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चीन के साथ भारत के संबंध नए चरण में प्रवेश कर गए हैं। नई दिल्ली ने हनोई के साथ संबंध प्रगाढ़ कर दक्षिण चीन सागर की अंतरराष्ट्रीय सीमा में तेल खोज का काम शुरू कर दिया है। पिछले दिनों वियतनाम की यात्रा के दौरान भारत के विदेश मंत्री ने चीन को झिड़क दिया। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि भारत की कंपनी ओएनजीसी विदेश लि. दक्षिण चीन सागर के दो वियतनामी ब्लॉकों में तेल की खोज का काम जारी रखेगी। चीन ने अन्य देशों को इस क्षेत्र से दूर रहने की चेतावनी जारी करते हुए कहा कि ब्लॉक नं. 127 और 128 में तेल की खोज के लिए बीजिंग की अनुमति जरूरी है, इसके बिना यहां कोई भी गतिविधि अवैध मानी जाएगी। इस बीच वियतनाम ने रेखांकित किया कि 1982 के संयुक्त राष्ट्र समझौते के आधार पर इन दो ब्लॉकों पर उसके संप्रभु अधिकार हैं। भारत ने वियतनाम के दावों के आधार पर आगे बढ़ने का फैसला लिया और चीन की आपत्तियों को दरकिनार कर दिया।
भारत के फैसले पर चीन ने अपनी अधिकारिक प्रतिक्रिया में इस बात पर जोर दिया कि दक्षिण चीन सागर और इसके द्वीपों पर चीन की निर्विवादित संप्रभुता है और बीजिंग वहां तेल व गैस की खोज के किसी भी प्रयास का विरोध करेगा। किंतु आधिकारिक मीडिया इस घटना पर आगबबूला है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा संपादित ग्लोबल टाइम्स समाचार पत्र ने वियतनाम के साथ भारत के इस करार को ‘गंभीर राजनीतिक उकसावा’ कहा है। इसने आगे कहा कि चीन को इस सहयोग को रोकने की हरसंभव कोशिश करनी चाहिए। गैरक्षेत्रीय शक्तियों की दक्षिण चीन सागर में दखलंदाजी पर चिंता जताते हुए अखबार ने दावा किया कि चीन और क्षेत्रीय देशों के बीच दक्षिण चीन सागर पर विवाद तो हजम हो सकता है किंतु अन्य देशों की घुसपैठ नहीं। चीन को इसका पुरजोर विरोध करना चाहिए और इस प्रकरण में शामिल सभी पक्षों को नुकसान का जिम्मेदार माना जाना चाहिए। यह अखबार अकसर कट्टर राष्ट्रवादी विचारों के लिए जाना जाता है और इसके संपादकीय लेख कम्युनिस्ट पार्टी की अनुमति के बाद ही प्रकाशित होते हैं।
भारत के इस दृढ़ कदम का मकसद दक्षिण चीन सागर के अंतरराष्ट्रीय जल में अपने कानूनी दावों को मजबूत करना और वियतनाम के साथ संबंध प्रगाढ़ करना है। ये दोनों कदम चीन को परेशान करते हैं जो पूर्व एशिया में भारत के बढ़ते दखल को संदेह की नजर से देखता है। जुलाई में एक चीनी युद्धपोत ने भारतीय युद्धपोत ऐरावत से वियतनाम की समुद्री सीमा में खुद की पहचान बताने और यह स्पष्ट करने के लिए कहा कि वह दक्षिण चीन सागर में क्या कर रहा है। भारतीय युद्धपोत वियतनाम के बंदरगाह से लौट रहा था और अंतरराष्ट्रीय सीमा में मौजूद था। यद्यपि भारतीय नौसेना ने तुरंत इसका खंडन किया कि चीनी युद्धपोत ने भारतीय युद्धपोत को रोककर सवाल-जवाब किए थे, किंतु इसने रिपोर्ट के तथ्यात्मक आधार को खारिज नहीं किया।
एशिया में संदेह बढ़ रहा है कि चीन अपनी नौसेना की ताकत के बूते न केवल तेल व गैस से समृद्ध दक्षिण चीन सागर पर अपना दबदबा कायम करना चाहता है, बल्कि क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं की जीवनरेखा समुद्री मार्गो पर भी अपना नियंत्रण बना रहा है। पिछले साल अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने एशियाई दौरे पर साफ-साफ शब्दों में कहा था कि अमेरिका चीन के क्षेत्रीय आधिपत्य को स्वीकार करने का अनिच्छुक है। जब बीजिंग ने दक्षिण चीन सागर में बिखरे हुए द्वीपों पर अपना दावा ठोकते हुए इसे ‘अहम हित’ घोषित किया था, तब क्लिंटन ने पेशकश की थी कि वह इस क्षेत्र में चीन, ताइवान, फिलिपींस, वियतनाम, इंडोनेशिया और मलेशिया के विवादित दावों पर मध्यस्था करते हुए अंतरराष्ट्रीय तंत्र स्थापित करने में मदद कर सकता है।
हाल ही में दक्षिण चीन सागर में तेल और खनिज के दोहन के मुद्दे पर चीन की वियतनाम और फिलिपींस से तनातनी हो चुकी है। पिछले कुछ दशकों में समान हितों के नाम पर अमेरिका के संरक्षण में ही चीन एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरा है। अब चीन एक नई व्यवस्था चाहता है। ऐसी व्यवस्था जो केवल बीजिंग के लिए काम करे और साझा संसाधनों पर उसके हक पर मुहर लगाए। दक्षिण चीन सागर में अपने दखल से भारत चीन के दावों को चुनौती दे रहा है।
दक्षिण एशिया और हिंद महासागर में चीन अपनी उपस्थिति के विस्तार में जुटा है तो पूर्व एशिया में भारत भी अपना दखल बढ़ा रहा है। इस संबंध में सबसे महत्वपूर्ण है वियतनाम के साथ भारत के प्रगाढ़ होते संबंध। इस क्षेत्र में नियमित भारतीय उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए भारत ने वियतनाम के साथ सुरक्षा साझेदारियों में भाग लेने का फैसला किया। दिल्ली-हनोई सुरक्षा साझेदारी के कारण भारत को वियतनाम के था तरांग बंदरगाह को इस्तेमाल करने का अधिकार मिल गया है। समुद्री मार्गो की सुरक्षा और समुद्री लुटेरों पर अंकुश लगाने के लिए दिल्ली और हनोई का बहुत कुछ दांव पर लगा है। हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर भी दोनों देश चिंतित हैं। भारतीय सामरिक हितों की मांग है कि वियतनाम एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति के रूप में उभरे। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए भारत हनोई की पूरी सहायता कर रहा है। जिस प्रकार चीन ने भारत के पड़ोसी देशों में अपना प्रभाव बढ़ाया है, उसी प्रकार चीन की काट करने के लिए भारत को भी वियतनाम जैसे देशों में अपना प्रभाव बढ़ाकर दबाव बिंदु तैयार करने चाहिए। इसी के मद्देनजर भारत वियतनाम की सैन्य क्षमताओं को मजबूत बनाने के लिए सहायता प्रदान कर रहा है। अगर दक्षिण चीन सागर एक विवादित क्षेत्र है और चीन की संवेदनाओं को देखते हुए भारत को यहां से दूर रहना चाहिए तो चीन को भी भारत की संवेदानाओं को देखते हुए पाक अधिकृत कश्मीर में अपनी गतिविधियां बंद कर देनी चाहिए। अपने हालिया दौर में भारतीय विदेश मंत्री ने वियतनाम के साथ व्यापार, शिक्षा, वैज्ञानिक, तकनीकी और सुरक्षा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के संबंध में समझौते किए हैं।
चीन की शक्ति बढ़ने से चिंतित भारत और वियतनाम का अमेरिका की ओर झुकाव बढ़ रहा है। दक्षिण चीन सागर विवाद पर प्रमुख शक्तियों में समान सोच विकसित हो रही है। उम्मीद है कि इस मुद्दे पर चीन अपने रुख में नरमी लाएगा। इस परिदृश्य में भारत का प्रवेश काफी दिनों से अपेक्षित था। अब भारत को क्षेत्रीय शक्तियों के साथ सामरिक साझेदारियां विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए वियतनाम एक अच्छा स्थान है।
लेखक हर्ष वी पंत किंग्स कॉलेज, लंदन में प्रोफेसर हैं
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