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संकटमोचक ही बना नया संकट

जागरण मेहमान कोना
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Mahesh Rathi2जी स्पेक्ट्रम में गृहमंत्री चिदंबरम की भूमिका पर उठे सवालों ने कांग्रेस नीत संप्रग सरकार के लिए संभवतया अभी तक के सबसे बडे़ संकट की भूमिका तैयार कर डाली है। उच्चतम न्यायालय में पेश वर्तमान वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी के एक पत्र ने जहां सत्ताधारी मुख्य पार्टी के अंतर्कलह को सार्वजनिक कर दिया है तो वहीं पूरे विपक्ष को भी एकजुट होकर सरकार को घेरने का एक और मौका दे दिया है। इस मौके का लाभ केवल विपक्ष ही नहीं, तमिलनाडु में हार और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों का दंश झेल रही डीएमके को भी लौटकर कांग्रेस पर हमला करने का मौका मिल गया है। कांग्रेस के इस ताजा संकट का सबसे त्रासद और दिलचस्प पहलू यह है कि अबकी बार कांग्रेस का संकटमोचक ही कांग्रेस के लिए संकट का कारण बन गया है। इस पूरे घटनाक्रम में उल्लेखनीय पहलू यह है कि कांग्रेस के सबसे बडे़ संकटमोचक प्रणब मुखर्जी ने अपनी पार्टी को संकट में देखकर भी अपने गृहमंत्री के बचाव की कोई मंशा अभी तक जाहिर नहीं की है।


पत्रकारों को सफाई देते हुए वित्तमंत्री ने कहा कि किसी आरटीआइ कार्यकर्ता ने यह पत्र अपने सूचना के अधिकार के द्वारा हासिल करके कोर्ट के समक्ष पेश किया है और इस सफाई के बाद वित्तमंत्री यह कहना भी नहीं भूले कि सूचना अधिकार ने आम आदमी को मजबूत किया है। खुशी के इतने सांकेतिक प्रदर्शन की आशा वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी से ही की जा सकती है। यह संकट के समय एक पार्टी के अंतर्विरोधों के सार्वजनिक होने का समय है। वास्तव में यह आपसी अंतर्विरोध संप्रग सरकार में शुरुआत से ही रहे हैं, लेकिन शुरुआत में यह अंतर्विरोध केवल वैचाारिक स्तर पर थे, अब बेहद व्यक्तिगत कलह में परिवर्तित होकर राजनीतिक संकट के इस दौर में सार्वजनिक हो रहे हैं। इन अंतर्विरोधों का आधार कॉरपोरेट विकास के पक्षधर और सामाजिक सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध पुराने स्थापित राजनेताओं के मध्य विरोधाभासी टकराव थे। संप्रग-1 में वामपंथी समर्थन एवं दबाव के कारण सरकार के एजेंडे में सामाजिक सवाल प्रमुख थे, जिस कारण आर्थिक उदारवाद एक सीमा तक नियंत्रित भी रहा और कांग्रेस के जनाधार को बढ़ाने वाला भी, लेकिन संप्रग-2 के समय में इस स्थिति में गुणात्मक परिवर्तन आया और इस कारण कांग्रेस के पुराने समाजिक जनवादियों का उदारवादियों से टकराव स्वाभाविक था। यह टकराव हमें सूचना अधिकार कानून में संशोधन के सवाल पर दिखाई दिया। इस टकराव की आहट खाद्य सुरक्षा अधिकार के सवाल पर भी थी।


अन्ना के आंदोलन से निपटने को लेकर भी यह अंतर्विरोध उजागर हो चुका है। यह टकराहट नौकरशाही के अधिकारों और उसमें राजनीतिक हस्तक्षेप को लेकर भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पुरानी कांग्रेस संस्कृति के बीच दिखाई देती रही है। दरअसल, मनमोहन सिंह अपनी नौकरशाह पृष्ठभूमि के कारण हमेशा एक मजबूत नौकरशाह संस्कृति के हामी रहे हैं और उनका नौकरशाही को मजबूत करने का पक्षधर होना जहां आर्थिक उदारवाद के हितों के अनुकूल है तो वहीं लोकतांत्रिक संस्थाओं का मजबूत होना उदारवाद की राह की रुकावट की तरह है।

नीतिगत रूप से प्रधानमंत्री के सबसे बडे़ विश्वस्त चिदंबरम ने इन्हीं भावनाओं को अभिव्यक्त करने वाला तर्क 2005 में अमेरिका के एक सेमिनार में दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि हम वैसे तो दुनिया के सबसे बडे़ लोकतंत्र हैं, लेकिन यही लोकतंत्र हमारे तेज विकास की सबसे बड़ी रुकावट भी है। दरअसल, यही वैचारिक अंतद्र्वद्व संप्रग-2 में व्यक्तिगत स्तरों पर पंहुचकर आज प्रतिध्वनित हो रहा है। वर्तमान गृहमंत्री पी चिदंबरम की कार्यप्रणाली पर जहां कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह कई बार खुलेआम सवाल खडे़ कर चुके हैं, वहीं वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन की प्रक्रिया और उसमें पूर्व वित्तमंत्री की भूमिका को लेकर प्रधानमंत्री को 25 मार्च 2011 को 11 पृष्ठ का एक पत्र लिखा डाला। इस पत्र के बाद ही वित्तमंत्री के कार्यालय में तथाकथित जासूसी करवाई गई, जिसमें संदेह की सूई गृहमंत्रालय की तरफ ही घूमी। असल में यह 2जी घोटाले के उजागर होने का दूसरा भाग है, जो केवल चिदंबरम तक सीमित नहीं रहेगा। इसकी आंच दूर तक जाएगी। यदि कोर्ट चिदंबरम की भूमिका पर जांच का आदेश जारी कर देता है तो शायद ए राजा के सह अभियुक्तों की संख्या में बढ़ोतरी की यह नई शुरुआत होगी।


लेखक महेश राठी स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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