Menu
blogid : 5736 postid : 5301

डीजल से सब्सिडी हटाने का औचित्य

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

अपने बजट भाषण में वित्तमंत्री ने कहा कि पेट्रोलियम पदार्थो पर सब्सिडी के कारण वर्ष 2011-12 के संशोधित अनुमानों के अनुसार बजट पर कुल बोझ 68,481 करोड़ रुपये का रहा। पिछले साल के मध्य से पेट्रो कंपनियों को पेट्रो उत्पादों की कीमत के निर्धारण का अधिकार दे दिया गया है, लेकिन पेट्रोल, हवाई जहाजों के लिए ईधन इत्यादि की कीमत जहां निजी कंपनियां तय करती हैं, वहीं डीजल, केरोसिन और एलपीजी की कीमतों पर अभी भी सरकार का प्रभावी नियंत्रण बना हुआ है।। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमतों के बढ़ने के कारण पेट्रोलियम कंपनियों को सरकार सब्सिडी प्रदान करती है। पेट्रोलियम सब्सिडी में अधिकांश हिस्सा डीजल सब्सिडी का होता है। प्रधानमंत्री के प्रमुख आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु के आर्थिक सुधारों के बारे में हालिया बयानों के चलते डीजल पर सब्सिडी का मामला फिर से सुर्खियों में आ गया है। सरकार ने हालांकि डीजल सब्सिडी को समाप्त करने के संबंध में किसी निश्चित समय की घोषणा नहीं की है, लेकिन यह जरूर कहा है कि डीजल पर सब्सिडी समाप्त करने के बारे में सैद्धांतिक निर्णय बहुत पहले ही लिया जा चुका है। कुछ समय पहले सरकार द्वारा यह मंशा व्यक्त की गई थी कि वह लग्जरी कारों के लिए डीजल पर सब्सिडी समाप्त करने जा रही है, लेकिन सरकार की इस मंशा की व्यावहारिकता पर प्रश्नचिह्न लगने लगे हैं। जब पिछले वर्ष के मध्य में सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों की बाजार कीमत के निर्धारण में अपना नियंत्रण समाप्त करते हुए उसे बाजार पर छोड़ दिया तो पेट्रोलियम कंपनियों ने उसके बाद कम से कम 10 बार पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि करते हुए पेट्रोल की कीमत को लगभग 66 रुपये प्रति लीटर तक बढ़ा दिया।


एलपीजी और डीजल की कीमतों में भी वृद्धि हुई, लेकिन वह पेट्रोल कीमत में हुई वृद्धि से कहीं कम थी। इसका कारण यह है कि डीजल और एलपीजी में कीमत वृद्धि कम करने की एवज में पेट्रोलियम कंपनियों को भारी सब्सिडी सरकार द्वारा दी जाती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के ऊंचे दाम का हवाला देते हुए पेट्रोलियम कंपनियां सरकार से डीजल सब्सिडी के नाम पर भारी राशि लेती आ रही हैं। सब्सिडी देते हुए डीजल की कीमतों में वृद्धि पर रोक लगाना इसलिए भी जायज ठहराया जाता है कि अगर डीजल की कीमत अधिक बढ़ जाएगी तो उसके कारण वस्तुओं और यातायात की परिवहन लागत भी बढ़ेगी जिस कारण महंगाई और अधिक बढ़ेगी। एलपीजी पर सब्सिडी देना इसलिए उचित माना जा सकता है ताकि आम लोगों की ईधन की कीमत एक सीमा में बनी रहे। कुछ अर्थशास्ति्रयों का मानना है कि सब्सिडी की नीति सही नहीं होती, क्योंकि सरकार द्वारा सब्सिडी देने के कारण एक वस्तु की कीमत तो कम हो जाती है लेकिन दूसरे पर इसका प्रभाव पड़ता है। ऐसे में लोग उस वस्तु का अधिक उपयोग करने लगते है। सामान्यत: जिन वस्तुओं पर सब्सिडी दी जाती है वे ऐसी वस्तुएं होती हैं जिनकी कमी होती है।


उदाहरण के लिए पेट्रोलियम उत्पादों की हमारी देश में कमी है और हम उन उत्पादों के लिए विदेशों पर निर्भर करते हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत लगातार बढ़ रही है। ऐसे में इन वस्तुओं पर सब्सिडी देने से सरकार पर बोझ तो बढ़ता ही है, विदेशों पर हमारी निर्भरता भी बढ़ती है। दुनिया के दूसरे देशों में जहां सरकारें सब्सिडी नहीं देतीं वहां डीजल की कीमत पेट्रोल से भी अधिक होती है। यदि इंग्लैंड का उदाहरण लें तो वहां डीजल की कीमत पेट्रोल की कीमत से लगभग 10 से 15 प्रतिशत अधिक होती है। बाजार में डीजल की मांग और उसकी उत्पादन लागत के आधार पर यह कीमत निर्धारित की जाती है। सामान्य तौर पर डीजल से चलने वाली मध्यम श्रेणी की कारों की औसत माइलेज 18 से 22 किलोमीटर प्रति लीटर होती है, जबकि पेट्रोल से चलने वाली ऐसी कारें मात्र 13 से 16 किलोमीटर तक की ही माइलेज देती हैं। ऐसे में डीजल की सब्सिडी के चलते डीजल सस्ता हो जाता है जिस कारण अमीर लोग डीजल की लग्जरी कारें ही खरीदना पसंद करते हैं। इस तरह उन्हें डीजल सस्ता मिलता है और माइलेज भी अधिक मिलती है। होना तो यह चाहिए कि लग्जरी कारों के लिए डीजल सब्सिडी को खत्म किया जाए। इस वर्ष प्रस्तुत करते हुए वित्त मंत्री द्वारा बार-बार सरकार के विविध प्रकार के सब्सिडी बिलों के बढ़ने पर चिंता व्यक्त की गई और उसे घटाने का संकल्प भी वित्त मंत्री ने बार-बार दोहराया। सरकार द्वारा दी जाने वाली विभिन्न प्रकार की सब्सिडी चाहे वह खाद्य सब्सिडी हो, उर्वरक सब्सिडी हो अथवा डीजल सब्सिडी यह सब देश में आम आदमी की जिंदगी को अधिक सहूलियत देने के लिए होती है। यह सही है कि उस सब्सिडी को जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाना एक महत्वपूर्ण काम है जो सरकारी तंत्र की अक्षमता के कारण पूरा नहीं हो पाता।


जिस प्रकार से खाद्य सब्सिडी और उर्वरक सब्सिडी के वितरण को दुरुस्त किया जाना जरूरी है उसी प्रकार से डीजल सब्सिडी को भी दुरुस्त किया जाना चाहिए। आज डीजल सब्सिडी का एक बहुत बड़ा हिस्सा अमीरों द्वारा डकार लिया जाता है जिसे रोकने की जरूरत है। भारी सब्सिडी के चलते अब सरकार पर यह दबाव बन रहा है कि डीजल से सब्सिडी को पूरा खत्म कर दिया जाए। कुछ लोग कह सकते हैं कि ऐसे में देश में पहले से ही महंगाई की मार झेल रहे आम आदमी के सामने उनकी मुश्किलें और अधिक बढ़ जाएंगी। इसलिए सरकार पर यह दबाव बनाया जाएगा कि डीजल पर सब्सिडी किसी भी हाल में जारी रखा जाना चाहिए। सरकार में शामिल सहयोगी दल भी शायद इसके लिए तैयार नहीं होंगे। इसलिए जरूरी है कि सरकार डीजल पर सब्सिडी की भरपाई का कोई और तरीका खोजे। आज बड़ी संख्या में अमीर लोग लग्जरी डीजल कारें खरीद रहे हैं। उन्हें सस्ते डीजल के कारण होने वाले लाभों से वंचित करना एक सही कदम होगा। इसके लिए डीजल कारों पर अतिरिक्त टैक्स लगाना एक अच्छा कदम हो सकता है। हाल ही में पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली एक शोध संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायर्नमेंट ने भी कार बाजार के डीजलीकरण के खिलाफ मत व्यक्त किया है और डीजल कारों पर अतिरिक्त उत्पाद शुल्क लगाने की पुरजोर वकालत की है। इस संस्था का कहना है कि डीजल वाहन अन्य वाहनों की अपेक्षा कहीं ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं। पेट्रोलियम मंत्रालय ने भी सरकार से गुहार लगाई है कि डीजल कारों पर भारी उत्पाद शुल्क लगाया जाए ताकि पेट्रोलियम कंपनियों को डीजल की सब्सिडी के लिए मुआवजा दिया जा सके। इसलिए सरकार यदि डीजल कारों पर एकमुश्त टैक्स लगाए तो भविष्य में दी जाने वाली डीजल सब्सिडी की वापसी सुनिश्चित हो सकती है। जो लोग सस्ते डीजल के कारण ऐसी गाड़ी खरीदना पसंद करते हैं, उन्हें कर के रूप में पहले ही भविष्य में मिलने वाली सब्सिडी की भरपाई करनी पड़ेगी। इससे डीजल कारों के प्रति लोगों का आकर्षण तो कम होगा ही, सरकार पर सब्सिडी का बोझ भी कम होगा।


लेखक अश्विनी महाजन आर्थिक मामलों के हैं


Read Hindi News


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh