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अश्लीलता का हल्ला

जागरण मेहमान कोना
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Peeyush Pandeyसोशल नेटवर्किग साइट पर पसरी अश्लील सामग्री को लेकर अचानक बहस तेज हो गई है। हाल में दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने फेसबुक, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट समेत 21 सोशल नेटवर्किग वेबसाइटों पर आपत्तिजनक विषयवस्तु के लिए सम्मन जारी किया। अदालत ने एक निजी शिकायत का संज्ञान लेते हुए यह आदेश दिए हैं। अदालत ने केंद्र सरकार को भी निर्देश दिए हैं कि वह इस संदर्भ में फौरन उपयुक्त कदम उठाकर 13 जनवरी तक रिपोर्ट दाखिल करे। अदालत ने इन कंपनियों को आइपीसी की धारा 120बी (आपराधिक षडयंत्र रचने) 292 (अश्लील पुस्तकों का विक्रय) और 293 (युवाओं को अश्लील वस्तुओं का विक्रय) के तहत मुकदमे का सामना करने के लिए समन जारी किया है। सूचना तकनीक कानून के मुताबिक सोशल नेटवर्किग साइट, सर्च इंजन आदि अपने यहां होस्ट सामग्री के लिए जिम्मेदार नहीं हैं अलबत्ता शिकायत मिलने पर उन्हें आपत्तिजनक सामग्री हटाने होंगे। अश्लील और धार्मिक द्वेष फैलाने वाली सामग्री को हटाया जाना चाहिए, लेकिन सवाल यह है कि क्या कोर्ट को निजी शिकायत पर कंपनियों को ट्रायल का सामना करने के लिए कहना उचित है। खासकर तब जबकि अश्लील सामग्री को सिर्फ एक आदेश जारी कर हटवाया जा सकता है।


कोर्ट का आदेश दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल के सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री को लेकर छेड़ी मुहिम का समर्थन करता दिखता है। इस लिहाज से सोशल मीडिया पर कथित पाबंदी के लिए उठाए जा रहे कदमों को भी ठीक ठहराता है।, लेकिन सवाल सिर्फ कोर्ट के इस आदेश या कपिल सिब्बल की मुहिम का नहीं है। सवाल है इंटरनेट पर पसरी अश्लील सामग्री का। सेंसरशिप और फिल्टरिंग सॉफ्टवेयर बेचने वाली कंपनी ऑप्टेनेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक इंटरनेट पर 37 फीसदी सामग्री पोर्न कंटेंट के दायरे में आती है। 2006 में एक अन्य कंपनी द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक सेक्स शब्द को 7 करोड़ 56 लाख बार सर्च किया गया और 414 मिलियन पेज पर यह शब्द की-वर्ड के रुप में दर्ज था। इस आंकड़े को आधा भी कर दिया जाए तो भी यह बहुत अधिक है। दरअसल, इसमें कोई दो राय नहीं है कि इंटरनेट पर अश्लील कंटेंट का विस्तार बहुत ज्यादा है और उसके दर्शकों की संख्या बहुत अधिक, लेकिन सवाल इसे रोकने के तरीकों को लेकर भी है और वास्तविक समस्याओं को अनदेखा कर छोटी समस्याओं को बड़ा करने का भी। मसलन फेसबुक के जरिए देह व्यपार का बड़ा गोरखधंधा पूरी दुनिया में संचालित हो रहा है।


फेसबुक पर यहां भी सेक्स रैकेट चल रहे हैं, लेकिन इस समस्या का कहीं कोई जिक्र ही नहीं है। पोर्न साइट्स के लिए खासतौर पर बनाए गूगल डोमेन को लेकर भारत में कहीं कोई बहस नहीं है। आइसीएएनएन ने मार्च में ही ट्रिपलएक्स डोमेन को मंजूरी दे दी थी। उस वक्त भारत ने इसका विरोध किया था, लेकिन भारत के विरोध को अनदेखा करते हुए भी इस डोमेन को मंजूरी दी गई। इसी साल छह दिसंबर से यह डोमेन सार्वजनिक बिक्री के लिए उपलब्ध हो गया है। हालांकि, भारत में इस डोमेन को लेकर अभी भी पाबंदी है और भारत ऐसा करने वाला पहला देश है, लेकिन इससे जुड़ी दो महत्वपूर्ण बाते हैं। पहली, बहुत संभव है कि भारत में भी डोमेन कुछ सालों में उपलब्ध हो जाए। दूसरा, भारत की बड़ी कंपनियों, ब्रांड और तमाम दूसरे संस्थानों के नामों को ट्रिपलएक्स सफिक्स के साथ विदेशों में खरीदा जा सकता है। यानी अचानक भारतीय कंपनियों के नामों से जुड़ी वेबसाइट इंटरनेट के रेडलाइट एरिया में दिखाई देंगी। भले वह साइट अभी भारत में नहीं दिखाई दें, लेकिन इससे क्या उनकी छवि धूमिल नहीं होगी। हालांकि, भारत में इस तरह का कोई मामला अभी सामने नहीं आया है, लेकिन ऐसा होने की आशंका से कतई इंकार नहीं किया जा सकता।


इस आलेख के लेखक पीयूष पांडे हैं


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