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संबंध सुधारने के प्रयास

जागरण मेहमान कोना
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पिछले कुछ वषरें से भारत के साथ चीन के रक्षा संबंध तनावपूर्ण चल रहे थे। अब चीन ने इसे पटरी पर लाने की कवायद शुरू कर दी है। इसी के तहत चीनी रक्षा मंत्री जनरल लियांग गुआंगलेई ने 2 से 6 सितंबर की पांच दिवसीय भारत यात्रा की। गौरतलब है कि आठ वषरें की अवधि में भारत का दौरा करने वाले गुआंगलेई चीन के पहले रक्षा मंत्री हैं। यात्रा के दौरान उन्होंने नई दिल्ली में भारत के रक्षा मंत्री एके एंटनी से मुलाकात की और इसमें भारत व चीन ने द्विपक्षीय रक्षा संबंधों तथा विश्वास बहाली के उपायों को बढ़ावा देने के मकसद से सैन्य अभ्यास को बहाल करने का निर्णय किया। विदित हो कि चीन व भारत के बीच सैन्य अभ्यास 2007 से आरंभ हुए थे, लेकिन वर्ष 2008 से आगे नहीं बढ़ सका और रक्षा संबंधों में कई उतार-चढ़ाव के बाद इसे 2010 में बंद कर दिया गया था। 2007 का सैन्य अभ्यास चीन के कुनमिंग में व दूसरा सैन्य अभ्यास 2008 में भारत के बेलगाम में हुआ था। तीसरा सैन्य अभ्यास वर्ष 2010 में होना था, लेकिन इसी वर्ष सेना के उत्तरी कमान के कमांडर लेफ्टिनेन्ट जनरल बीएस जसवाल को चीन ने वीजा जारी करने से मना कर दिया, जिससे भारत ने सभी द्विपक्षीय रक्षा संबंधों पर रोक लगा दी थी। दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों के बीच डेढ़ घंटे तक वार्ता चली, जिसमें दोनों पक्षों ने उच्च स्तरीय आदान-प्रदान, एक-दूसरे के यहां सुरक्षा बलों के प्रशिक्षण और सामुद्रिक सुरक्षा सहयोग पर सहमति जताई। इस कड़ी में दोनों पक्षों ने नौ सैनिक पोतों के पोर्ट कॉल, संयुक्त सैन्य खोज व बचाव अभियान आयोजित करने का फैसला किया है। इसके अलावा समुद्री डकैतों से मुकाबले में अपनी नौसेनाओं के बीच तालमेल व सहयोग बढ़ाने का संकल्प व्यक्त किया है।


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वार्ता के बाद रक्षा मंत्री एके एंटनी ने कहा कि चर्चा बहुत सार्थक रही और उन्होंने चीनी रक्षा मंत्री का चीन आने का आमंत्रण भी स्वीकार कर लिया है। वह अगले साल चीन का दौरा करेंगे। रक्षा मंत्री ने यह भी बताया कि चर्चा के दौरान चीन ने एशिया प्रशांत क्षेत्र तथा दक्षिण चीन सागर को लेकर अपनी चिंताएं सामने रखीं। इस पर दोनों पक्षों ने सीमांत क्षेत्रों, दक्षिण एशिया और एशिया प्रशांत क्षेत्र में द्विपक्षीय रिश्ते व तालमेल बेहतर बनाने पर सहमति कायम की। यह यात्रा निश्चित रूप से बेहतर रही, फिर भी कुछ सवाल खड़े करती है। लियांग की इस बात पर कैसे विश्वास किया जाए कि पाक अधिकृत कश्मीर में कभी भी चीन के सैनिकों की तैनाती नहीं की गई जबकि वहां पर चीनी सैनिकों की उपस्थिति है। उन्होंने बचाव में कहा कि निहित स्वाथरें की वजह से चीन की सामान्य विकासात्मक गतिविधियों को भारत के खिलाफ युद्ध के रूप में दुष्प्रचारित किया जाता है। गुआंगलेई ने कहा कि उनका देश जम्मू-कश्मीर के विवाद में कहीं हस्तक्षेप नहीं कर रहा है और यह समस्या भारत-पाकिस्तान के बीच की है, लेकिन वह यह बताना भूल गए कि जम्मू-कश्मीर के जिस हिस्से पर पाकिस्तान ने कब्जा कर रखा है, वहां पर चीनी मौजूदगी का क्या अर्थ है। दूसरे दो साल पहले जम्मू-कश्मीर में सेना को कमांड करने वाले भारत के एक उच्च सैन्य अधिकारी को वीजा देने से इंकार कर दिया था।


सीमा विवाद जैसे मुद्दे के समाधान के मामले में लियांग शांत रहे। जहां तक नौ सैन्य अभ्यास की बात है तो इसमें चीन के अपने स्वार्थ छिपे है। कुछ समय से उसकी हिंद महासागर में दिलचस्पी बढ़ी है और दक्षिण चीन सागर में उसके लिए संघर्ष के बादल दिखाई पड़ रहे हैं। ऐसे में यही निष्कर्ष निकलता है कि हमें चीन के झांसे में आने के बजाय अपनी रक्षा तैयारियों पर ध्यान केंद्रित रखना होगा। सहयोग के और बहुत से रास्ते खुले हैं।

डॉ. लक्ष्मी शंकर यादव सैन्य विज्ञान विषय के प्राध्यापक हैं


चीनी रक्षा मंत्री



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