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दरार पाटने की कोशिश इसमें कोई संदेह नहीं कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के भारत दौरे से भारत और ब्रिटेन के संबंधों में एक बार फिर से वसंत आ गया है। इस दौरे में कई समझौतों और द्विपक्षीय रिश्तों को आगे ले जाने के लिए समझबूझ कायम करने के बीच सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि कैमरन पहले ऐसे ब्रिटिश प्रधानमंत्री बन गए हैं जिन्होंने जलियांवाला बाग जाकर न केवल शहीदों को श्रृद्धांजलि दी, बल्कि नरसंहार की उस घटना को शर्मनाक बताया। उनका यह कदम इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि कई कारणों से ब्रिटिश सरकार के प्रति भारत में खराब धारणा बन रही थी। इसकी एक वजह यह है कि भारतीय मूल के लोगों की ब्रिटेन में कटु आलोचना हो रही थी और ब्रिटेन का मीडिया और यहां तक कि कंजरवेटिव पार्टी भी कह रही थी कि भारतीय मूल के लोग जो ब्रिटेन में बस गए हैं वे ब्रिटिश युवकों का रोजगार छीन रहे हैं। मई 2010 में जब ब्रिटेन में गठबंधन सरकार बनी थी तब कंजरवेटिव पार्टी के मुखिया डेविड कैमरन ने लोगों से कहा था कि वोट बैंक के कारण लेबर पार्टी ने बेतहाशा दक्षिण-एशिया के लोगों को ब्रिटेन में लाकर बसा दिया है।
अब वह उनके आने पर पूरी तरह रोक लगा देंगे। इस बीच ब्रिटेन में आर्थिक मंदी बढ़ती गई और कंजरवेटिव पार्टी के ही सदस्यों ने डेविड कैमरन से यह पूछना शुरू किया कि भारत और पाकिस्तान से आकर बसने वाले लोगों पर कब रोक लगाई जाएगी? इस कारण डेविड कैमरन की सरकार ने वीजा नियमों को सख्त बना दिया गया, जिसके कारण यह कहा जाने लगा कि अब भारत के विद्यार्थी आसानी से शिक्षा प्राप्त करने के लिए ब्रिटेन नहीं आ पाएंगे और ब्रिटेन में शिक्षा प्राप्त कर वहां नौकरी प्राप्त नहीं कर सकेंगे। वीजा नियमों पर सख्ती के कारण भारतीय छात्रों के ब्रिटेन जाने का सिलसिला बहुत ही कम हो गया। अनुभव से ब्रिटिश सरकार ने यह पाया कि भारत के जो मेधावी लोग ब्रिटेन में आकर शिक्षा प्राप्त करते थे और ब्रिटेन में ही बस जाते थे उससे ब्रिटेन को अधिक फायदा था, भारतीयों को नहीं। अत: भारत आते ही ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने वीजा रियायतों की घोषणा की। नियमों में ढील देते हुए उन्होंने कहा कि अब ब्रिटेन जाने वाले भारतीय छात्रों की कोई सीमा नहीं रहेगी। हाल हाल तक यह देखा गया था कि लंदन में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए जो भारतीय छात्र जाते थे वे अधिकतर साउथ हॉल जैसी सस्ती जगहों में रहते थे। एक कमरे में 6-7 विद्यार्थी किसी तरह रह लेते थे और लंदन की दुकानों में पार्ट टाइम काम करके अपना गुजर बसर कर लेते थे। कुछ लोग तो टैक्सी चलाकर भी अपना गुजारा कर लेते थे।
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अचानक कुछ महीनों पहले ब्रिटिश सरकार ने यह नियम बना दिया कि ब्रिटेन में जो प्रवासी पार्टटाइम काम कर रहे हैं वे सप्ताह में 10 घंटे से अधिक काम नहीं कर पाएंगे। इसका सीधा मतलब था कि प्रवासी छात्रों के लिए अब ब्रिटेन में कोई जगह नहीं है। ब्रिटिश और भारतीय मीडिया ने ब्रिटिश सरकार के इस नियम की कटु आलोचना की थी। ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने जिस तरह वीजा के नियमों में ढील दे दी है उससे आशा की जाती है कि उसी तरह वह भारतीय मूल के छात्रों को ब्रिटेन में पार्टटाइम काम करने में कोई रोक नहीं लगाएंगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि ब्रिटेन की आर्थिक हालत बहुत ही कमजोर है और उसे विदेशी निवेश की सख्त जरूरत है। कैमरन ने यह मान लिया कि विदेशी निवेश का सबसे अच्छा स्रोत भारत हो सकता है। इसीलिए उन्होंने यह घोषणा कर दी कि जो भारतीय निवेशक ब्रिटेन जाएंगे उन्हें उसी दिन वीजा मिल जाएगा। जिन लोगों ने हाल में ब्रिटेन की यात्रा की है उन्होंने यह देखा होगा कि भारतीय मूल के लोग धड़ल्ले से ब्रिटिश कंपनियों को खरीद रहे हैं। यहां तक कि लंदन के बड़े-बड़े और नामी पांच सितारा होटलों के मालिक भी अब भारतीय हो गए हैं। यदि यह रफ्तार जारी रही तो निश्चय ही ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक भारतीय उद्योगपतियों और व्यापारियों के सहयोग पर निर्भर करेगी। ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक रूप से एलान किया कि भारत तेजी से आर्थिक विकास कर रहा है और इसमें कोई संदेह नहीं कि 2030 तक यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी। भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र है और ब्रिटेन सबसे पुराना ब्रिटेन में भारतीय मूल के 15 लाख लोग हैं। उनके साथ जो 100 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल आया है उसमें भारतीय मूल के कई सदस्य हैं। अत: यह स्पष्ट है कि ब्रिटेन भारत के साथ अपने संबंधों को हर दृष्टिकोण से मजबूत करना चाहता है।
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ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने यह घोषणा की कि वह भारत में मुंबई और बेंगलूर के बीच उभरते शहरों को बसाने की योजना बनाएंगे। इस 1000 किलोमीटर लंबे गलियारे पर ब्रिटेन 25 अरब डालर खर्च करने की योजना बना रहा है। गलियारे में 10 लाख घर, 120 स्कूल, 10 कॉलेज और अस्पताल होंगे। ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने मनमोहन सिंह से वायदा किया है कि इटली की हेलीकॉप्टर कंपनी के सौदे में दी गई घूस की जांच में ब्रिटेन पूरी तरह मदद करेगा। ब्रिटेन के साथ भारत का रिश्ता बहुत पुराना है। कुछ गलतफहमियों के कारण पिछले कुछ अरसे से इस रिश्ते में दरार आ गई थी। सच यह है कि ब्रिटेन में गठबंधन सरकार ठीक ठाक नहीं चल रही है। यूरोप के अन्य देशों की तरह ब्रिटेन की आर्थिक हालत भी जर्जर है। ऐसे में ब्रिटिश प्रधानमंत्री का यह सोचना कि भारत के साथ आर्थिक संबंधों को मजबूत करने से उनके देश की अर्थव्यवस्था सुधर सकती है, शत-प्रततिशत सही है। इसमें कोई संदेह नहीं कि ब्रिटेन के साथ मजबूत आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध होने में दोनों का भला है।
इस आलेख के लेखक डॉ. गौरीशंकर राजहंस हैं
Tags: economic and politics, politics, politics in India, डेविड कैमरन, ब्रिटिश प्रधानमंत्री
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