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नाकेबंदी का सिलसिला

जागरण मेहमान कोना
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92 दिन के बाद जब सदर हिल्स डिस्टि्रक्टहुड डिमांड कमेटी (एसएचडीडीसी) ने 31 अक्टूबर, 2011 को दो राजमार्गों- इम्फाल-दीमापुर और इम्फाल-सिल्चर की नाकाबंदी हटा ली तो मणिपुर के लोगों ने राहत की सांस ली। लेकिन एसएचडीडीसी द्वारा नाकेबंदी खत्म करने के फौरन बाद जब यूनाइटेड नगा काउंसिल (यूएनसी) ने विरोध में नाकेबंदी की घोषणा की, तो लोगों की उम्मीदों पर पानी फिर गया। 121 दिन बाद यह नाकेबंदी अस्थायी रूप से हटा ली गई है। ऐसा प्रधानमंत्री की आगामी यात्रा को देखते हुए किया गया है। हालांकि यात्रा के बाद नाकेबंदी फिर से शुरू होने की आशंका बनी हुई है। मणिपुर एक छोटा सा पर्वतीय राज्य है। केवल 22,327 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल वाले मणिपुर में इम्फाल का भौगोलिक क्षेत्र कुल क्षेत्र का करीब दसवां हिस्सा है। तीन प्रमुख समुदायों में से इम्फाल घाटी में रहने वाले मेईतेई सबसे बड़ा है, जबकि नगा और कुकी पर्वतीय क्षेत्रों में रहते हैं। भारत सरकार और एनएससीएम (आइएम) के बीच बातचीत नाज़ुक दौर में पहंुच गई है। ऐसे में, यूनाइटेड नगा काउंसिल ने भी मणिपुर में नगाओं के लिए सरकार के प्रशासनिक दायरे से बाहर किसी वैकल्पिक व्यवस्था की मांग उठाई है। अत: नगा आर्थिक नाकेबंदी के जल्दी खत्म होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। लगता है, पहले ही से अपने लिए गृहप्रदेश की मांग कर रहे कुकियों को गर्म लोहे पर चोट करने का अवसर मिल गया है।


सदर हिल्स डिस्टि्रक्टहुड डिमांड कमेटी के तहत कुकियों ने सदर पर्वतीय जिले के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग पर अनिश्चितकालीन आर्थिक नाकेबंदी तब तक जारी रखने का फैसला किया है, जब तक कि राज्य सरकार, राज्य की जिला पुनर्गठन समिति की रिपोर्ट मिलने के बाद उनकी मांग को पूरा नहीं करती। राज्य को 121 दिनों की आर्थिक नाकेबंदी के दौरान ढाई सौ करोड़ रुपए के रोजाना के नुकसान के हिसाब से करीब 30,000 करोड़ रुपये का अनुमानित नुकसान हुआ है और मूल्यवृद्धि तथा वस्तुओं की कमी के चलते यह नुकसान कई गुना अधिक हो जाएगा। इस दौरान यहां खाद्य पदार्थो के साथ-साथ गैस और पेट्रोल के दाम बेहिसाब बढ़ गए थे। पेट्रोल 300 रुपये लीटर और रसोई गैस का सिलेंडर 2000 रुपये तक में बिका। हालात फिर से न बिगड़ जाएं इसके लिए सरकार को सबसे पहले तो नाकेबंदी की संभावना वाले पर्वतीय जिलों में उचित प्रशासन बहाल करना होगा, जिनकी काफी समय से उपेक्षा होती रही है। यहीं सेना की प्रमुख भूमिका है। बढ़ते विद्रोह के चलते मणिपुर में सेना को लंबे अरसे से सिविल प्रशासन की मदद के लिए बुलाया जाता रहा है।


सेना द्वारा लगातार क्षेत्र-प्रधान आपरेशन चलाने के बाद, हर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस समारोहों में राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाना संभव हो पाया है। इसके अलावा सेना के समक्ष आत्म-समर्पण करने वाले उग्रवादियों की संख्या में लगातार वृद्धि होती रही है और यह प्रक्रिया अभी भी जारी है। परिणाम यह हुआ है कि हिंसा के स्तर में काफी कमी आई है। राज्य सरकार को नए तरीके सोचना होगा कि पर्वतीय इलाकों में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं जैसी जन सेवाएं उपलब्ध कराने का तरीका क्या हो सकता है। इस कठिन कार्य में बुनियादी ढांचा, संपर्क और रसद की लगातार सप्लाई जारी रखने में सेना की मदद ली जा सकती है। और फिर, जब तक राज्य में राष्ट्रीय राजमार्गों पर प्रस्तावित राष्ट्रीय राजमार्ग संरक्षण बल तैनात नहीं किया जाता, तब तक राजमार्गों की सुरक्षा और सप्लाई जारी रखने की जिम्मेदारी, विशेष मामले में सेना को सौंपी जा सकती है। साथ ही यह भी जरूरी है कि सेना को किसी भी इमरजेंसी से निपटने के लिए जरूरी कानूनी संरक्षण भी प्रदान किया जाए।


लेखक बीबी शर्मा स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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