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इतिहास अपने आपको फिर से दोहरा रहा है। फिर से सत्य और अहिंसा के एक पुजारी अन्ना हजारे ने पूरे तंत्र को हिला दिया है। जनलोकपाल बिल के आंदोलन से हम सभी की उम्मीदें बढ़ी हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई आसन नहीं है। देश में फैला भ्रष्टाचार आसानी से खत्म होने वाला नहीं है। जनलोकपाल बिल बड़े स्तर पर इसे कम करने में सहायक जरूर हो सकता है पर भ्रष्टाचार से निजात पाने के लिए हम सबको जागरूक होना पड़ेगा। हमें एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए की अगर हम समाधान का हिस्सा नहीं हैं तो हम ही समस्या हैं। अन्ना के आंदोलन को समर्थन देने के लिए हमें अपनी कथनी और करनी एक करनी होगी, शुद्ध आचार, शुद्ध विचार रखने होंगे। तभी हम मै अन्ना हूं का नारा बुलंद कर सकेंगे क्योंकि अन्ना सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचार है। अन्ना हजारे ने अपना अनशन तोड़ते समय कहा कि सिर्फ मै अन्ना हूं की टोपी लगाने, टीशर्ट पहनने से कुछ नहीं होगा।
परिवर्तन लाने के लिए हमें अपने आप को बदलना होगा तथा खुद भी भ्रष्टाचार से दूर रहना होगा। तभी हम एक नए भारत का निर्माण कर सकते हैं। देशवासियों को यह ध्यान रखना होगा की मैं अन्ना हूं का अपमान न होने पाए। देश में जो माहौल बना है उसे कायम रखने के लिए हमें और भी ज्यादा जिम्मेदार बनना होगा। तभी भ्रष्टाचार मुक्त भारत का हमारा सपना साकार होगा। जनलोकपाल पर जिस तरह से देश की जनता घरों से निकल कर सड़कों पर आ गई, उससे लगता है कि अब जनता जाग रही है और परिवर्तन चाहती है। इस भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ लोग एक बेदाग नेतृत्व चाहते थे, जो उन्हें अन्ना हजारे के रूप में मिला।
सरकार ने जितना इस आंदोलन को दबाने की कोशिश की यह उतना ही बढ़ता गया। मनीष तिवारी, कपिल सिब्बल जैसे लोगो ने अन्ना पर जितना कीचड़ उछाला, देश के लोगों का अन्ना पर विश्वास उतना ही बढ़ता गया। इस भ्रष्ट तंत्र की वजह से पिछले 44 सालों से लोकपाल बिल संसद में अटका पड़ा है पर किसी सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। देश में लगातार घोटाले होते रहे और हमारी संसद मौन रही। कभी इस पर मजबूत कानून बनाने की नहीं सोची। अब जब देश की जनता जाग गई है तो फिर भी नेतागण इस पर राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे हैं। अभी भी ये लोग इसे आसानी से कानून नहीं बनने देंगे। जनलोकपाल बिल पर प्रस्ताव पारित होना अहम कदम है, लेकिन बिल कब तक पारित होगा, कहना मुश्किल है। संसद में पारित प्रस्ताव को लोकपाल पर बनी स्थायी समिति के पास भेजा जाएगा। समिति उपयुक्त संशोधन और सुझाव के साथ हरी झंडी देगी। फिर इसे संसद के पटल पर रखकर बहुमत से पारित करवाना होगा। शायद इसीलिए अन्ना ने कहा कि यह आधी जीत है, पूरी जीत बाकी है।
आजादी के बाद पहली बार एसा हुआ है जब लोग इतने बड़े पैमाने पर एकजुट हुए हैं और सरकार को जनता के सामने झुकना पड़ा है। इसलिए अब हमें अपनी एकजुटता को बनाए रखना है। इन नेताओं के मंसूबों को पूरा नहीं होने देना है और सड़क से संसद तक संघर्ष करना पड़े तो वह भी करना है। मैं आजादी के आंदोलन के दौरान तो नहीं था पर मैंने देश में, युवाओं में राष्ट्रीयता की इतनी भावना कभी नहीं देखी, इतने तिरंगे कभी सड़कों पर नहीं देखे, देश के प्रति इतना सम्मान, जोश, नेताओं के प्रति गुस्सा कभी नहीं देखा।
वास्तव में ये लोग किसी पार्टी के नहीं थे। ये तो आम आदमी थे जिनमें गुस्सा था इस भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ। यह तो एक बड़े संघर्ष की शुरुआत भर है क्योंकि अभी जनलोकपाल को पारित करने के लिए बड़ी लंबी लड़ाई लड़नी पड़ेगी। राजनेता इसे आसानी से पास होने नहीं देंगे। अभी बिल स्थायी कमेटी में जाएगा, जिसके सदस्य लालू यादव, अमर सिंह जैसे लोग हैं। इस आंदोलन से एक बात और साफ हो गई है कि गांधीजी की विचारधारा आज भी प्रासंगिक है। अहिंसा से बड़ा कोई हथियार नहीं हो सकता। इस आंदोलन में पूरे देश में कहीं कोई हिंसा नहीं हुई। यह हमारे समाज की, जनता की सबसे बड़ी जीत है।
शशांक द्विवेदी स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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