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असंवैधानिक है अल्पसंख्यक आरक्षण

जागरण मेहमान कोना
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अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण की घोषणा पर जागरण के सवालों के जवाब दे रहे हैं भाजपा महासचिव रविशंकर प्रसाद


लोकपाल विधेयक व पिछड़ा वर्ग आरक्षण में अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने के सरकार के फैसले से राजनीति गरमाई हुई है। सवाल राजनीतिक भी उठ रहे हैं और सवैधानिक भी। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता तथा भाजपा के महासचिव व मुख्य प्रवक्ता रविशकर प्रसाद का दो टूक कहना है कि धार्मिक आधार पर आरक्षण पूरी तरह असवैधानिक है। उन्होंने इसे उत्तर प्रदेश के चुनावों से पहले वोट बैंक की खतरनाक राजनीति करार देते हुए अल्पसंख्यकों को भी आगाह किया है। दैनिक जागरण के रामनारायण श्रीवास्तव ने प्रसाद से इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा की। प्रस्तुत हैं चर्चा के प्रमुख अंश-


भाजपा ने पिछड़ी जातियों के लिए मडल आयोग का समर्थन किया था, अब अल्पसंख्यक आरक्षण का विरोध क्यों?

भारत के सविधान में धारा 15 व धारा 16 में मौलिक अधिकारों में साफ लिखा हुआ है कि जो सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए हैं उनके विकास की कोशिश की जाए। उनको सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलेगा, इसका पूरा समर्थन करते हैं। अगर अल्पसंख्यक वर्ग के लोग सामाजिक रूप से पिछड़े हैं तो उनको आरक्षण मिलना चाहिए। भारत का सविधान उपासना पद्धति व धर्म के आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं देता। सरकार का अभी का जो निर्णय है उसमें अल्पसंख्यक आधार पर ही आरक्षण का एक सब कोटा बनाया गया है। धर्म व उपासना पद्धति के आधार पर इस तरह कोटा बनाना असवैधानिक है। इससे गैर अल्पसंख्यक पिछड़े व अति पिछड़ों का हिस्सा कमजोर होगा।


आपको नहीं लगता है कि मुस्लिम समुदाय काफी पिछड़ा हुआ है और उसे आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए?

अगर ऐसा कुछ करना है तो विधि सम्मत व सवैधानिक तरीके से ही किया जाए। एक बड़ा सवाल यह भी है कि साठ साल से मुसलमानों के वोट की राजनीति करने वालों ने उन्हें क्या दिया है? उनके लिए शिक्षा, रोजगार, स्वावलबन जरूरी है। लेकिन यह सब वोट के लिए चुनाव के पहले ही क्यों याद आता है? इस तरह की राजनीति से अल्पसंख्यकों का भला नहीं होगा। वह इस देश के हिस्से हैं। उनका सम्मान है, उनके लिए सद्भाव है, उनके विकास के लिए सहयोग करेंगे, लेकिन उन्हें भी समझना चाहिए कि वोट के लिए अपना उपयोग नहीं होने देंगे।


जातीय आधार पर आरक्षण को सही मानते हैं तो धार्मिक आधार पर यह गलत क्यों है?

इसलिए, क्योंकि भारतीय सविधान में साफ लिखा हुआ है कि धर्म व जाति के आधार पर विभाजन नहीं किया जाएगा। अगर कुछ जातिया पूरी की पूरी पिछड़ी हैं, अति पिछड़ी हैं तो उससे कोई दिक्कत नहीं होगी। यह एक सच्चाई है कि अनुसूचित जातिया व जनजातिया बहुत पिछड़ी हैं, लेकिन यहा तो अल्पसंख्यक आधार पर पिछड़ों के बीच में एक वर्गीकरण किया गया है, जो अनुचित है।


आपने अनुसूचित जाति के आरक्षण की बात कही, उसमें भी दलित-इसाई आरक्षण के बारे में बहस छिड़ी हुई है?

भारत के सविधान में साफ लिखा हुआ है कि अनुसूचित जाति के आरक्षण का लाभ उन्हें ही मिलेगा, जो हिंदू हैं। इसकी सवैधानिक व्याख्या में सिख, बौद्ध व जैन भी आते हैं। यह इसलिए, क्योंकि सविधान निर्माताओं ने देखा कि हजारों साल से हिंदू समाज में दलित भेदभाव के शिकार रहे। ऐसा भेदभाव इसाई व मुस्लिम समुदाय में नहीं है। इसलिए दलित इसाई व दलित मुस्लिम की बात कहना सवैधानिक नहीं है। साथ ही साठ साल से इस बारे में देश में सवैधानिक सर्वानुमति रही है, सरकार चाहे किसी की भी क्यों न रही हो।


लोकपाल विधेयक में भी अल्पसंख्यकों को आरक्षण दिया गया है। भाजपा उसका विरोध कर रही है। क्या यह विरोध राजनीतिक है?

सरकार जानबूझकर राजनीतिक दबाब में ऐसा विधेयक लेकर आती है जो कोर्ट में अटक जाए। सविधान में आरक्षण के बारे में स्पष्ट व्यवस्था है। यह सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े वगरें को सरकारी नौकरियों में मिलता है। सवैधानिक सस्थाओं में आरक्षण नहीं है। हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, कैग, सीवीसी, चुनाव आयोग, लोकसेवा आयोग में आरक्षण नहीं है, क्योंकि यह नौकरी वाली सस्थाएं नहीं, बल्कि सवैधानिक सस्थाएं हैं। जब लोकपाल को सवैधानिक सस्था बना रहे हैं वहा आरक्षण पूरी तरह असवैधानिक है। इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे? अगर कल कोई आतकवादी कहे कि न्यायपालिका में आरक्षण नहीं है, इसलिए उसे न्याय नहीं मिलेगा? कोई यह कहे कि मैं इसलिए केंद्रीय सेवा में नहीं आ सकता, क्योंकि लोकसेवा आयोग में आरक्षण नहीं है? चुनाव आयोग पर भी सवाल उठ सकते हैं। चुनाव आयोग में लिगदोह व कुरैशी क्या किसी आरक्षण के कारण मुख्य चुनाव आयुक्त बने?


पाच राज्यों के विधानसभा चुनाव में अल्पसंख्यक आरक्षण के मुद्दों के क्या राजनीतिक परिणाम होंगे?

देखिए, आपकी जब साख गड़बड़ा जाती है तो उस पर कोई भी कलेवर लगाइए साख नहीं बनती है। आज का भारत 2011 का भारत है। जनता सब समझती है और जानती है। वोटों के लिए जानबूझकर यह विभाजन किया गया है। महंगाई, भ्रष्टाचार, आतकवाद, कुशासन, चाहे वह सप्रग का हो, मायावती का हो या मुलायम सिह का, इससे पीड़ित जनता इस क्षणिक दो महीने की वोट बैंक की राजनीति के झासे में आ जाएगी, ऐसा मैं नहीं मानता।


इसका मतलब क्या यह माना जाए कि भाजपा गैर अल्पसंख्यक पिछड़ा वर्ग के हितों को चुनावी मुद्दा बनाएगी?

हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि जो अल्पसंख्यक पिछड़े होने की वजह से आरक्षण के दायरे में आते हैं उनका हम समर्थन करते हैं, लेकिन अल्पसंख्यकों का वर्गीकरण कर व्यापक हिंदू समाज के पिछड़ों व अति पिछड़ों के हक को मारा जाएगा तो हम इसका विरोध करेंगे।


आपके सहयोगी जनता दल ने तो इससे भी आगे बढ़कर रंगनाथ मिश्र आयोग की अल्पसंख्यकों को 15 फीसदी आरक्षण दिए जाने की मांग की है?

रंगनाथ मिश्र आयोग दलित ईसाई व दलित मुसलमानों के मुद्दे पर बना था। उस पर हमारे व उनके बीच तमाम मुद्दों पर मतभेद हैं, लेकिन मैं यह भी कहना चाहूंगा कि सामाजिक न्याय आंदोलन से उपजी राजनीति की सभी ताकतों को इस तरह के असवैधानिक आरक्षण का विरोध करना चाहिए।


सविधान में तो 50 फीसदी आरक्षण की ही अनुमति है, लेकिन कई राज्यों में तो इससे ज्यादा है?

वह मामला अभी सुप्रीमकोर्ट में सविधान पीठ के सामने लबित है। कभी भी धर्म आधारित आरक्षण को अनुमति नहीं दी गई। जनता एक मजबूत लोकपाल की जरूरत महसूस करती है, जिसका भाजपा पूरा समर्थन करती है। अब यह सरकार इस पूरे फोकस को बदलने के लिए इस तरह की राजनीति कर रही है।


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