबिरु नहीं मिला। अगर कोई ग्रह पृथ्वी की ओर आता तो खगोल वैज्ञानिकों को वह बरसों पहले ही दिख गया होता और अब तक आकाश में चंद्रमा के बाद सबसे चमकदार पिंड की तरह दिखाई दे रहा होता। अफवाह फैलाने वालों ने पहले निबिरु के टकराने का समय मई 2003 बताया था, लेकिन पृथ्वी के सही-सलामत रह जाने पर उन्होंने यह तारीख बदलकर 21 दिसंबर 2012 कर दी। अफवाह फैलाने वालों ने सौरमंडल के दूरस्थ बौने ग्रह ईरिस पर भी शक जताया, लेकिन सूर्य से लगभग 3 अरब 61 करोड़ किलोमीटर दूर हमारे सौर मंडल के सीमांत पर आज भी ईरिस 557 पृथ्वी-दिवसों के हिसाब से हर साल सूर्य की परिक्रमा पूरी कर रहा है। एक अफवाह यह भी फैलाई गई कि इस दिन कई ग्रह एक सीध में आ जाएंगे, जिससे पृथ्वी का संतुलन बिगड़ जाएगा और वह नष्ट हो जाएगी। ऐसी ही झूठी अफवाह 1962 में अष्टग्रही के नाम पर फैलाई गई, लेकिन पृथ्वी सही-सलामत घूमती रही। फिर 1982 और नई शताब्दी की शुरुआत के समय वर्ष 2000 में भी यह भ्रम फैलाया गया। पृथ्वी फिर भी सही-सलामत रही। वैज्ञानिक सच यह है कि हर साल दिसंबर में सूर्य और पृथ्वी आकाशगंगा के केंद्र की सीध में आ जाते हैं, लेकिन इससे कोई अनिष्ट नहीं होता। इस तरह इस अफवाह में भी कोई दम नहीं कि हमारी पृथ्वी को 30,000 प्रकाश वर्ष दूर स्थित एक ब्लैक होल निगल लेगा और न इसमें कि क्रिसमस के दौरान पूरी पृथ्वी पर तीन दिन तक अंधेरा छा जाएगा। कुछ लोगों ने कल्पना की एक और ऊंची उड़ान भर कर भ्रम फैलाया है कि पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में बदलाव आ जाएगा जिसके कारण ध्रुव बदल जाएंगे। फिलहाल ऐसा कुछ नहीं होगा।
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चुंबकीय क्षेत्र कभी बदला भी तो इसमें अभी लाखों वर्ष लग जाएंगे। इनके अलावा उल्का पिंड टकराने की बात भी की गई। ऐसी एक घटना साढ़े छह करोड़ वर्ष पहले हुई थी जिससे पृथ्वी पर डायनोसॉरों का विनाश हो गया था। खगोल विज्ञानियों के अनुसार 21 दिसंबर 2012 के आसपास ऐसे किसी उल्का पिंड के टकराने की कोई आशंका नहीं है। भविष्य में यदि ऐसा कोई उल्का पिंड आता भी है तो उसे अंतरिक्ष में ही विस्फोट से नष्ट कर दिया जाएगा। नासा की स्पेसगार्ड सर्वे परियोजना में ऐसे उल्का पिंडों पर कड़ी नजर रखी जा रही है। कुछ लोगों का यह भय भी निर्मूल है कि 21 दिसंबर को सूर्य की विकराल ज्वालाएं पृथ्वी की ओर लपकेंगी। सौर ज्वालाएं भड़कती रही हैं और 11 वर्ष के अंतर पर ये अधिक भभक उठती हैं। इनका अगला 11-वर्षीय चक्र 2012 और 2014 के बीच पूरा होगा। ये भी पहले जैसी ही होंगी। लब्बोलुआाब यह कि 21 दिसंबर 2012 का दिन भी आम दिनों की तरह होगा। इसलिए अफवाहों से डरने की जरूरत नहीं है। सच मानिए तो हमारी दुनिया के नष्ट होने का खतरा आकाशीय पिंडों से नहीं, बल्कि इस धरती पर खुद को सबसे बुद्धिमान मानने वाले मानव से ही ज्यादा है, जो इसके विनाश के लिए परमाणु हथियार बना रहा है, दिन-रात इसकी हरियाली हर रहा है और वायुमंडल में कल-कारखानों व मोटरकारों का विषैला धुआं भर रहा है। हमें अफवाहों के खतरे के बजाय इस खतरे पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। 21 दिसंबर शीत संक्रांति और वर्ष का सबसे छोटा दिन होगा। इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाएगा। आज शीत संक्रांति का जश्न मनाइए और गुनगुनी धूप में जीवन से भरपूर इस निराली धरती को बचाने का संकल्प कीजिए।
लेखक देवेंद्र मेवाड़ी वैज्ञानिक हैं
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Tag: earth,sun,21 दिसंबर, 21 decmber 2012, सूर्य, पृथ्वी,माया सभ्यता,माया कैलेंडर
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