Menu
blogid : 5736 postid : 6688

दाखिले बढ़े, पर गुणवत्ता घटी

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

ग्रामीण स्कूलों में जो बच्चे कक्षा पांच में पढ़ रहे हैं, उनमें से लगभग आधे दो अंकों वाले जोड़ व घटाने के सवाल भी हल नहीं कर सकते हैं। यही स्थिति पढ़ने को लेकर है कि इन कक्षाओं के आधे से अधिक बच्चे कक्षा दो की पाठ्यपुस्तक भी नहीं पढ़ सकते हैं। यह स्थिति निश्चित रूप से चिंताजनक है। शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के दो साल बाद निश्चित रूप से ग्रामीण स्कूलों में छात्रों की संख्या में इजाफा हुआ है और शैक्षिक ढांचे में सुधर आया है, लेकिन शोध अध्ययनों से मालूम हो रहा है कि बच्चों में लिखने, पढ़ने और बुनियादी सवाल हल करने की क्षमता में जबरदस्त गिरावट आई है। गैर सरकारी संगठन प्रथम ने देश में शिक्षा की स्थिति से संबंधित रिपोर्ट (एएसईआर-2012) तैयार की है, जिसे गत 17 जनवरी को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री एमएम पल्लवराजू ने दिल्ली में जारी किया। इस रिपोर्ट में बहुत ही चौंका देने वाले और चिंताजनक नतीजे सामने आए हैं। रिपोर्ट के अनुसार तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और झारखंड में सबसे कम बच्चे लिखे अक्षरों को पढ़ पाते हैं और छत्तीसगढ़ व उत्तर प्रदेश के बच्चे गणित में सबसे ज्यादा फिसड्डी हैं। पिछले साल के अंतिम महीनों में किए गए इस सर्वेक्षण के दायरे में 3-16 वर्ष आयु वर्ग के लगभग 6 लाख बच्चे और 3.3 लाख घरों को शामिल किया गया था। यह सर्वेक्षण देश के 567 जिलों के 16,000 से अधिक गांवों में किया गया था। इस सर्वे में पिछले दो सालों के दौरान बच्चों की शिक्षा के स्तर में खासकर गणित में बहुत ज्यादा पतन देखने को मिला। ध्यान रहे कि 2010 में कक्षा पांच के 70.9 प्रतिशत बच्चे गणित के घटाने के सवाल कर लिया करते थे, लेकिन 2011 में यह प्रतिशत गिरकर 60 रह गया और 2012 में यह और गिरा व 53.5 फीसद रह गया। सबसे अधिक चिंता की बात तो यह है कि इन बच्चों में से 20 प्रतिशत ऐसे हैं, जो दो अंकों के नंबर जैसे 10, 11 आदि को भी पहचान नहीं पाते।


Read:आर्मस्ट्रांग की स्वीकारोक्ति


प्रथम के सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि 2010 में कक्षा पांच के 10 में से 7 विद्यार्थी दो अंकों वाले घटाने के सवालों को हल कर लिया करते थे, लेकिन 2012 में 10 में से केवल 5 छात्र ही हल कर पाए। हैरत की बात यह है कि यह पतन उस समय देखने को मिल रहा है, जब निजी और सरकारी दोनों स्कूलों में छात्रों की संख्या बढ़ती जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल जाने वाले छात्रों की संख्या बढ़कर 96.5 प्रतिशत हो गई है, जिसमें लगभग 45 प्रतिशत बच्चे निजी स्कूलों में जाते हैं या प्राइवेट ट्यूशन लेते हैं। अगर कक्षा तीन और कक्षा पांच में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के शिक्षा स्तर को विभिन्न राज्यों में देखा जाए तो तमिलनाडु में 48.6 प्रतिशत विद्यार्थी कक्षा एक के स्तर की पाठ्य पुस्तकों को पढ़ सकते हैं और 38.6 प्रतिशत बच्चे जोड़ और घटाने के दो अंकों के सवालों को हल कर सकते हैं। अन्य राज्यों में यह स्थिति और खराब है। यह पढ़ना और गणित के सवालों को हल करने का संबंध पांचवीं कक्षा के छात्रों का दूसरी कक्षा के छात्रों के पाठ्यक्रम से है। दूसरे शब्दों में पांचवी कक्षा का छात्रा अपने स्तर के पाठ्यक्रम को तो हल कर ही नहीं सकता है। इसलिए यह प्रश्न प्रासंगिक है कि आखिर शिक्षा के स्तर में इतना पतन क्यों हो रहा है? यह प्रश्न इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि निजी स्कूलों में भी स्थिति कमोबेस सरकारी स्कूलों जैसी ही है। इस सिलसिले में एक बात तो यह समझ में आती है कि बच्चे निजी स्कूलों में जरूर जा रहे हैं, लेकिन उनके शिक्षा स्तर में सुधार इसलिए नहीं हो रहा, क्योंकि निजी स्कूलों में भी वही कुछ हो रहा है, जो सरकारी स्कूलों में होता है।


Read:कम समय में बड़ी चुनौती


अध्यापकों का मन पढ़ाने में नहीं है या वे अयोग्य हैं। यह भी देखने में आया है कि अध्यापकों की दिलचस्पी केवल पाठ्यक्रम को पूरा करने में रहती है, न कि इस बात में कि बच्चे शिक्षित व समझदार बनें। इसलिए जरूरत इस बात की है कि फोकस सिलेबस के बजाय लर्निग पर होना चाहिए। साथ ही जोर परीक्षाओं की बजाय बच्चों के नियमित मूल्यांकन पर होना चाहिए। यह एक अच्छी बात है कि लगातार चार सालों से छह से 14 वर्ष के आयु वर्ग में 96 प्रतिशत से अधिक बच्चे स्कूल जा रहे हैं, लेकिन अगर इनके शिक्षा स्तर को सुधारने पर भी बल दिया जाए तो ज्यादा अच्छा रहेगा। साथ ही इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि राजस्थान और उत्तर प्रदेश में 11 से 14 वर्ष के आयु वर्ग की लड़कियां स्कूल कम क्यों जा रही हैं? पिछले साल इस आयु वर्ग की लड़कियों में करीब 11 प्रतिशत ने स्कूल जाना छोड़ दिया।



लेखिका वीना सुखीजा स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं



Read More:

एकतरफा शांति प्रयास का सच

पाकिस्तान का जटिल संकट

मोक्षदायिनी को बचाना होगा



Tags:education system, education system in india, india, भारत, भारत में शिक्षा, शिक्षा

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh