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कम समय में बड़ी चुनौती

जागरण मेहमान कोना
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meghnath desaiएक ऐसे समय में जब लगातार बढ़ रही महंगाई और सरकार की नीतियों के चलते देश का एक बड़ा तबका कांग्रेस से नाखुश होता दिख रहा था तब सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने जयपुर में चिंतन शिविर बैठक के माध्यम से यह संदेश देने की कोशिश की कि पार्टी आम लोगों, युवाओं, महिलाओं और मध्यम वर्ग के साथ खड़ी है। हालांकि इस चिंतन शिविर में कोई बड़ा नीतिगत फैसला नहीं लिया गया, लेकिन कांग्रेस युवाओं को यह संदेश देने में सफल रही कि वह उनके साथ खड़ी है। इसके लिए फौरी कदम के तौर पर राहुल गांधी को पार्टी में दूसरे नंबर का दर्जा भी दिया गया, ताकि युवाओं को पार्टी से जोड़ा जा सके। यह कदम कितना प्रभावी होगा और युवा कितना कांग्रेस से जुड़ पाते हैं, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन एक बात साफ है कि कांग्रेस 2014 के चुनावों में युवा आबादी को अपने साथ करके चुनाव जीतने की रणनीति पर काम कर रही है और इसके लिए योजनाएं भी बना रही है। दूसरी ओर यदि हम मुख्य विपक्षी दल भाजपा की बात करें तो वह युवा आबादी को अपने पक्ष में करने के लिए ऐसी कोई कोशिश करती नहीं दिख रही है, जो उसके लिए अच्छी बात नहीं है। इस संदर्भ में यदि हम जयपुर चिंतन शिविर बैठक में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के संदेश सुनें तो तस्वीर बहुत कुछ साफ हो जाती है कि क्यों यह बैठक बुलाई गई थी और कांग्रेस पार्टी कितना इसमें सफल रही? इस बैठक में एक और खास बात यह रही कि सोनिया गांधी ने इशारों ही इशारों में यह बता दिया कि वह सरकार की आर्थिक सुधार की नीतियों से बहुत खुश नहीं हैं, क्योंकि इससे देश का आम आदमी और एक बड़ा मध्यम वर्ग कांग्रेस से दूर होता जा रहा है। लगातार पेट्रोल-डीजल के बढ़ रहे दाम और ब्याज दरें कम न होने से मध्य वर्ग काफी दबाव में है।


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घरों के दाम लगातार बढ़ रहे हैं, पहले से ली गई कार, लोन आदि की ईएमआइ को भरना मुश्किल हो रहा है और ऐसे में डीजल आदि के दामों में बढ़ोतरी से दिन-प्रतिदिन की चीजें भी उसकी पहुंच से बाहर हो रही हैं। सोनिया गांधी ने अपने भाषण में इसका जिक्र करते हुए कहा भी कि डीजल, गैस समेत दूसरे पेट्रो उत्पादों की कीमतों में वृद्धि का फैसला मजबूरी में लेना पड़ा, क्योंकि ऐसा नहीं करने से राजकोष पर अतिरिक्त भार पड़ता, जिससे महंगाई और बढ़ती। आखिरकार अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी सार्वजनिक तौर पर यह स्वीकार कर रहे हैं कि संप्रग के रिकॉर्ड में जो सबसे बड़ी कमी रही वह महंगाई को न रोक पाना है, लेकिन यहां सवाल यही है कि क्या वर्तमान नीतियों से सरकार इस समस्या का समाधान कर पाएगी और क्या उसके पास इससे निपटने के लिए कोई दीर्घकालिक नीति है? मेरे विचार से अब सरकार के पास ज्यादा समय नहीं है, क्योंकि 14-15 महीने बाद लोकसभा चुनाव होने हैं और महंगाई को रोकने के लिए दीर्घकालिक नीति पर काम करने की आवश्यिकता है। ऐसा नहीं है कि सरकार इस बात को नहीं समझ पा रही है। उसे यह बात अच्छी तरह पता है और सोनिया गांधी भी इससे चिंतित हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने उन्हें समझा दिया है कि अब यदि वह आर्थिक सुधारों के कदम से पीछे हटते हैं तो सरकार और मुश्किल में फंस जाएगी और यह वास्तविकता भी है। यदि सरकार डीजल, गैस के दाम नहीं बढ़ाती है तो इससे सरकार का राजकोषीय घाटा लगातार बढ़ेगा और अपने घाटे को कम करने के लिए सरकार के पास दो ही विकल्प बचते हैं-पहला यह कि या तो टैक्स दरों में बढ़ोतरी की जाए या आरबीआइ से उधार लिया जाए। दोनों ही स्थितियों में महंगाई की समस्या और विकराल होगी तथा आर्थिक विकास प्रभावित होगा। इसलिए अब सरकार के पास एकमात्र विकल्प यही है कि वह आर्थिक सुधारों की दिशा में आगे बढ़े, क्योंकि ऐसा करने से हो सकता है कि अगले 14-15 महीनों में महंगाई पर थोड़ा-बहुत नियंत्रण पाया जा सके। यदि सरकार अपनी इस रणनीति में सफल रही तो चुनाव के समय उसके पास जनता से यह कहने का मौका होगा कि हमने देश के विकास को रुकने नहीं दिया और महंगाई को भी धीरे-धीरे नियंत्रित कर लेंगे, लेकिन यह एक जुआं है जिसे फिलहाल खेलना ही होगा।


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कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी इस बात को समझ रही हैं, इसीलिए वह एक तरफ तो आम आदमी और मध्य वर्ग के हितों की बात करती हैं तो दूसरी ओर सरकार पर भी कोई लगाम लगाने से हिचक रही हैं। यहां एक बड़ा सवाल आगामी चुनावों में कांग्रेस और भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार की घोषणा का भी है। कांग्रेस जहां राहुल गांधी को अभी से आगे करने की रणनीति पर काम कर रही है वहीं भाजपा नरेंद्र मोदी को केंद्र में रखकर अपनी संभावनाएं देख रही है। दोनों नेताओं की नेतृत्व क्षमता को यदि देखा जाए तो नरेंद्र मोदी राहुल गांधी से बहुत आगे दिखते हैं। मोदी ने गुजरात को जिस तरह से विकास की राह पर आगे बढ़ाया है उसकी देश-विदेश में सभी सराहना कर रहे हैं, जबकि यूपी, बिहार और गुजरात के चुनावों में राहुल गांधी कांग्रेस संगठन की न तो दशा बदल पाए और न ही उसे कोई दिशा दे पाए, लेकिन इतना अवश्य है कि वह दिन-प्रतिदिन अधिक परिपक्व हो रहे हैं और जयपुर में दिया उनका भाषण वाकई काबिलेतारीफ है। यहां हमें इस पर भी विचार करना होगा कि राहुल गांधी ने अभी तक कोई ऐसी जिम्मेदारी नहीं उठाई और न ही ऐसा कोई ठोस काम किया है जिससे उनके नेतृत्व को सही रूप से परखा जा सके। राहुल गांधी कांग्रेस की छवि बदलना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए उन्होंने अभी तक कोई ठोस नीति नहीं पेश की है। अब जब राहुल गांधी को और अधिक जिम्मेदारी और ओहदा दे दिया गया है तो देखना यही होगा कि अगले 14-15 महीने तक वह पार्टी और सरकार को किस तरह दिशा देते हैं। अभी भी सरकार के पास काम करने के लिए मौका है, बशर्ते वह ईमानदारी से ऐसा करना चाहे। इसके लिए सरकार को एक निश्चित दिशा में काम करना होगा और ऊहापोह की मन:स्थिति छोड़नी होगी। एक तरफ तो सरकार मनरेगा, खाद्य सुरक्षा नीति जैसी योजनाओं में पैसा फिजूल बहा रही है तो दूसरी ओर वह राजकोषीय भार को संतुलित करने के लिए सब्सिडी खत्म करना चाह रही है। इस तरह की दोहरी नीतियों से न तो सरकार का भला होने वाला है और न ही देश का।



लेखक मेघनाथ देसाई जाने-माने अर्थशास्त्री हैं



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Tags:India, Petrol, Rate , Money, Congress, Manmohan Singh,  कांग्रेस , ईएमआइ , मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री

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