Menu
blogid : 5736 postid : 6946

अंजाम से भागते मुशर्रफ

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

बिल्कुल फिल्मी अंदाज में जनरल परवेज मुशर्रफ इस्लामाबाद (General Parvez Musharraf) हाई कोर्ट से उस समय भाग खड़े हुए जब जज ने उनकी जमानत अर्जी खारिज करते हुए उनकी गिरफ्तारी का आदेश दिया। अदालत में परवेज मुशर्रफ द्वारा नवंबर 2007 में आपातकाल लगाने के बाद अवैध रूप से 60 जजों को नजरबंद करने की सुनवाई चल रही थी। मुशर्रफ ने कानून का पालन करने वाले एक जिम्मेदार नागरिक और एक पूर्व राष्ट्रपति व रिटायर्ड सेना प्रमुख की तरह आचरण नहीं किया। उन्होंने एक भगोड़े या एक ऐसे व्यक्ति के रूप में आचरण किया जो खुद को कानून से ऊपर समझता है। सच्चई यह है कि जनरल जहांगीर करामात को छोड़कर पाकिस्तान के तमाम सैन्य प्रमुख खुद को न केवल कानून से ऊपर, बल्कि खुद कानून समझते रहे हैं।


Read: दवाओं की तकदीर बदलेगा यह फैसला


अदालत से भागकर मुशर्रफ इस्लामाबाद स्थित अपने फार्म हाउस पहुंच गए। अपनी गिरफ्तारी के आदेश के खिलाफ उन्होंने तत्काल सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की, जो खारिज हो गई। पाकिस्तान बड़ी उत्सुकता से देख रहा है कि अब वर्तमान सैन्य प्रमुख, न्यायपालिका और कार्यवाहक सरकार क्या कदम उठाती है? मुशर्रफ के पाकिस्तान लौटने से सेना पहले ही असहज महसूस कर रही है और उसमें उनके प्रति कोई हमदर्दी दिखाई नहीं देती। वह मुशर्रफ (Musharraf) को विदेश में देखना ही पसंद करती। साथ ही वह अपने पूर्व अध्यक्ष को अपमानित होते भी नहीं देखना चाहेगी। यह उसकी छवि और मनोबल के लिए घातक होगा। वह पर्दे के पीछे बीच का कोई रास्ता निकालने की कोशिश करेगी कि कानून का पालन भी हो जाए और मुशर्रफ का कुछ मान भी बच जाए। एक रास्ता यह भी निकलता है कि उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डालने के बजाय फार्महाउस में ही नजरबंद रखा जाए। इसके लिए यह दलील रखी जा सकती है कि जेल में उन्हें पूरी सुरक्षा नहीं मिल पाएगी। अगर उन्हें उनके घर से ले भी जाया जाएगा तो उनके लिए एक आरामदायक मकान की व्यवस्था की जाएगी। क्या मुशर्रफ दिखावटी शहादत का रूप अपनाकर खुद को पुलिस के हवाले कर देंगे? अगर वह ऐसा करते हैं तो भी उनकी विश्वसनीयता पर आंच आएगी और सवाल पूछे जाएंगे कि उन्होंने ऐसा हाई कोर्ट में क्यों नहीं किया?


मुशर्रफ (Musharraf) के साथ जो कुछ हुआ उसका पाकिस्तान के भविष्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। उनकी बड़ी दयनीय स्थिति है और वह असलियत से कोसो दूर एक काल्पनिक लोक में रह रहे हैं। यह हैरत की बात है कि उन पर पाकिस्तान के मुकाबले भारत में अधिक ध्यान दिया जा रहा है। अपनी खुशफहमी के बावजूद पाकिस्तान में उन्हें जरा भी राजनीतिक समर्थन हासिल नहीं है। 11 मई को होने वाले आम चुनावों के लिए उनका नामांकन चार जगहों से खारिज होने पर भी किसी ने खास ध्यान नहीं दिया। इससे पाकिस्तान के राजनीतिक और राष्ट्रीय जीवन में उनकी अप्रासंगिकता सिद्ध होती है। मुशर्रफ भले ही पाक सेना को अधिक भाव न देते हों, किंतु वही पाकिस्तान में निर्णायक अधिसत्ता है और भविष्य में भी रहेगी। देश की सामरिक नीतियों पर इसका पूरा नियंत्रण है। पाकिस्तान के परमाणु और मिसाइल जखीरे का स्विच भी इसी के हाथों में है। यह पाकिस्तान की सुरक्षा से जुड़ी हुई विदेश नीति पर भी दखल रखती है। इनमें भारत, अफगानिस्तान और अमेरिका को लेकर विदेश नीतियां शामिल हैं। वास्तव में अगर सेना जरूरी समङो तो वह सरकार पर कब्जा भी कर सकती है। वर्तमान मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार चौधरी के कार्यकाल में पाकिस्तान की न्यायपालिका की आक्रामकता भी भोथरी हो जाएगी, जब सेना अपनी पर उतर आएगी। फिलहाल, सेना को यह उचित नहीं लगता कि वह सीधे-सीधे सरकार पर नियंत्रण करे। पाकिस्तान तालिबान से जंग और अफगानिस्तान पर ध्यान देने से उसके दोनों हाथ भरे हुए हैं।


Read: पोर्न के काले बाजार पर रोक की पहल


पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी द्वारा पांच साल का कार्यकाल पूरा किए जाने की बड़ी चर्चा है। इसमें संदेह नहीं कि यह अपने आप में एक सकारात्मक घटना है। इसका श्रेय जाता है पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के राजनीतिक कौशल को। बेनजीर भुट्टो की छाया से निकलकर वह एक घाघ राजनेता के रूप में उभरे हैं। साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने अन्य राजनीतिक दलों और नेताओं को साधने में सफलता हासिल की है। अब तक पाकिस्तान में कोई भी राजनीतिक हस्ती यह करने में कामयाब नहीं रही है। विश्वसनीय खबरे हैं कि उनकी पहुंच सुरक्षा संस्थानों तक भी हो गई है। पाकिस्तान में आम चुनाव तालिबानी हिंसा के साये में होने जा रहे हैं। खैबर पख्तून प्रांत में अवामी नेशनल पार्टी पाकिस्तानी तालिबान के निशाने पर है। चुनाव के दिन तक अगले तीन हफ्तों में आतंकी वारदात बढ़ने की आशंका बनी हुई है, लेकिन यह भी तय है कि वे किसी भी हाल में चुनाव होने से रोक नहीं पाएंगे। उम्मीद की जा सकती है कि चुनाव निष्पक्ष होंगे। यह प्रश्नन उभर रहा है कि चुनाव में क्या होगा, इसके परिणाम क्या होंगे? किसी भी चुनाव के नतीजों के बारे में कुछ भी कहना मुश्किल होता है। मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए यह लगता है कि नेशनल असेंबली के लिए होने जा रहे ये चुनाव पुराने स्थापित राजनीतिक दलों के बीच का कोई खेल होगा। इनमें नवाज शरीफ की पीएमएल (एन), पीपीपी और एएनपी प्रमुख हैं। धार्मिक दल ध्यान तो खींच सकते हैं, लेकिन मतदाताओं को लुभाने का उनका कोई रिकॉर्ड नहीं रहा है। नवाज शरीफ से उनके रिश्ते अच्छे हैं। इमरान खान ने बड़ा अभियान छेड़ रखा है। वह शहरी मतदाताओं के बीच खासे लोकप्रिय हैं, खास तौर पर युवाओं में। वह प्रशासन के मुद्दे उठा रहे हैं। एक स्तर पर यह भी माना जा रहा था कि उन्हें सेना का समर्थन हासिल है। हालांकि इमरान के पास बिरादरी का समर्थन नहीं है। पाकिस्तानी राजनीति में बिरादरी उतनी अहमियत नहीं रखती जितनी अहमियत अपने यहां की राजनीति में जाति रखती है। बावजूद इसके बिरादरी की महत्ता को कम करके नहीं आंका जा सकता। चुनाव में इमरान खान निर्णायक भूमिका में उभर सकते हैं। चुनाव बाद दो बातें अहम हो सकती हैं। एक भारत का फोकस हमेशा पाक सेना पर रहना चाहिए, जिसने अपना शत्रुतापूर्ण रवैया कम नहीं किया है। दूसरा यह कि राजनेताओं का प्रभाव भारत के लिए पाकिस्तानी नीतियों में सीमित ही है। पाकिस्तानी नेताओं को दिए जाने वाले किसी भी भोज से उन्हें हमारे आंतरिक मामलों में दखलअंदाजी करने से रोका नहीं जा सकता। संसद पर हमले के दोषी अफजल की फांसी पर राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की टिप्पणी इसका उदाहरण है। उन्होंने दावा किया कि भारत ने न्यायिक प्रक्रिया से छेड़छाड़ की। स्पष्ट है कि हमें और अधिक सतर्क रहने की जरूरत है।


लेखक विवेक काटजू विदेश मंत्रलय में पाकिस्तान डिवीजन के प्रभारी रहे हैं


Read more:

भगोड़े बने जनरल परवेज मुशर्रफ

अब इमरान से है लोगों को उम्मीद


Tags: musharraf, retired general parvez musharraf, parvez musharraf,  islamabad court, benazir Bhutto, parvez musharraf in hindi, musharraf in hindi, मुशर्रफ, परवेज मुशर्रफ, पूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति.


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh