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टैक्स की वैकल्पिक प्रणाली

जागरण मेहमान कोना
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Bharat Jhunjhunbalaसरकार के घाटे पर नियंत्रण के लिए अमीर और गरीब के लिए अलग-अलग टैक्स का सुझाव दे रहे हैं डॉ. भरत झुनझुनवाला


सरकार का घाटा बढ़ रहा है। वैश्विक मदी के चलते अर्थव्यवस्था मद पड़ रही है, जिससे सरकार को प्राप्त होने वाले राजस्व में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो रही है। घाटे की पूर्ति के लिए रिजर्व बैंक द्वारा नोट छापे जा रहे हैं, जिससे महंगाई बढ़ रही है। सरकार को येन-केन-प्रकारेण टैक्स की वसूली बढ़ानी ही पड़ेगी अन्यथा नोट छापने और महंगाई बढ़ने से जनता में असतोष बढ़ेगा।


वर्तमान में सरकार द्वारा दो प्रकार के टैक्स वसूल किए जाते हैं। पहला आयकर है। करदाता की आय निश्चित सीमा से अधिक होने पर उसे आयकर अधिकारी के समक्ष रिटर्न दाखिल करना होता है और निर्धारित रकम को जमा कराना होता है। यह टैक्स आय पर आरोपित किया जाता है। यदि आपने 10 लाख रुपये कमाए तो आपको टैक्स अदा करना ही पड़ेगा। आप इस रकम को विदेश घूमने में उड़ा दें अथवा इससे दुकान लगाएं, इससे टैक्स के भार पर कोई अंतर नहीं पड़ता है। आयकर के पक्ष में मुख्य तर्क सामाजिक न्याय का है। आयकर अमीर पर लगाया जाता है। इससे सामाजिक समानता स्थापित होती है। गरीब और अमीर का फासला कम होता है। दूसरी तरफ आयकर का नुकसान भी होता है। इससे निवेश प्रभावित होता है। दुकान तथा फैक्ट्री अधिकतर अमीर ही लगाते हैं। आयकर वसूल करने से अमीरों के पास निवेश को धन कम बचता है, वे निवेश कम करते हैं, रोजगार कम सृजित होते हैं और आर्थिक विकास धीमा पड़ता है। आयकर की दूसरी कमी काले धन की है। आयकर कम अदा करना पड़े इसलिए अमीर लोग एव कंपनियां न. 2 का धधा करती हैं। जैसे किसी मशीन को बेचा गया 5 लाख रुपये में, परंतु बिल केवल तीन लाख रुपये का काटा गया। खरीददार से दो लाख रुपये नगद ले लिए। दो लाख रुपये की इस आय पर आयकर नहीं दिया। अथवा प्रापर्टी की बिक्री को वास्तविक मूल्य से कम दर्शाया जाता है।


टैक्स का दूसरा प्रकार एक्साइज ड्यूटी तथा सेल टैक्स है। एक्साइज ड्यूटी उत्पादन करने वाले को अदा करनी पड़ती है। सेल टैक्स बिक्री करने वाला अदा करता है। इन दोनों टैक्स का भार क्रेता पर पड़ता है। मसलन कंपनी ने 5,000 रुपये में फ्रिज बनाया। इस पर कंपनी ने 20 प्रतिशत से 1,000 रुपये एक्साइज ड्यूटी अदा की। कुल उत्पादन लागत 6000 रुपये आई। इस पर 25 प्रतिशत सेल टैक्स लगाकर दुकानदार ने साढ़े सात हजार में बेच दिया। क्रेता ने 7500 रुपये फ्रिज की खरीद के लिए दिए। इसमें 2500 रुपये सरकार को टैक्स के रूप में गए। एक्साइज एव सेल टैक्स से खपत कम होती है और निवेश बढ़ता है। फ्रिज पर सेल टैक्स बढ़ा दिया जाए तो फ्रिज महंगा हो जाएगा और लोग इसे कम खरीदेंगे। इन टैक्स का नुकसान है कि ये गरीब और अमीर, दोनों पर बराबर आरोपित होते है। झुग्गी में रहने वाले अथवा फार्महाउस में रहने वाले, दोनों को फ्रिज खरीदने पर बराबर टैक्स देना होगा। आपने ध्यान दिया होगा कि माचिस की डिब्बी पर टैक्स अदा करने की पर्ची चिपकी होती है। गरीब को भी यह टैक्स देना होता है। दूसरा नुकसान काले धन का है। दिल्ली के सामान्य होटल में जाएं तो क्लर्क बोलेगा कि बिल लेंगे तो 12 प्रतिशत टैक्स लगेगा। बाजार में तमाम वस्तुएं नं. 2 में उपलब्ध है। फैक्ट्री मालिक एक्साइज की चोरी करता है और दुकानदार सेल टैक्स की।


दोनों प्रकार के टैक्स के अलग-अलग गुण दोष है। आयकर से सामाजिक न्याय बहाल होता है, परंतु निवेश कम होता है। सेल टैक्स से निवेश बढ़ता है, परंतु सामाजिक न्याय आहत होता है। काले धन के मुद्दे पर दोनों प्रकार के टैक्स समान हैं। इस परिस्थिति में सरकार को टैक्स अधिक वसूल करना है। दोनों विकल्प में समस्या है। आयकर बढ़ाया जाएगा तो निवेश प्रभावित होगा। सेल टैक्स बढ़ाया जाएगा तो सामाजिक न्याय आहत होगा। इस सकट का उपाय प्रोग्रेसिव एक्साइज तथा सेल्स टैक्स हो सकता है। देश की जनता को तीन वगरें में विभाजित करके उनके द्वारा खपत की जाने वाली वस्तुओं की सूची बनाई जा सकती है। उच्च वर्ग द्वारा खपत की जाने वाली वस्तुओं में एयर कंडीशन, कार, एलसीडी, टीवी, स्विमिग पूल, विदेश यात्रा इत्यादि आएंगे। मध्यम वर्ग की खपत में मोटर साइकिल, कंप्यूटर, फ्रिज, वाशिग मशीन, ब्यूटी पार्लर आएंगे। गरीब वर्ग की खपत में माचिस, साइकिल, बस, डबल रोटी आदि आएंगे। इन तीनों प्रकार की वस्तुओं पर अलग-अलग दर से सेल टैक्स लगाया जा सकता है। उच्च वर्गीय खपत की वस्तुओं पर 50 प्रतिशत, मध्यम वर्गीय खपत पर 25 प्रतिशत एव गरीब की खपत पर शून्य। ऐसा करने से दोनों समस्याएं हल हो सकती हैं।


इस व्यवस्था में उच्च वर्ग को अधिक टैक्स देना होगा, क्योंकि उनके द्वारा खपत की जाने वाली वस्तुओं पर सेल टैक्स की दर ज्यादा है। इससे सामाजिक न्याय स्थापित होगा। साथ-साथ उच्च वर्ग को टैक्स तब ही देना होगा जब वह खपत करेगा। अमीर यदि अधिक कमाए और खपत कम करे तो उसे टैक्स कम देना होगा। अत: निवेश को भी प्रोत्साहन रहेगा।


इस टैक्स को प्रभावी बनाने के लिए खपत के दायरे को बढ़ाना पड़ेगा। मसलन अपने मकान में रहने पर अनुमानित किराए को खपत मानकर उस पर टैक्स वसूल करना चाहिए। बिजली तथा पानी पर भी मूल्यों को खपत के अनुसार वसूल करना चाहिए। 30 यूनिट बिजली प्रति माह परिवार को मुफ्त में दी जा सकती है। 30 से 1000 यूनिट प्रति माह खपत करने वालों से पाच रुपये प्रति यूनिट का दाम वसूल किया जा सकता है। 1000 यूनिट प्रति माह से अधिक खपत करने वालों से 12 रुपये प्रति यूनिट वसूल किया जा सकता है। कंपनी तथा सरकारी खाते पर यात्रा आदि के एक अंश को भी व्यक्तिगत खपत मानना चाहिए। सरकार का प्रयास होना चाहिए कि खपत पर टैक्स वसूले, जिससे अमीरों की खपत पर दबाव रहे। यह प्रस्ताव सरकार द्वारा एक ही दर से गुड्स एंड सर्विस टैक्स लगाने के पूरी तरह विपरीत है। सरकार को इस दिशा में नहीं बढ़ना चाहिए। एकल गुड्स एंड सर्विस टैक्स पूरी तरह न्याय के विपरीत है। प्रोग्रेसिव सेल्स टैक्स के साथ-साथ आयकर को जारी रखना चाहिए। अमीर खपत कम करे तो भी देश के प्रति उसकी जिम्मेदारी ज्यादा होती है। पश्चिमी देशों के अमीर लोगों ने अपनी सरकारों से अपील की है कि उनसे अधिक मात्रा में टैक्स वसूल किया जाए जिससे देश आर्थिक सकट से उभर सके। भारत में अमीरों की सख्या कई पश्चिमी देशों से अधिक है। हमारे अमीरों को भी टैक्स की दर में वृद्धि की मांग करनी चाहिए।


लेखक डॉ. भरत झुनझुनवाला आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं


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