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छत्तीसगढ़ के प्रखर सामाजिक कार्यकर्ता विनायक सेन जब जेल में थे, तब अपने अनुभवों को उन्होंने एक किताब की शक्ल दी। जेल के अनुभवों पर उन्होंने लिखा, वे दिन अपनी जिंदगी के सबसे काले और कष्टकारी दिन थे। उन्हें मैं कभी नहीं भूल सकता। आज भारतीय जेलों की जो हालत है, उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि ईश्वर कभी किसी गरीब को जेल न भेजे। अगर आपके पास पर्याप्त धन है तो आप जेल में भी फाइव स्टार की सुविधाएं पा सकते हैं। यही नहीं, जेल में आपके पास घर का भोजन भी आ जाएगा और आप जेल में ही बैठे-बठे वसूली भी कर सकते हैं। रंगदारी दिखा सकते हैं। बड़े अपराधियों के लिए ही हमारे देश के बड़े-बड़े वकील जमानत दिला सकते हैं। और तो और, जमानत के बाद किस तरह से देश से भागा जा सकता है, इसकी भी सुविधा इस देश में मिल रही है। आज देश की जेलों की हालत बहुत ही खराब है। वहां की अमानवीय स्थिति देखकर शायद ईश्वर को भी रोना आ जाए। न्याय मिलने में देर के कारण न जाने कितने विचाराधीन कैदी दम तोड़ देते हैं, लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिल पाता। दूसरी ओर कानून को अपने हिसाब से तोड़ने-मरोड़ने वाले भी इसी देश में हैं। कानून इनके आगे भीगी बिल्ली बनकर खड़ा रहता है। इस समय देश की विभिन्न जेलों में तीन लाख से अधिक ऐसे कैदी हैं, जिनके खिलाफ अपराध तो दर्ज हुआ है, लेकिन उसकी जांच नहीं हो पाई है। पुलिस अपराध कायम कर व्यक्ति की धरपकड़ करती है। उसके बाद उसे विचाराधीन कैदी मानकर जेल में डाल दिया जाता है।
न्यायिक हिरासत के हवाले इन व्यक्तियों को जेल में डाला जाता है। जब इन्हें अदालत में पेश किया जाता है, तब वहां व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण कुछ लोगों पर ही दोष सिद्ध हो पाता है। शेष सबूत के अभाव में छूट जाते हैं। जिन पर दोष साबित होता है, उनका प्रतिशत केवल 6.5 है। दाऊद इब्राहीम से लेकर अन्य छोटे-बड़े माफिया के लोगों को मुंबई में आसानी से जमानत मिल जाती है। ड्रग माफिया, आतंकवादियों, हथियारों के तस्कर और आर्थिक अपराध करने वालों को बचाने वाले कई कुख्यात वकील हमारे देश में हैं। इनमें से एक नाम है एक पूर्व कानून मंत्री का। इनके सामने कितना भी बड़ा अपराधी आ जाए, वे उसे एक मोटी रकम के बदले जमानत दिलवा सकते हैं। यही नहीं, वे यह भी सुझाव देते हैं कि किस तरह से देश छोड़कर भागा जाए। देश छोड़ने का पूरा ब्ल्यू प्रिंट उनके कार्यालय में उपलब्ध है। इसके लिए अग्रिम भुगतान आवश्यक है। देश का कितना भी कुख्यात अपराधी क्यों न हो, उनके पास से निराश नहीं लौटता। उनकी तरह बहुत से वकील हैं, जो इस तरह के कार्य आसानी से कर लेते हैं।
निश्चित रूप से यह भी भ्रष्टाचार का ही एक रूप है। बहाना भले ही किसी को बचाने का हो, लेकिन सच तो यह है कि इनके पास वे ही लोग आते हैं, जो सचमुच अपराधी हैं। इनके पास धन की कोई कमी तो होती नहीं। इसलिए यह काम बेखौफ हो जाता है। सबसे विकट प्रश्न है देश में न्यायाधीशों की कमी। देश में इस समय दस लाख व्यक्तियों के बीच एक न्यायाधीश हैं। यह आंकड़ा विश्व के अन्य विकासशील देशों की तुलना में बहुत ही निराशाजनक है। देश में जो जेलें हैं, वे अव्यवस्था की शिकार हैं। जितने कमरे हैं, उससे कई गुना कैदियों की संख्या है। कई जेलें तो ऐसी हैं, जहां कैदियों को सोने के लिए समय तय कर दिया गया है। ताकि उनके जागने के बाद दूसरे कैदी उनके स्थान पर सो सकें। यानी सोने का काम भी पालियों में बंट गया है। आरोप सिद्ध हुए बिना ही विचाराधीन कैदी के रूप में भेज देने में पुलिस बहुत ही जल्दबाजी करती है। अभी देश की जेलों में करीब 3 लाख विचाराधीन कैदी हैं। इसमें से 1356 कैदी ऐसे हैं, जिनके खिलाफ पुलिस ने किसी प्रकार का अपराध कायम ही नहीं किया है।
दूसरी ओर अगर पुलिस अत्याचारों की जानकारी सूचना के अधिकार के तहत मांगी जाती है तो आवेदक को डराया-धमकाया जाता है या फिर उसे मौत की नींद सुला दिया जाता है। इस प्रकार के अपराधी को किसी प्रकार की सजा नहीं होती। अभी तिहाड़ जेल के वार्ड नंबर 8 में डीएमके नेता करुणानिधि की बेटी कनिमोई बंद हैं। उनके कमरे में टॉयलेट भी है। इसके बाद भी उन्होंने यह शिकायत की कि टॉयलेट में पानी का दबाव कम है। एक बार तो वह जेल में ब्यूटी पार्लर खोज रही थीं। इसी तिहाड़ जेल में 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के आरोप में बंद एक मोबाइल कंपनी के अधिकारी ने ब्लैकबेरी फोन हासिल कर लिया था। कई लोग तो एक निश्चित रकम के भुगतान के बाद दिल्ली के मौर्या शेरेटन के बुखारा रेस्टोरेंट के विभिन्न व्यंजनों का लाभ ले सकते हैं। जेल के एक सेवानिवृत्त अधिकारी कहते हैं कि अगर आप साल में दो करोड़ रुपये खर्च करने की हिम्मत रखते हैं तो आपको घर के बेडरूम जैसी सुविधाएं जेल में ही प्राप्त कर सकती हैं। जेल में बैठे-बैठे हफ्ता वसूली करने वालों और एक निश्चित रकम के लिए अपहरण करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
बीएमडब्ल्यू कार से न जाने कितने ही निर्दोषों को कुचलने वाला संजीव नंदा जब जेल में था, तब जेल के अंदर अपनी सुरक्षा के लिए उसने दस लाख रुपये खर्च किए थे। 1982-83 में जेलों की व्यवस्था सुधारने के लिए जस्टिस एएन मुल्ला की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया था, लेकिन इस आयोग ने क्या किया, क्या सुझाव दिए, इस पर अमल किया गया या नहीं आदि बातें रहस्य की गर्त में हैं। कोई नहीं जानता कि इस आयोग का हश्र क्या हुआ। अभी देश की विभिन्न जेलों के लिए 42,135 वार्डन की आवश्यकता है। मौजूदा समय में महज 29,340 वार्डन ही काम कर रहे हैं। देश सबसे बड़ी तिहाड़ जेल में तो महिला विभाग की 90 प्रतिशत महिला कैदी विचाराधीन हैं, इसमें से अधिकांश महिलाएं अपने बच्चों के साथ सजा भुगत रही हैं। उनके खिलाफ मुकदमा भी नहीं चलाया जा रहा है। ऐसे में यह कैसे अपेक्षा की जा सकती है कि जेलों की अव्यवस्थाओं में सुधार होगा। जब सरकार ही इस दिशा में कुछ करने को तैयार नहीं है तो फिर कितने भी आयोगों का गठन कर लिया जाए, उससे कुछ होने वाला नहीं है। इस दिशा में सरकार की नीयत साफ नहीं है। एक-एक कर जब सभी मंत्री जेल होकर आ जाएंगे तो ही शायद जेलों की अव्यवस्था में सुधार के लिए समुचित प्रयास हो सकें।
लेखक महेश परिमल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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