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पिछले कई वर्षो से मानसून के कारण होने वाली बाढ़ से न केवल मुंबईवासी एकदम सिहर जाते हैं, बल्कि वहां का आम जनजीवन भी ठप पड़ जाता है। मुंबई की बाढ़ को रोकने के लिए सिंगापुरी तरीका अपनाने की बात हो रही है जिससे मानसून आने पर बाढ़ की समस्या के अलावा गर्मी से निजात पाने की सुखद अनुभूति भी मिलेगी। हर वर्ष हजारों करोड़ रुपये का नुकसान, मानव श्रम की बरबादी और बीमारियों के प्रकोप के चलते मुंबई के लिए बारिश एक अभिशाप बन चुकी है। पिछले कुछ दिनों में धारावी, अंधेरी, हिंदमाता, विलापार्ले, कुर्ला, दादर, सांताक्रूज, विखरोली, चेंबूर, सायन और परेल सहित मुंबई के कई इलाके बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं। अगर हम मुंबई की बाढ़ का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें तो पता चलता है कि मुंबई में बढ़ती जनसंख्या के दबाव के फलस्वरूप नए निर्माणों ने मुंबई के छोटे-बड़े नदी-नालों को बंद कर दिया है और इस कारण वर्षा के पानी की निकासी के सभी रास्ते बंद हो चुके हैं। यही कारण है कि थोड़ी सी बारिश भी मुंबई में बाढ़ का कारण बन जाती है और यदि बारिश कहीं ज्यादा हो जाए तो भयंकर बरबादी निश्चित है। मुंबई नगरी देश की आर्थिक राजधानी मानी जाती है। फिल्म निर्माण हो अथवा व्यापार सभी दृष्टि से मुंबई एक अत्यंत महत्वपूर्ण महानगर है।
ऐसे में मुंबई का हर वर्ष बाढ़ में डूबना विशेष चिंता का विषय है। आज जो मुंबई की स्थिति है लगभग वैसी ही स्थिति 1950 के दशक में सिंगापुर की थी। आज सिंगापुर में बाढ़ इतिहास की बात बन चुकी है, बल्कि बारिश से आने वाले जल का प्रबंधन करते हुए आज सिंगापुर अपनी अधिकाधिक जल की आवश्यकताओं की आपूर्ति अपने जल प्रबंधन के माध्यम से करता है। हुआ यूं कि 1954 में मलेशिया ने सिंगापुर को स्वयं से अलग कर दिया। तब सिंगापुर एक साधनविहीन देश था। यहां तक कि उसके पास स्वयं के लिए आवश्यक जल की आपूर्ति भी नहीं थी। मलेशिया से जल आपूर्ति के संबंध में 1961 और 1962 में किए गए समझौतों के अनुसार एक सीमित समय के लिए एक सेंट प्रति 1000 गैलन की कीमत पर जल आपूर्ति कराने का प्रावधान किया गया। ऐसे में सिंगापुर ने अपने राष्ट्रीय हितों और स्वाभिमान को बनाए रखने के लिए तय किया कि उस अवधि के समाप्त होने तक सिंगापुर का जल प्रबंधन इस प्रकार से करेंगे कि न केवल जल की आपूर्ति सुनिश्चित हो जाए, बल्कि बाढ़ की समस्या का समाधान भी साथ ही साथ कर लिया जाए। 700 वर्ग किलोमीटर के इस शहरनुमा देश के पास अपनी कोई नदी भी नहीं है। पिछले दो दशकों में सिंगापुर के जल प्रबंधन में अभूतपूर्व सुधार हुआ है। कुछ समय पूर्व सिंगापुर का 15वां जलाशय बनाया गया है। इस जलाशय की खूबी यह है कि समुद्र पर बांध बनाकर इसका निर्माण किया गया है। पहले से निर्मित दो जलाशयों के साथ जोड़कर इस जलाशय को बनाया गया है। पूरे सिंगापुर शहर में जल निकासी के लिए भूमिगत नालियों का निर्माण किया गया है। बारिश का पानी इन नालियों के माध्यम से जलाशय में पहुंचता है। यह जलाशय एक लाख हेक्टेयर क्षेत्र यानी सिंगापुर के लगभग छठे हिस्से से जल इकट्ठा करता है। जब इस जलाशय में पानी अधिक भर जाता है तो समुद्र के साथ बने होने के कारण उसे समुद्र में डाल दिया जाता है।
समुद्री लहरें नीची होने के कारण यह पानी स्वयं समुद्र में चला जाता है और यदि समुद्री लहरें ऊंची हों तो उस दशा में बांध पर बने पानी के पंप स्वचालित ढंग से चालू हो जाते हैं और उस स्थिति में भी पानी समुद्र में चला जाता है। जल प्रबंधन की नायाब विधि वाले इस जलाशय का नाम मेरिना बैराज है और यह आजकल सिंगापुर में अन्य दर्शनीय स्थलों के साथ-साथ पर्यटकों के लिए भी आकर्षक बन रहा है। मेरिना बैराज पर बने संग्रहालय में 1954 के वर्ष में सिंगापुर की भयंकर बाढ़ के चित्र भी है और वर्तमान जल प्रबंधन की नायाब विधि के चित्रों के साथ उसकी कार्यशैली का मॉडल भी रखा गया है। मुंबई और सिंगापुर की लगभग एक जैसी स्थिति है। दोनों समुद्र के किनारे बसे बड़ी जनसंख्या वाले शहर हैं। सिंगापुर की तरह हालांकि मुंबई में पानी की गुजारे लायक व्यवस्था है, लेकिन बारिश के दिनों के अतिरिक्त अक्सर मुंबई वासियों पर पानी की कमी की तलवार लटकी रहती है। दूसरे हल्की सी बारिश होते ही मुंबई में जलभराव की समस्या शुरूहो जाती है। जून 2011 के दूसरे सप्ताह में थोड़ी बहुत बारिश होते ही जलभराव की स्थिति बाढ़ के किसी बड़े प्रकोप का संकेत मानी जा सकती है। ऐसे में बड़े नुकसान के बार-बार सहने से अच्छा तो यही होगा कि महाराष्ट्र सरकार सिंगापुर की तर्ज पर केंद्र सरकार के साथ मिलकर मुंबई के लिए जल प्रबंधन की योजना तैयार करे।
हो सकता है प्रारंभ में यह योजना एक महत्वाकांक्षी योजना लगे, लेकिन अंततोगत्वा मुंबई में वर्षा के जल का संचयन मुंबई की जल समस्या का तो निदान करेगा ही साथ ही साथ बाढ़ की त्रासदी से भी मुक्ति दिलाएगा। मुंबई में भूमि की कमी, लगातार बढ़ती जनसंख्या और उससे भी अधिक भू-माफियाओं के बढ़ते दबाव के कारण नदी-नाले जाम रहते हैं जिस कारण वर्षा जल का प्राकृतिक प्रवाह बाधित होता है और हल्की सी बारिश भी जलभराव का कारण बन जाती है। कई वर्ष पहले मुंबई में एक मीठी नदी बहा करती थी। उस मीठी नदी के किनारे कोई निर्माण नहीं था, लेकिन आज उस मीठी नदी का आस्तित्व ही लगभग समाप्त हो चुका है। इसी प्रकार मुंबई के एक प्रमुख नाले को बंद करते हुए एक बड़ी सड़क बना दी गई है। इसके अलावा भी पूर्व के अनगिनत नाले अब लगभग समाप्त हो गए हैं।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि आज मुंबई की जल निकासी के सभी पुराने रास्ते बंद हो चुके हैं। ऐसे में वर्षा का पानी बड़ी बाढ़ का कारण ही नहीं बनता, बल्कि वह तबाही करता हुआ समुद्र में भी चला जाता है। आज मुंबई में पानी की भी भारी समस्या है। मुंबईवासियों को आज प्रति व्यक्ति मात्र 90 लीटर पानी ही उपलब्ध है, जबकि उसकी आवश्यकता 135 लीटर प्रति व्यक्तिकी है। स्लम बस्तियों में तो यह मात्र 25 लीटर प्रति व्यक्ति ही उपलब्ध है। वर्तमान में मुंबई की आवश्यकताओं की पूर्ति मुंबई से बाहर बहने वाली नदियों से ही हो पाती है। मुंबई की जल आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भविष्य की योजनाएं भी वैतरना नदी पर बांध बनाकर पूरा करने की है। ऐसे में यदि मुंबई के वर्षा जल का सही प्रबंधन किया जा सके तो मुंबई शहर अपनी बाढ़ की समस्या के समाधान के साथ-साथ अपनी जल आवश्यकताओं की भी पूर्ति कर सकेगा। इसका एक सकारात्मक असर यह भी होगा कि आस-पास की बस्तियों में रह रहे लोगों के लिए भी आवश्यक पानी उपलब्ध कराया जा सकेगा।
अश्विनी महाजन स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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