Menu
blogid : 5736 postid : 3526

गंभीर होतीं सामरिक चुनौतियां

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

Uday Bhaskarअनेक कारणों से नए साल में भारत के लिए सामरिक क्षेत्र में मुश्किलें बढ़ती देख रहे हैं सी. उदयभाष्कर


वर्ष 2011 भारत के लिए परेशानियों का साल रहा। साल का अंत भारी हंगामे से हुआ, जबकि इसकी शुरुआत राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता के लिए भारत के यशगान से हुई थी। यह वह समय था जब विश्व के अनेक भागों में जनांदोलन भड़के हुए थे। अरब विद्रोह, यूरोप व अमेरिका में आर्थिक संकट, अफ-पाक क्षेत्र में भारी मारकाट और अस्थिरता तथा ईरान व चीन पर सामाजिक असंतोष का साया मंडरा रहा था। भाजपा और कांग्रेस में राजनीतिक मुकाबले के बावजूद यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि देश की राजनीतिक स्थिरता पर कोई बड़ा खतरा नहीं मंडरा रहा है। निकट भविष्य में सरकार के गिरने की कोई आशंका नहीं है।


विडंबना यह है कि 26 दिसंबर को लंदन में सीईबीआर की रिपोर्ट में भारत की उजली तस्वीर पेश की गई है। रिपोर्ट के अनुसार भारत के आर्थिक उदय का दौर आगे भी जारी रहेगा और 2020 तक भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। भारत से आगे अमेरिका, चीन, जापान और रूस होंगे। 2011 में भारत का सकल घरेलू उत्पादन 1843 अरब डॉलर से बढ़कर 2020 में 4500 अरब डॉलर हो जाएगा। दूसरे शब्दों में एक दशक में भारत की संपन्नता ढाई गुना बढ़ जाएगी। चुनौती यह सुनिश्चित करना होगी कि यह संवृद्धि किस प्रकार समान व समावेशी हो। इस लक्ष्य पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हमेशा जोर देते रहते है, किंतु इस दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठाए जा रहे।


2012 से 2020 के कालखंड में भारत को जटिल सुरक्षा और सामरिक चुनौतियों से जूझना होगा। इन्हे तीन वर्गो में बांटा जा सकता है। इनमें प्रमुख है घरेलू स्तर की चुनौती, जिसे माओवाद या अतिवामपंथ कहा जाता है। यह मेरे विचार में सबसे गंभीर आंतरिक चुनौती है। इसका सीधा संबंध कमजोर, असंतुलित और अपर्याप्त विकास से है। जैसे-जैसे भारत संपन्न होता जा रहा है वैसे-वैसे अमीरों और गरीबों के बीच की खाई भी चौड़ी होती जा रही है। असमान विकास के कारण भारत में करोड़ों बेरोजगारों की फौज पैदा हो गई है। विपन्नता और गरीबी से उपजा असंतोष व आक्रोश वर्ग संघर्ष को बढ़ावा दे रहा है। आंतरिक सुरक्षा से ही संबद्ध एक और मुद्दा है आतंकवाद। 26/11 सरीखे हमले की पुनरावृत्तिका भय बना हुआ है। पाकिस्तान 1990 से ही लश्कर और जैश जैसे आतंकी संगठनों के माध्यम से इस्लामिक विचारधारा को विकृत रूप में फैला रहा है और इसे भारत के खिलाफ छद्म युद्ध के हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है। इन नापाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए पाकिस्तान भारत में असंतुष्ट तबकों का भी इस्तेमाल कर रहा है। 2014 में अमेरिका की अफगानिस्तान से विदाई की घड़ी नजदीक आने के साथ-साथ यह चुनौती और अधिक गंभीर होगी।


इस क्षेत्र में वर्तमान परिदृश्य बहुत धुंधला है। पाकिस्तान में सैन्य व राजनीतिक नेतृत्व में जारी टकराव और अफगानिस्तान में करजई सरकार की चुनौतियों से निपटने में अक्षमता को देखते हुए 2012 के हालात बेहद निराशाजनक नजर आ रहे है। तालिबान और वहाबी इस्लाम के समर्थन वाले दक्षिणपंथी इस्लामिक तत्व विभिन्न हलकों में पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में फैले हुए है। पाकिस्तान और बांग्लादेश के अलावा चीन और हाल ही में मालदीव में भी इन्होंने अपनी गतिविधियां तेज की है। कम से कम एक दशक तक भारत को इस चुनौती से जूझना होगा। इससे निपटने के लिए भारत को राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक पहल का सही संयोजन बनाना होगा। मुंबई आतंकी हमलों के बाद की तैयारी से तो यही संकेत मिलता है कि भारत ने लंबे समय तक आतंकवाद झेलने के बाद भी इससे कुछ नहीं सीखा। सामरिक स्तर पर भारत के सामने प्रमुख चुनौती चीन का उदय है। अगले दशक तक दोनों एशियाई दिग्गज तेज गति से विकास करेगे हालांकि चीन के विकास की गति अधिक होगी। 2020 तक चीन का सकल घरेलू उत्पाद 17880 अरब डॉलर पहुंचने का अनुमान है। इस प्रकार चीन भारत के मुकाबले चार गुना अधिक संपन्न होगा। इतिहास गवाह है कि जब कोई देश संपन्न होता है तो वह सुरक्षा और सैन्य पर अधिक खर्च करता है। चीन भी इसका अपवाद नहीं है। वर्तमान में जहां भारत का रक्षा बजट 40 अरब डॉलर के करीब है, वहीं चीन का इससे चार गुना अधिक है। सेना का अंतर भी चीन के पक्ष में बढ़ता जा रहा है। 1962 के युद्ध से अनसुलझा सीमा विवाद पचास साल पुराना हो गया है और अब इसको लेकर तकरार बढ़ने लगी है।


जल्दी ही चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार हो जाएगा और आने वाले समय में आर्थिक मोर्चे पर अंतरनिर्भरता बढ़ती चली जाएगी। जहां तक भारत की सैन्य ताकत का संबंध है, सामरिक सूत्र दिल्ली के वाशिंगटन और मास्को के साथ संबंधों पर काफी-कुछ निर्भर करेगे। यह शर्मिदगी की बात है कि भारत सैन्य सामग्री का विश्व का सबसे बड़ा आयातक है और इसके पास घरेलू निर्माण और डिजाइन की क्षमता न के बराबर है। भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती है राजनीतिक वर्ग का बड़ी चुनौतियों को लेकर बेपरवाह होना। राष्ट्रीय सुरक्षा बाधाओं को स्वीकार नहीं करती और इन बाधाओं को दूर करने के लिए संसद को रचनात्मक रुख अपनाना होगा। संभवत: 2012 में इनका हल निकल जाए।


लेखक सी. उदयभाष्कर सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh