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ऐसा कम ही होता है, जब सोना निवेश की दृष्टि से कभी घाटे का सौदा साबित हो, लेकिन ऐसा भी देखने में कभी नहीं आया कि सोना एक दिन में ही तकरीबन डेढ़ हजार रुपये चढ़ गया हो। असंभव से लगने वाली इस महंगाई पर भी लोगों को आश्चर्य नहीं हुआ। सोने ने इस साल अगस्त में नया रिकॉर्ड बनाया। 18 अगस्त को इसकी 10 ग्राम की कीमत 26,840 रुपये थी और महज एक दिन में यानी 19 अगस्त को यह बढ़कर 28,150 रुपये पहुंच गई। महज एक दिन में इतनी ज्यादा बढ़ोतरी सभी के लिए हैरान करने वाली थी। यह बढ़ोतरी ऐसे समय में हुई जब न तो दीपावली है और न ही शादियों का मौसम सोने दरअसल यह जबरदस्त उछाल अंतरराष्ट्रीय निवेश बाजार के चलते ही आई है। सोना हमेशा से निवेशकर्ताओं का विश्वास जीतता आ रहा है। पिछले 50 सालों के इतिहास में सिर्फ एक या दो मौके ही ऐसे आए हैं जब सोने पर किए गए निवेश से किसी को नुकसान हुआ हो, लेकिन सोने अब यह विश्वास भी डिगने लगा है। इस कदर अंतरराष्ट्रीय उछाल शायद ही पहले कभी देखा गया। इससे यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि भूमंडलीय बाजार में सोने की कितनी जबरदस्त मांग है।
सोने की मांग में यह बढ़ोतरी लगातार हो रही है। भले हम कितनी ही महंगाई से परेशान हों, लेकिन हर बीतते साल में हिंदुस्तान में सोने की खरीदारी का आंकड़ा बढ़ता ही है कभी घटता नहीं। भारत में सोने की हर साल 800 से 900 टन की मांग है, जबकि आधिकारिक तौर पर दुनिया में हर साल सोने का उत्पादन 2000 टन से कुछ ही ज्यादा है। भारत में सोना महज लोगों की लालसा का दूसरा नाम नहीं है। सोना बाजार का सबसे भरोसेमंद निवेश है जिसमें निरंतर बढ़ोतरी की उम्मीद की जा सकती है। कहने का मतलब यह है कि बैंकों द्वारा दी जाने वाली फिक्स डिपॉजिट दरों से भी सोना कहीं ज्यादा रिटर्न देने वाला साबित होता है। यह अकारण नहीं है कि गोल्ड ईटीएफ आम म्युचुअल फंड्स की तुलना में कहीं ज्यादा बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। अप्रैल 2007 से सितंबर 2009 के बीच इनकी पूंजी में 400 फीसदी की बढ़ोतरी हुई तो इसके बाद सोने में निवेश करने वालों की संख्या में भी भारी इजाफा हुआ। ऐसे में कई बाजार के विशेषज्ञों को लग रहा था कि अब सोने में गिरावट का सिलसिला शुरू होगा पर ऐसा नहीं हुआ। इस साल मार्च से जुलाई के बीच ही सोने में निवेश करने वाले निवेशकर्ताओं की संख्या में 24 फीसदी इजाफा हुआ। मार्च 2011 में जहां इनकी संख्या 31,9679 थी वह बढ़कर जुलाई में 39,6400 हो गई। आज हालत यह है कि बैंकिंग, फॉर्मा, टेक्नोलॉजी, टैक्स प्लानिंग, एफएमसीजी जैसी इक्विटीज के मुकाबले गोल्ड ईटीएफ में रिटर्न कहीं ज्यादा बेहतर है। यही कारण है कि बड़ी तादाद में लोग सोने में निवेश की तरफ बढ़ रहे हैं।
सोने के आगे सब कुछ फीका साबित हो रहा है। बाजार पर पारंपरिक मूड का जो दबाव रहता है उसे देखते हुए हर बार विशेषज्ञों को लगता है कि अब धमाका होगा और सोने पर होने वाले निवेश में कमी होगी, लेकिन हर बार यह आंकड़ा बदल जाता है। विशेषज्ञ गलत साबित हो जाते हैं। अप्रैल 2011 से जुलाई 2011 के बीच ही गोल्ड ईटीएफ में 1508 करोड़ रुपये का निवेश हुआ। यह पिछले साल की तुलना में इसी अवधि के मुकाबले पांच गुना ज्यादा था। गोल्ड इटीएफ की कुल पूंजी जहां इस साल मार्च में 4400.24 करोड़ रुपये थी वहीं जुलाई में यह बढ़कर 6119.29 करोड़ रुपये हो गई। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सोने में बढ़ोतरी का क्या आलम है और उसमें कितनी निरंतरता है। पिछले एक साल में जहां एफएमसीजी इक्विटी का रिटर्न 16.69 फीसदी रहा, बैंकिंग का 12.42, फॉर्मा का 10.26, टेक्नोलॉजी का 2.12 वहीं गोल्ड ईटीएफ का रिटर्न 33.02 फीसदी रहा। बाजार के इन आंकड़ों से यह साबित करना कतई मुश्किल नहीं है कि सोने में निवेश न सिर्फ मनोवैज्ञानिक सुकून देता है, बल्कि आधुनिक जोखिम भरी बाजार आधारित अर्थव्यवस्था में भी सोने पर निवेश पूरी तरह से खरा और सुरक्षित है। पर यह कोई नई बात नहीं है। सोना हमेशा से न सिर्फ एक सुरक्षा का जरिया रहा है, बल्कि उस पर किया गया निवेश हमेशा बुद्धिमानी की बात रही है। शायद यही कारण है कि हिंदुस्तान में हमेशा से सोने को लेकर लोगों में मोह रहा है। तीसरी-चौथी शताब्दी में जब भारत वाकई सोने की चिडि़या कहलाने का हकदार था तो भारत में जबरदस्त सोने का भंडार था। सोने की यह ललक अभी भी भारतीयों में कम नहीं हुई है, भले अब भारत के पास सोने की चिडि़या कहलाने का वाजिब कारण न हो।
भारत में हर वर्ष औसतन 700 से 800 टन सोने का आयात किया जाता है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक 2008 के अंत में आम भारतीयों के पास 15,000 टन सोने का भंडार था। वर्ष 2008 में 660 टन से ज्यादा सोना स्वर्ण आभूषणों के लिए खरीदा गया वहीं 2009 और 2010 में भी तकरीबन 700 और 730 टन सोना खरीदा गया था। 2011 में भारतीयों के पास सोने का भंडार बढ़कर लगभग 18,000 टन हो चुका है। याद रखें इस दौरान सोने की कीमतों में भारी इजाफा हो चुका था। सोने की घरेलू मांग के मामले में हिंदुस्तान अदभुत देश है। चाहे सूखा पड़े या बाढ़ आए या फिर अर्थव्यवथा गिर रही हो, लेकिन सोने की मांग प्रभावित नहीं होती। सोने की मांग में हर साल 8-10 फीसदी की बढ़ोतरी हो जाती है। यही कारण है कि आज भारतीयों के पास तकरीबन 45 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा का सोना है। लगभग हर भारतीय के हिस्से 37,000 रुपये का सोना है।
विश्व स्वर्ण परिषद का अनुमान है कि भारत में कभी भी सोने की मांग 500 टन से नीचे नहीं जाएगी चाहे कितनी ही मंदी क्यों न हो? इस समय दुनिया में भारत सरकारी स्तर पर सोने के रिजर्व के मामले में 11वें नंबर पर है। आधिकारिक तौर पर भारत सरकार के पास 614.8 टन सोना है और 8133.5 टन सोने के साथ अमेरिका पहले स्थान पर है। दूसरे नंबर पर जर्मनी के पास 3401 टन सोना है। जरा सोचिए अगर भारत के लोगों के पास मौजूद स्वर्ण भंडार को जोड़ दिया जाए तो अमेरिका और जर्मनी कितने दयनीय साबित होंगे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सोने के मामले में हम विश्व में कितनी मजबूत स्थिति में हैं। यह कहने की जरूरत नहीं है कि सोने पर निवेश पूरी तरह से सुरक्षित है, लेकिन सवाल है कि आखिर सोने का बाजार इस कदर लगातार ऊपर क्यों चढ़ रहा है? फिलहाल सोने के दामों में जो जबरदस्त उछाल देखने को मिल रहा है, उसके पीछे क्या सिर्फ वही परंपरागत कारण हैं, जो अब तक होते रहे हैं या कुछ और हैं? इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है सोने को लेकर चीन का आक्रामक रवैया। सोने की कीमतों में तेज बढ़ोतरी का एक बड़ा कारण पूरी दुनिया में प्रॉपर्टी बाजार का ठंडा होना है। चूंकि प्रापर्टी बाजार बेहद मंदा है और शेयर बाजार में तमाम उम्मीदों के बावजूद निवेश करना जोखिम भरा होता है इस कारण लोग सोने पर दांव लगा रहे हैं। हाल के सालों में इसीलिए सोने को लोग अपने निवेश पोर्टफोलियो में जगह दे रहे हैं। इसमें आपको सोना खरीदने या उसे सुरक्षित रखने जैसी चिंताओं का सामना नहीं करना पड़ता।
लेखिका वीना सुखीजा स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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