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रविवार को सिक्किम समेत देश के विभिन्न भागों में आए भूकंप से अब भी दिल्ली से लेकर कोलकता और उन तमाम छोटे बड़े शहरों-गांवों के लोग भयभीत हैं, जिन्होंने भूकंप के झटकों को महसूस किया। भूकंप से तबाही भी खूब हुई है। 50 से अधिक लोगों ने अपनी जान से भी हाथ धो दिया है। कुछेक महीने पहले जापान में आए भीषण भूकंप और सूनामी को भी याद कर लेते हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि हमारे यहां पर इस तरह की प्राकतिक आपदा आई तो किस तरह के हालात बनेंगे। एक मिनट के लिए तो सोचकर भी पसीना छूट जाता है। जापान में भूकंप के चलते इमारतें ताश के पत्तों की तरह से ढही हैं। उसके बाद आप या कोई भी अन्य शख्स बहुमंजिला इमारत में रहने या उसमें जाकर काम करने से पहले कई मर्तबा सोचेगा। यों तो किसी शहर में किसी प्राकृतिक आपदा के चंद हफ्ते-महीनों तक तो संभावित घर लेने वाला बहुमंजिला इमारतों में जाने से कतराते हैं, पर वक्त गुजरने के बाद जिंदगी सामान्य होने लगती है। लोग ऊंची इमारतों में स्पेस लेने लगते हैं। वह भी बिना किसी खौफ के। पर सवाल उठता है कि क्या हमारे यहां पर भूकंप रोधी इमारतें बन रही हैं? क्या ये दैवीय आपदा की हालत में मजबूती से खड़ी रहेंगी। दु्र्भाग्यवश इन सवालों के उत्तर जानकार नकारात्मक देते हैं।
राजधानी के स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर से जुड़ी रहीं डॉ. नजमा रिजवी याद दिलाती हैं राजधानी के लक्ष्मी नगर में हुए उस भयावह हादसे की, जिसमें करीब 70 मासूम-मेहनतकश इंसानों की जान चली गई थी। देश के दूर-दराज इलाकों से दिल्ली में काम-काज के लिए आए इन लोगों की मौत ने देश भर को हिलाकर रख दिया था। कुछ दिनों तक तो उन अभागे लोगों के लिए आंसू बहाए गए। उसके बाद सब कुछ सामान्य हो गया। वह कहती हैं, उस घटना ने साबित कर दिया था कि हमारे यहां के स्थानीय निकाय अपने दायित्वों का निर्वाह करने में कितनी गैर-जिम्मेदारी दिखाते हैं। अगर दिल्ली नगर निगम के अफसरों ने लक्ष्मी नगर और तमाम दूसरे इलाकों में गैर-कानूनी तरीके से बनने वाली इमारतों को रोकने की चेष्टा की होती तो बड़ी त्रासदी को टाला जा सकता था। जब राजधानी में इस तरह की इमारतें हैं और बन रही हैं तो तेज भूकंप से होने वाले विनाश की कल्पना करने से डर लगता है। साफ है कि हमारी इमारतें अभी किसी बड़ी आपदा से मुकाबला करने के लिए तैयार नहीं हैं। जाहिर है कि इस रोशनी में उस मंजर की कल्पना करने से भी मन भयभीत हो जाता है कि अगर हमारे यहां कभी रिक्टर स्केल सात या उससे अधिक क्षमता वाला भूकंप आया तो क्या होगा। राजधानी की प्रमुख आर्किटेक्चर सलाहकार फर्म से जुड़े हुए आर्किटेक्ट अजमल जहीर खान मानते हैं कि हमारे महानगरों में बड़े बिल्डरों की तरफ से बनने वाली इमारतें सात रिक्टर स्केल की तीव्रता के झटके को तो झेलने में सक्षम हैं। इनका निर्माण ही इस तरह से हो रहा है।
सिक्किम में रविवार को 6.8 रिक्टर स्केल पर भूकंप के झटके महसूस किए गए। उनसे भी खासी तबाही हुई। पर जापान में हाल ही आए बहुत से झटकों में सबसे तेज भूकंप का झटका रिक्टर स्केल पर 9 तीव्रता लिए हुए था। जाहिर है कि उस तीव्रता का भूकंप अगर हमारे यहां कभी आ जाए तो अकल्पनीय विनाश होगा। जान-माल की भंयकर क्षति होगी। अगर बात सिर्फ राजधानी और एनसीआर की हो तो यहां पर सात रिक्टर स्केल पर भूकंप आ चुका है। आगरा में साल 1505 में सात रिक्टर स्केल पर आए भूकंप ने पूरे शहर को जमींदोज कर दिया था। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलूर की तरफ से किए गए अध्ययन में दावा किया गया है कि यदि फ्लाई ओवर, सेतु, आवासीय और कमर्शियल इमारतों आदि का निर्माण ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैडर्ड (बीआइएस) के मानदंडों के हिसाब से हो तो निश्चय ही भूकंप की विभीषका से कुछ हद तक तो बचा ही सकता है। आइआइटी, रूड़की के भूकंपरोधी विभाग के अनुसार, चूंकि देशभर में निर्माण कार्य चल रहे हैं, इसलिए सरकार को यह तो देखना होगा सभी इमारतें बीआइएस के मानदंडों के अनुसार ही बने। बीआइएस के मानदंडों की अनदेखी करने का सीधा-सा मतलब यह है कि हम एक तरह से किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहे हैं। तगड़े भूकंप के झटकों के लगने की हालत में जो इमारतें उपर्युक्त मानदंडों की अनदेखी करके बनेंगी, उनके तो बचने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता।
लेखक विवेक शुक्ला स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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