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देश में बढती नशे की लत

जागरण मेहमान कोना
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injection बीते दिनों दिल्ली में नशीले पदार्थो की बरामदगी के दो बड़े मामले सामने आए। उनमें एक में महिपालपुर स्थित एक कोरियर कंपनी के दफ्तर पर छापा मारकर इंटेलिजेंस विभाग के अधिकारियों ने एक पार्सल बरामद किया, जिसमें से 14 किलों से अधिक हशीश थी। इसे कोलकाता से हांगकांग भेजा जा रहा था। दूसरे मामलें में मायापुरी स्थित एक कोरियर कंपनी के दफ्तर पर इंटेलिजेंस विभाग के छापे में करोड़ों की हेरोइन बरामद की गई। पुलिस के मुताबिक इस काले धंधे में एक नाइजीरियाई नागरिक भी शामिल था। वह पार्सल के बीच में हेरोइन छिपाकर अमेरिका भेजने की फिराक में था। इस तरह नशीले पदार्थो की बरामदगी अब रोजमर्रा की बात हो गई है। पिछले दिनों दिल्ली में सीमा शुल्क एवं केंद्रीय उत्पाद शुल्क के मुख्य आयुक्तों और महानिदेशकों के सम्मेलन में एक नए तथ्य का खुलासा हुआ कि देश में आतंकी गतिविधियों में संलिप्त आतंकियों का पेट पालने के लिए सीमा पार बैठे उनके आका देश में चोरी छिपे ड्रग्स भेज रहे हैं। देश में आतंकियों को फंडिग के लिए ड्रग्स के कारोबार को मुख्य जरिया बना दिया गया है। ड्रग्स तस्करी के इस नए पैटर्न ने सुरक्षा एजेंसियों के होश उड़ा दिए हैं। कारण पाकिस्तान और अफगानिस्तान से अवैध मादक पदार्थो की खेप की मात्रा हर साल तेजी से बढ़ रही है और उस पर कोई अंकुश नहीं लग पा रहा है। हर साल पाकिस्तान से अफगान निर्मित हशीश हजारों किलो की मात्रा में देश में लाई जाती है। ऐसा भी नहीं कि वह पकड़ी न जाती हो। बीते साल ही डीआरआइ ने 1267 किलोग्राम प्रतिबंधित केटामाइन हाइड्रोक्लोराइड जब्त किया था जो तीन साल पहले के मुकाबले दो गुना ज्यादा है।


केटामाइन के अलावा एसेटिक एनहाइड्राइड की तस्करी में भी पिछले सालों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। नारकोटिक्स के अधिकारियों का कहना है कि सबसे ज्यादा तस्करी पाकिस्तान और अफगानिस्तान से हेरोइन की होती है, जिसका मुख्य केंद्र भारत-पाक सीमा है। तस्करी के इस कारोबार में सबसे ज्यादा दिल्ली में रहने वाले अफ्रीकी और अफगानी शामिल हैं। जिस तरह दिल्ली में आए-दिन मारी मात्रा में ड्रग्स की बरामदगी होती है उसे देखकर लगता है कि ड्रग तस्कर इसे ट्रांजिट प्वाइंट के बतौर इस्तेमाल कर रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियों को चकमा देकर न केवल वह अवैध तरीके से भारी मात्रा में नशीले पदार्थ दिल्ली लाने में कामयाब हो रहे हैं, बल्कि वह ड्रग्स को यहां से नेपाल, बांग्लादेश और पूर्वी एशियाई देशों व दुनिया के अन्य मुल्कों को छोटे-छोटे पैकेट बनाकर भेज रहे हैं। इसमें आतंकी संगठनों का भी उन्हें पूरा सहयोग मिल रहा है। देश में कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता जब देश के किसी हिस्से से करोड़ों की हशीश या हेरोइन के पकड़े जाने का समाचार न मिलता हो। यह सबूत है कि देश में नशे का कारोबार किस सीमा तक फैला हुआ है। असलियत में आज कोई एक देश नहीं, समूची दुनिया नशे की गिरफ्त में है।


जहां तक दक्षिण एशियाई देशों का सवाल है भारत, पाक, अफगानिस्तान व म्यांमार अवैध मादक पदार्थो के बीस शीर्ष उत्पादकों में शामिल हैं और भारत में पश्चिम बंगाल और उत्तरांचल के कुछ भागों में अफीम की अवैध खेती निर्बाध गति से जारी है। गौरतलब है कि बोलिविया, वेनेजुएला और म्यांमार नशीले पदार्थो की तस्करी के लिए कुख्यात हैं। हमारे देश में मादक पदार्थो की तस्करी मुख्यत: पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नेपाल से होती है। विश्व में अफगानिस्तान अफीम पैदा करने वाला सबसे बड़ा देश है। एक अनुमान के अनुसार आज वहां चार-साढे़ चार हजार मीट्रिक टन अफीम हर वर्ष पैदा होती है। मेथाकुआलोन जैसी नशीली दवा के उत्पादन में भारत शीर्ष पर है। आइसीबी के अनुसार भारत से सबसे ज्यादा तादाद में दक्षिण अफ्रीका को अफीम का निर्यात होता है।


जहां तक गांजा पीने वालों का सवाल है देश में इनकी तादाद तकरीब 90 लाख है, जबकि इसको 90 हजार के करीब किसान पैदा करने में लगे हैं। दवाओं के निर्माण को लें तो इसमें तकरीब 100 मीट्रिक टन पदार्थो का उपयोग होता है, जबकि शेष अमेरिका और अन्य देशों को निर्यात किया जाता है। सीबीएन की मानें तो कानूनन अफीम की खेती के लिए यूपी, एमपी व राजस्थान जाने जाते हैं, जबकि गैर-कानूनी तौर पर इन राज्यों सहित अरुणाचल, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में भी अफीम की खेती होती है। असलियत में पिछले कुछ वर्षो से अफीम, चरस, हेरोइन, स्मैक, हशीश व अन्य मादक पदार्थो के अलावा भारत कोकीन आपूर्ति का नया केंद्र बनता जा रहा है।


गौरतलब है कि यह दुनिया का सबसे महंगा मादक पदार्थ है जो ब्राजील, मैक्सिको, कोलंबिया, पनामा और वेनेजुएला जैसे लैटिन अमेरिकी देशों में बहुतायत में पाए जाने वाले कोकोवा प्लांट की पत्तियों से बनती है। इन देशों में इसकी कीमत पांच सौ से सात सौ रुपये प्रति ग्राम होती है और जैसे ही यह अफ्रीकी देशों में पहंुचती है इसकी कीमत दोगुनी हो जाती है। भारत पहुंचने पर इसकी कीमत छह से आठ गुना तक बढ़ जाती है और पांच-साढ़े पांच हजार रुपये प्रति ग्राम तक हो जाती है। इस कारोबार में लगे लोग इसे अफ्रीकी देशों के जरिये समुद्री रास्ते से पानी के जहाजों में छुपाकर भारत व अन्य एशियाई देशों में पहुंचाते हैं और फिर यहां से अपने नेटवर्क और कैरियर के जरिये यूरोपीय देशों में पहुंचाते हैं। नारकोटिक्स विभाग के अनुसार अकेले देश की राजधानी दिल्ली में हर साल बीस से पच्चीस किलो से ज्यादा कोकीन का कारोबार होता है। सबसे बड़ी बात यह है कि कार से लेकर बार रेस्टोरेंट तक यह उपलब्ध है। इसे बड़े अमीर लोगों के मजे का शगल बताया जाता है। फिर भी इतनी बड़ी तादाद में इसकी आपूर्ति चिंता की बात है। नशों के आदी लोगों की संख्या एक फीसदी भी नहीं हैं। देश में इसकी सबसे ज्यादा खपत मुंबई, दिल्ली और गोवा में है और इस धंधे में दो दर्जन से ज्यादा गिरोह लगे हैं। ये कोकीन, हेरोइन, स्मैक, चरस व अफीम का कारोबार राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश व अन्य राज्यों से चलाते हैं। इसके अलावा वे हाईडोज टैबलेट के प्रसार में नाइजीरियन, अफगानी व कश्मीरियों का इस्तेमाल करते हैं।


नारकोटिक्स विभाग की मानें तो वे अपना नेटवर्क फैलाने में पुरुषों के साथ महिलाओं का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं और माल की आपूर्ति के लिए वे अपनी सुरक्षा व सहूलियत का ध्यान रखते हुए स्थान भी खुद ही तय करते हैं। इस तरह वह अपने नेटवर्क के जरिये समूचे देश में मादक पदार्थो की आपूर्ति करते हैं और इस काम में उन्हें नेता, नौकरशाह और पुलिस अधिकारियों तक का हरसंभव सहयोग मिलता है। इसके बलबूते ही वह मादक पदार्थो के कारोबार को बखूबी अंजाम देते हैं। पुलिस, सुरक्षा बलों और नारकोटिक्स विभाग की तमाम चौकसी के बावजूद दिनोंदिन यह धंधा सुरसा की मंुह की तरह बढ़ता जा रहा है। यदि इस कारोबार पर नकेल नहीं कसी जाती है तो अपराध पर नकेल लगाना मुश्किल होगा।


ज्ञानेंद्र रावत स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.


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