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पारदर्शी क्रांति का संघर्ष

जागरण मेहमान कोना
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rajeev chandrshekharपूरे देश में पारदर्शिता को लेकर चल रहा संघर्ष स्वाभाविक है। यहां मूल प्रश्न यह है कि इस संघर्ष के पहलू कौन से हैं और कौन इनका प्रतिनिधित्व कर रहा है? यह आंदोलन जिस तरह का है और जैसा मीडिया द्वारा दिखाया-बताया जा रहा है उसके मुताबिक यह संघर्ष सरकार में बैठे सत्ताधारी लोगों और सिविल सोसाइटी के बीच खाली पड़े स्थान को भरने के लिए चल रहा है। दोनों ही पक्ष इस समय लोकपाल बिल को लेकर अपनी-अपनी बातों और तर्को पर दृढ़ता से टिके हैं। इस आंदोलन का वास्तविक उद्देश्य सरकार में व्याप्त बुराई और राजनीतिक भ्रष्टाचार को खत्म करना है। इस कारण दोनों ही पक्षों को अपनी रणनीति और स्थिति में बदलाव करने की आवश्यकता है। सरकार के सामने इस समय सबसे बड़ी समस्या उसकी लोकप्रियता में आ रही गिरावट है। अन्ना हजारे और उनके साथियों द्वारा चलाए जा रहे इस आंदोलन ने परंपरागत धारणा के समक्ष कड़ी चुनौती पेश की है। लोगों का खिंचाव आंदोलन के प्रति बढ़ रहा है। इस स्थिति को देखते हुए यथावाद को चुनौती मिली है और राजनेताओं द्वारा इसकी तीव्र प्रतिक्रिया भी दी जा रही है। सभी तरह के राजनीतिक जवाबों में एक ही बात प्रतिध्वनित हो रही है कि हम बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं।


इस बदलाव को हमारे रक्षामंत्री एके एंटनी ने पारदर्शी क्रांति कहा है। उन्होंने इसे एक अनिवार्य वास्तविकता बताया है जो यथास्थिति को तोड़ने में निश्चित तौर पर सफल रहेगी। इसके लिए उन्होंने चेताया है कि लोगों को लंबी यात्रा के लिए तैयार होना होगा, क्योंकि तभी यह क्रांति आगे बढ़ेगी और इसका अनिवार्य परिणाम भी निकलेगा। यही वह संदेश है जिसे राजनीतिक वर्ग को समझना होगा। ठीक इसी तरह अन्ना हजारे के नेतृत्व में चल रहे पारदर्शी आंदोलन के समर्थकों को समझना होगा कि लक्ष्य हासिल करने के लिए उन्हें अपने दृष्टिकोण में रणनीतिक बदलाव करना होगा। जनता में बढ़ते आक्रोश को देखते हुए राजनीतिक वर्ग को नए तरह की राजनीति की शुरुआत करनी चाहिए। उन्हें राजनीति और राजनेताओं को अलग नहीं करना चाहिए। हमारे गणतंत्र की संरचना में बदलाव निश्चित ही हमारी संसद के भीतर से आ सकता है। संवैधानिक वास्तविकता को किसी भी तरह झुठलाया नहीं जा सकता। सिविल सोसाइटी अथवा जनता की शक्ति केवल हमारे देश में ही प्रासंगिक रही है।


यदि जनता को संसद में पहुंचने वाले सदस्यों के चुनाव की शक्ति है तो संसद को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकार सही तरीके से काम करे और सही निर्णय ले। इस दायित्व को लोकपाल के हाथों में सौंपा जा सकता है जो सरकार में ईमानदारी सुनिश्चित करे और उसके भ्रष्टाचार पर रोक लगा सके। यदि लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में प्रधानमंत्री को रखा जाता है तो वह अपने कैबिनेट के साथियों अथवा अन्य राजनीतिक दबावों के बावजूद अपनी भूमिका को ईमानदारी से निभा सकेंगे। पारदर्शी क्रांति नई पीढ़ी के अच्छे राजनेताओं के उभार को समर्थ बनाएगी और यह पूरे राजनीतिक वर्ग को गंदा होने से भी बचाएगी। जनता बनाम राजनेता के चरित्र को जनता बनाम अच्छे राजनेताओं के गठजोड़ में बदलना होगा ताकि खराब राजनेता सिस्टम से बाहर हो जाएं। यही सच्चाई भी है जिसका बीज बोया जा चुका है। पारदर्शी क्रांति के वर्तमान नेतृत्व को कुछ बदलाव करने होंगे ताकि राजनीतिक सुधार और सुशासन के लक्ष्य को हासिल किया जा सके। यदि वे सफल होते हैं तो पुराने यथास्थितिवादी खुद को किनारे होता पाएंगे और इस कठोर सच्चाई को भी समझ पाएंगे कि वे अब अप्रासंगिक हो चुके हैं।



राजीव चंद्रशेखर राज्यसभा के सदस्य हैं.



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