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कांग्रेस की राजनीति और खाद्य सुरक्षा विधेयक

जागरण मेहमान कोना
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Shiv Kumarकेंद्रीय मंत्रिमंडल ने आखिरकार खाद्य सुरक्षा विधेयक पर मुहर लगा दी। सरकार खाद्य सुरक्षा विधेयक के जरिये आम आदमी को दो जून की रोटी का कानूनी अधिकार देना चाहती है। इस कानून में गरीबी रेखा से नीचे प्रत्येक व्यक्ति को हर महीने सात किलो चावल, गेहूं और मोटे अनाज देने का प्रावधान है, जिसके तहत चावल तीन रुपये प्रति किलो, गेहूं दो रुपये प्रति किलो और मोटा अनाज एक रुपये प्रति किलो के भाव से दिया जाएगा। इसके साथ ही गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को छह महीने तक प्रति महीने एक हजार रुपये मातृत्व लाभ के तौर पर भी देने का प्रावधान किया गया है। सरकार का मानना है कि गांवों की करीब 75 फीसदी और शहरों की करीब 50 फीसदी आबादी को खाद्य सुरक्षा कानून का फायदा मिलेगा। इसे लागू करने में सरकार पर पहले साल 95 हजार करोड़ की सब्सिडी का बोझ आएगा। इसमें कोई दो मत नहीं कि यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह लोगों के लिए दो जून की रोटी और उनके रहन-सहन के स्तर में सुधार लाने के लिए निरंतर प्रयास करती रहे।


भारतीय संविधान के अनुच्छेद 47 में भी इस बात का जिक्र है कि राज्य अपने लोगों के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने और लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपने प्राथमिक कर्तव्यों में मानेगा। सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकार कब तक कल्याणकारी योजनाओं को चुनावी नफे-नुकसान के तराजू में तौलकर लागू करने के फैसले लेगी? उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक देखकर जिस तरह से खाद्य सुरक्षा कानून को मंत्रिमंडल की मंजूरी दी गई है, उससे भी सरकार की नीयत पर सवाल खड़े हो रहे हैं। आजादी के इतने बरसों के बाद आखिर कब तक सरकार गरीबी रेखा को दो जून की रोटी से नापती नजर आएगी? जबकि सुरेश तेंदुलकर समिति ने गरीबी रेखा की गणना के अपने अनुमानों में खाने-पीने पर होने वाले खर्च के अलावा शिक्षा और स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च को भी शामिल किया है। अभी कुछ दिनों पहले विदेशी किराना दुकानों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मसले पर देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कहना था कि हमने यह फैसला किसी जल्दबाजी में नहीं, बल्कि बहुत सोच समझकर लिया है और रिटेल के क्षेत्र में एफडीआइ बढ़ने से आधुनिक टेक्नोलॉजी भारत में आएगी, कृषि उत्पादों की बरबादी कम होगी और हमारे किसान भाई-बहनों को उनकी फसलों के बेहतर दाम मिलेंगे।


विपक्ष के दबाव और आम जनता के गुस्से को भांपते हुए भले ही सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) के मसले को ठंडे बस्ते में डाल दिया है, लेकिन उत्तर प्रदेश के चुनावी दौरे पर गए राहुल गांधी अब भी एफडीआइ के फायदे गिनाने में जुटे हैं। राहुल गांधी ने विदेशी किराना दुकानों पर एफडीआइ का विरोध करने वालों को किसान विरोधी बताया। राहुल गांधी का कहना है कि जब वह कन्नौज आ रहे थे तो रास्ते में कुछ किसानों ने उन्हें रोककर सड़क पर बिखरे हुए आलू दिखाए। इन आलुओं को सुअर खा रहे थे। कांग्रेस के युवा महासचिव का यह भी कहना है कि हिंदुस्तान में 60 फीसदी सब्जियां सड़ जाती हैं। राहुल गांधी का कहना है कि खुदरा क्षेत्र में एफडीआइ इसलिए जरूरी है ताकि आलू की बर्बादी न हो और किसान अपनी फसलों को सही दामों पर बेंच सकें।


राहुल गांधी ने महंगे आलू के चिप्स का भी जिक्र किया। एक तरफ कांग्रेस महासचिव महंगे आलू के चिप्स के बहाने किसानों को फायदा पहुंचाने की बात कर रहे हैं तो दूसरी तरफ संप्रग सरकार खाद्य सुरक्षा कानून के जरिये गरीबों को दो जून की रोटी का कानूनी अधिकार देने जा रही है। समुचित और वैज्ञानिक ढंग से अनाज के भंडारण के लिए भी सरकार को विदेशी तकनीक की जरूरत महूसस होती है। कुल मिलाकर इस पूरे मसले पर सरकार की मंशा सवालों के घेरे में है। गोदामों में हजारों टन पड़ा अनाज भले ही सड़ जाए, लेकिन सरकार भूखे मर रहे लोगों को इसे बांटने की जहमत नहीं उठाती और देश के सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में दखल देना पड़ता है। देश में उचित भंडारण की कमी से कुल पैदावार का करीब दस से बारह फीसदी हिस्सा कीट, चूहे, फफूंद और नमी से बरबाद हो जाता है, लेकिन केंद्र सरकार भंडारण गृह की वैज्ञानिक ढंग से देख-रेख के बजाय इस मसले पर राज्य सरकारों के साथ दो-दो हाथ करती नजर आती है। देश में आबादी के एक बड़े हिस्से को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती और उन्हें भूखे सोकर रात गुजारनी पड़ती है तो दूसरी तरफ भंडारण की सही व्यवस्था नहीं होने की वजह से आज भी लाखों मीट्रिक टन अनाज खुले में पड़ा रहता है।


देश में इस वक्त तकरीबन 415 लाख टन अनाज सुरक्षित रखे जाने का इंतजाम है, जबकि लगभग 190 लाख टन अनाज केवल पन्नियों से ढक कर रखा जाता है। देश में कांग्रेस की अगुवाई वाली संप्रग सरकार खुद को किसानों का हितैषी बताती है, लेकिन संप्रग-1 और संप्रग-2 के अपने अब तक के कार्यकाल में मनमोहन सिंह की सरकार देश में अनाज भंडारण की समुचित व्यवस्था नहीं कर सकी है। आम आदमी की बात करने वाली संप्रग सरकार के राज में लाखों टन अनाज सड़ जाता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद भी इसका गरीबों में वितरण नहीं हो पाता और देश के कृषि मंत्री शरद पवार सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को सुझाव मानकर टालने की कोशिश करते हैं। हालांकि इसके लिए मंत्री महोदय को कोर्ट की फटकार भी पड़ी थी। कोर्ट के इस आदेश में देश भर में 172 पिछड़े जिलों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को सस्ती दर पर अनाज बांटने की बात थी। कुपोषण से होने वाली मौतों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों के मुख्य सचिवों से कहा था कि केंद्र से आवंटित अनाज ले जाकर गरीबों में बांटे।


कुपोषण से होने वाली मौतों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल ही सस्ता अनाज बांटने का आदेश दिया था, लेकिन केंद्र और राज्यों के झगड़े में इसे आज भी ठीक ढंग से लागू नहीं किया जा सका। देश में अनाज की पर्याप्त पैदावार होने के बावजूद आज अगर गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को दो जून की रोटी नहीं मिल पा रही है तो ऐसे में खाद्य सुरक्षा कानून कितना कारगर होगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को हर राज्य में खाद्यान्नों के भंडारण के लिए एक बड़ा गोदाम बनाने का निर्देश भी दिया था। इसके साथ ही सरकार को जिला स्तर और मंडल स्तर पर गोदाम बनाने को भी कहा गया था। कुल मिलाकर भले ही बजट की राशि आज दस हजार करोड़ तक पहुंच गई हो, लेकिन अब तक देश की सरकारें अनाज भंडारण के लिए समुचित इंतजाम नहीं कर सकी हैं। देश में गरीबी और भुखमरी को लेकर आज भी समुचित सुधार नहीं हुआ है। गांवों में आज भी 23 करोड़ लोग अल्प पोषित हैं, जबकि पचास फीसदी बच्चों की मौत की वजह कुपोषण है। देश की किसी भी सरकार के लिए यह शर्म की बात है कि दुनिया की 27 फीसदी कुपोषित जनसंख्या भारत में रहती है। आज आवश्यकता इस बात कि है कि केंद्र और राज्य सरकारें इस बारे में गंभीरता से विचार करें और देश की जन-कल्याणकारी योजनाओं को चुनावी फायदे के हिसाब से लागू करने के बजाय सभी राजनीतिक पार्टी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर विचार करें।


लेखक डॉ. शिव कुमार राय वरिष्ठ पत्रकार हैं


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