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सांसदों और पूर्व सांसदों की एक महत्वपूर्ण संस्था है जिसका नाम इंडियन पार्लियामेंट्री ग्रुप है और इसकी अध्यक्षा लोकसभा की स्पीकर मीरा कुमार हैं। हर वर्ष संसद के मानसून सत्र के अंत में संसद भवन के परिसर में इसकी आम सभा होती है, जिसमें सांसद और पूर्व सांसद अपने-अपने क्षेत्र के लोगों की भावनाओं से वहां उपस्थित लोगों को अवगत कराते हैं। इस बार भी यह सभा गत 4 सितंबर को संसद भवन में हुई। सभा में सभी के होठों पर एक ही चिंता की बात थी कि क्या भारत से लोकतंत्र समाप्त हो जाएगा? अनेक लोगों ने तो खुलकर कहा कि आज देश की हालत जितनी खराब है उतनी आजादी के बाद कभी नहीं थी। सच यही है कि महंगाई तेजी से बढ़ रही है और गरीब तथा मध्यम वर्ग के लोगों का जीवन दूभर हो गया है। कुछ सांसदों ने कहा कि दिल्ली और एनसीआर के क्षेत्र में झुग्गी झोपडि़यों में रहने वाले गरीब बच्चे एक-एक दाना अन्न के लिए तरसते रहते हैं। परिवार का मुखिया जो कुछ कमाता है उससे दोनों वक्त की रोटी नहीं चल सकती है। बच्चों को शिक्षा दिलाने की बात तो अलग रही। वे दिल्ली से लौटकर जाएं भी तो कहां जाएं? पूरे देश में अराजकता फैली हुई है और क्षेत्रवाद तथा प्रांतवाद के नाम पर संपन्न राज्यों से उत्तर भारत के गरीब लोग भगाए जा रहे हैं। दूसरी तरफ कुछ लोगों को इतना काला धन प्राप्त हो गया है कि वे समझ नहीं पा रहे हैं कि उसे कैसे खर्च किया जाए।
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इंडियन पार्लियामेंट ग्रुप के अधिकांश सदस्यों ने खुलकर कहा कि आए दिन उजागर होते हुए घोटालों के कारण आम जनता का विश्वास राजनेताओं पर से उठता जा रहा है। लोग सपने में भी नहीं सोचते थे कि पर्दे के पीछे कैसा कैसा खेल हो रहा है और ये सफेदपोश लोग कोयले का कैसा काला धंधा कर रहे हैं। कई निष्पक्ष सांसदों और पूर्व सांसदों ने इस बात पर घोर चिंता जताई कि जिस तरह से संसद के दोनों सदनों की कार्रवाई अवरुद्ध हो गई है उससे संसद का आखिर क्या भविष्य होगा? मानसून सत्र होहल्ले के बीच ही समाप्त हो गया। लोगों को डर है कि शायद संसद के शीतकालीन सत्र का भी यही हाल हो। ऐसे में क्या विकल्प होगा? विभिन्न टीवी चैनल और पत्र-पत्रिकाएं यह पूर्वानुमान प्रसारित और प्रकाशित कर रहे हैं कि यदि आज मध्यावधि चुनाव हो जाएं तो किस पार्टी को लोकसभा में कितनी सीटें मिलेंगी? एक बात पर सभी सहमत हैं कि संप्रग की सीटें घटेंगी और राजग की सीटें बढ़ेंगी, परंतु दोनों पक्ष की पार्टियों को इतनी सीटें नहीं मिलेंगी कि वे सरकार बना सकें। ऐसे में मुलायम सिंह के नेतृत्व में तथाकथित तीसरे मोर्चे की स्थापना हो रही है और दावा किया जा रहा है कि यदि दोनों प्रमुख गठबंधन सरकार नहीं बना सके तो तीसरा मोर्चा सरकार बनाएगा, परंतु माकपा के महासचिव प्रकाश करात ने दो टूक कहा कि माकपा तीसरे मोर्चे का हिस्सा नहीं है। हिंदी भाषी राज्यों में एक अत्यंत ही लोकप्रिय कहावत है, न सूत, न कपास, जुलाहों में लट्ठम लट्ठा। अर्थात् अभी तो सरकार गिरने की, मध्यावधि चुनाव होने की कोई संभावना नहीं है। ऐसे में विभिन्न राजनीतिक दल यह ताल ठोंक रहे हैं कि उनका प्रधानमंत्री कौन होगा? यदि दुर्भाग्यवश मध्यावधि चुनाव हो ही गया तो बहुत संभव है कि जो लोग ताल ठोंक रहे हैं उनमें से कोई प्रधानमंत्री नहीं बन सके और कोई देवगौड़ा या गुजराल जैसा नाम अचानक सामने आ जाए।
इंदिरा गांधी अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों से बराबर कहती थीं कि भारत की सही तस्वीर विदेशी समाचार पत्रों में ही दिखती है। वह अपने सहयोगियों को बराबर सलाह देती थी कि वे नियमित रूप से इन समाचार पत्रों को पढ़ा करें। कहा तो यह जाता है कि संजय गांधी, बंशीलाल और विद्याचरण शुक्ला ने प्रेस की आजादी को इमरजेंसी के दिनों में पूरी तरह समाप्त कर दिया था, जिससे देश की सही तस्वीर इंदिरा गांधी को नहीं मिल पाती थी, परंतु वह नियमित रूप से ब्रिटेन और अमेरिका के समाचार पत्र-पत्रिकाएं पढ़ती थीं, जिसमें इमरजेंसी में हो रहे अत्याचारों की कहानियां प्रकाशित होती थीं और शायद यह भी एक कारण था जिसके चलते उन्होंने 1977 में इमरजेंसी समाप्त कर दी और देश में आम चुनाव की घोषणा कर दी। यह एक अलग बात थी कि इस चुनाव में उनकी पार्टी उत्तर भारत में बुरी तरह पिट गई और वह स्वयं चुनाव हार गईं। आज ब्रिटेन और अमेरिका के समाचार पत्र भारत की खिल्ली उड़ा रहे हैं। उनका कहना है कि आज की तारीख में भारत में जितनी अराजकता है उतनी आजादी के बाद कभी नहीं थी। संसार की प्रसिद्ध रेटिंग कंपनियों का कहना है कि आज से दो वर्ष पहले भारत की विकास दर 8 से 9 प्रतिशत थी, आज वह घटकर 5.1 प्रतिशत रह गई है और डर यह है कि यदि इसी तरह की राजनीतिक अस्थिरता छाई रही तो यह विकास दर और भी गिरेगी।
औद्योगिक उत्पादन तेजी से गिर रहा है। देश का निर्यात रुपया कमजोर होने के बावजूद तेजी से घट रहा है। इस सबका असर यह होगा कि आने वाले कुछ महीनों में देश में बेराजगारी तेजी से बढ़ेगी। कल कारखानों से लोगों की छंटाई होगी और जो लोग बेकार हो जाएंगे वे अनजाने में माओवादी संगठनों के सदस्य बन जाएंगे। इन समाचार पत्रों ने संसार के निवेशकों को यह सलाह दी है कि वे भारत में पूंजीनिवेश नहीं करें, क्योंकि वहां राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में घोर अराजकता फैल गई है। संसद की कार्रवाई नहीं चल सकी और जगह-जगह सांप्रदायिक दंगे भड़क रहे हैं और क्षेत्रवाद पनप रहा है। विदेशी समाचार पत्रों की यह चेतावनी भारत के लिए सचमुच अत्यंत ही चिंता का विषय है। भारत एक कठिन दौर से गुजर रहा है और हर बुद्धिजीवी का यह कर्तव्य है कि वह इस बात पर विचार करे कि भारत में आखिर लोकतंत्र का भविष्य क्या होगा?
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लेखक गौरीशंकर राजहंस पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत हैं
लोकतंत्र , भारतीय संसद
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