Menu
blogid : 5736 postid : 3687

पाकिस्तान सेना की नई चाल

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

Rajeev Sharmaपाकिस्तान सेना की नई चाल अनेक संकटों में घिरे पाकिस्तान में पूर्व क्रिकेटर और तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के प्रमुख इमरान खान एक प्रभावशाली राजनेता के रूप में जिस मजबूती के साथ उभर रहे हैं वह न केवल ध्यान देने के काबिल है, बल्कि यह जिज्ञासा भी उत्पन्न होती है कि क्या उन्हें कहीं और से भी समर्थन मिल रहा है? वस्तुस्थिति जो भी हो, विगत 25 दिसंबर को इमरान खान ने कराची में अपनी विशाल सुनामी रैली में जैसी भीड़ जुटाई उससे पाकिस्तान में एक बड़ा वर्ग उन्हें परिवर्तन के प्रतीक के रूप में देखने लगा है। खबर यह भी है कि इमरान खान सत्तारूढ़ पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) का सामना करने के लिए पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ के साथ हाथ मिला सकते हैं। पाकिस्तानी समाज में तेजी से लोकप्रियता हासिल कर रहे इमरान खान विशेष रूप से युवाओं और शहरी मध्य वर्ग में अपनी पकड़ बनाने में लगे हैं। इमरान खान के इस तरह उभरने के पीछे एक अन्य कारण यह भी है कि सेना ने अपने फायदे के लिए उनमें विशेष रुचि लेना आरंभ कर दिया है।


जनता में अपनी कमजोर होती छवि और सत्ता प्रतिष्ठान में अपने घटते वर्चस्व से चिंतित सेना इमरान को मोहरे के रूप में आगे बढ़ाकर शासन की बागडोर अपने हाथ में लेना चाहती है। पिछले वर्ष मई में ओसामा बिन लादेन को एबटाबाद में अमेरिकी सशस्त्र बलों द्वारा मार गिराने के बाद से पाकिस्तानी सेना खुद को अपमानित महसूस कर रही है और उसे नियंत्रण गंवाने का खतरा भी सता रहा है। सत्ता प्रतिष्ठान में अपनी पकड़ कायम रखने के लिए पाकिस्तानी सेना एक संभावित राजनीतिक विकल्प के तौर पर एक अपरिपक्व, भोले-भाले, लेकिन आकर्षक व्यक्तित्व वाले इमरान खान को राजनीतिक फलक में आगे बढ़ाने के विचार पर काम कर रही है। आम जनता में व्यापक जनाधार रखने वाले एक नए नेता के रूप में इमरान खान को प्रस्तुत करके पाकिस्तानी सेना के जनरल एक तीर से कई निशाने साधना चाहते हैं। अत्यधिक महत्वाकांक्षी और राजनीतिक वर्ग में अपना स्थान बनाने के लिए उतावले इमरान खान सेना द्वारा तय की गई लाइन पर चलने के खिलाफ नहीं हैं।


इमरान की एकमात्र समस्या यह है कि अपने व्यापक करिश्मे और भीड़ को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता के बावजूद उनके पास वह राजनीतिक आधार नहीं है जिसके दम पर वह कहीं अधिक अनुभवी, संसाधनों से लैस तथा संचार तंत्र वाली पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को बाहर का रास्ता दिखा सकें। पश्तून होने के नाते इमरान पश्तून बहुल इलाकों में कुछ मत अपनी ओर खींच सकते हैं, लेकिन सामुदायिक और वर्गीय आधार पर बुरी तरह विभाजित देश में फिलहाल यह अपेक्षा करना कठिन है कि वह पंजाब के केंद्रीय इलाके में पर्याप्त बहुमत जुटा सकेंगे। पंजाब में उनका रास्ता रोकने के लिए शरीफ बंधु तैयार बैठे हैं। इसके अतिरिक्त दबदबे वाले चौधरी बंधु तथा पीपीपी के पंजाबी नेता भी इमरान के लिए मुश्किलें खड़ी करेंगे। शरीफ बंधु एक लंबे समय से पंजाब में शासन कर रहे हैं और जनरल परवेज कयानी के खिलाफ मोर्चेबंदी के बावजूद उनकी राजनीतिक पकड़ कमजोर नहीं हुई है। संक्षेप में कहें तो इमरान के पास अकेले यह ताकत नहीं है कि वह इस्लामाबाद की सत्ता तक पहुंच सकें। यही कारण है कि उन्हें सेना के समर्थन की तगड़ी आवश्यकता है। दूसरी ओर सेना को भी अपने खोए हुए सम्मान को फिर से हासिल करने के लिए इमरान की जरूरत है। कयानी चाहते तो आसानी से पाकिस्तान की सत्ता अपने हाथ में लेते और सेना के लिए खराब हुए हालात को दुरुस्त कर लेते, लेकिन वह चतुर सेनाध्यक्ष हैं। वह जानते हैं कि पाकिस्तान के लिए अपने आर्थिक संकट से निकलने की फिलहाल कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। इतना ही नहीं, पाकिस्तानी समाज भी इसके पहले वर्गीय और जातीय आधार पर इतना कभी विभाजित नहीं रहा जितना आज है। खुद कयानी के अमेरिका के साथ संबंधों तथा ड्रोन हमलों को लेकर सेना के साथ-साथ पाकिस्तानी समाज में काफी नाराजगी है।


कयानी यह भलीभांति जानते हैं कि उनके सैन्य नेतृत्व में ही पाकिस्तान एक असफल राष्ट्र बनने की दिशा में है। इसके पीछे मुख्य कारण सेना की गलत नीतियां तो हैं ही, चीजों को दुरुस्त कर पाने में उनकी असफलता भी है। आर्थिक और सुरक्षा, दोनों बिंदुओं पर पाकिस्तान आज जितना असुरक्षित नजर आ रहा है उतना इसके पहले कभी नजर नहीं आया और इसके चलते कयानी के लिए यह कतई आसान नहीं है कि वह सत्ता अपने हाथ में ले लें। कयानी यह भी जानते हैं कि उनके पूर्ववर्ती परवेज मुशर्रफ, जो अनेक कारणों से उनसे कई गुना ज्यादा शक्तिशाली थे, को प्रबल जनविरोध के कारण सत्ता ही नहीं देश से बाहर होना पड़ा था। वह यह भी जानते हैं कि जनरल नियाजी और याह्या खान को कितनी शर्मिदगी का सामना करना पड़ा था। स्पष्ट है कि चाहे जैसी अटकलें लगाई जाएं, कयानी तख्तापलट जैसा कुछ नहीं करने वाले। चूंकि इमरान खान अपनी दम पर पाकिस्तान की सत्ता में आने की स्थिति में नहीं इसलिए कयानी के लिए सर्वश्रेष्ठ विकल्प है कि वह उन्हें मोहरे के रूप में इस्तेमाल करें। यह संभव है कि आने वाले समय में इमरान खान पाकिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में नजर आएं। मेमोगेट दरअसल इसी गुत्थी को सुलझाने वाला प्रकरण है। योजना जरदारी को इस्तीफा देने के लिए विवश करने की थी, जिसके बाद पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी सरकार का पतन होता और सेना को राजनीति में अपनी भूमिका निभाने का मौका मिलता। देश में स्थिरता के नाम पर कयानी को एक कार्यवाहक सरकार गठन करने का बहाना मिल जाता। यह योजना अभी भी समाप्त नहीं हुई है।


राजीव शर्मा सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh