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शहरों का सुरक्षा कवच

जागरण मेहमान कोना
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पेंटागन की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने अपनी नवीनतम डोंगफेंग-21 मिसाइल को भारत की तरफ लक्षित कर रखा है। यह मिसाइल 250 किलोटन का परमाणु हथियार ढोने में सक्षम है। चीन ने हालांकि पेंटागन की इस रिपोर्ट का खंडन कर दिया है। भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान चीन के अंतरमहाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्रों और पाकिस्तान के मध्यम दूरी के प्रक्षेपास्त्रों से उत्पन्न खतरों से भलीभांति वाकिफ है। इन खतरों के मद्देनजर भारतीय रक्षा वैज्ञानिक देश को सुरक्षा कवच प्रदान करने के लिए तत्परता के साथ जुटे हुए हैं। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने आश्वस्त किया है कि अगले तीन वर्षो के भीतर भारत को मिसाइल सुरक्षा कवच मिल जाएगा। डीआरडीओ के वैज्ञानिक 1996 से एंटी-बैलेस्टिक मिसाइल (एबीएम) शील्ड पर काम कर रहे हैं। डीआरडीओ इस सिस्टम की प्रगति से संतुष्ट है। यह सिस्टम न केवल आक्रमणकारी मिसाइल का पता लगा सकता है बल्कि उसे अंतरिक्ष में ही नष्ट करने के लिए एक इंटरसेप्टर मिसाइल भी लांच कर सकता है। यदि यह इंटरसेप्टर मिसाइल निशाना चूक जाती है तो तुरंत दूसरी इंटरसेप्टर मिसाइल छोड़ी जाएगी, जो ऊपरी वायुमंडल में ही शत्रु की मिसाइल को नष्ट कर देगी। इन दोनों तरह की मिसाइलों के तीन-तीन परीक्षण हो चुके हैं।


डीआरडीओ का कहना है कि देश एक पूरी तरह से समन्वित और सुसज्जित एबीएम सिस्टम की तैनाती के काफी नजदीक पहुंच गया है। अगले तीन वर्षो में दिल्ली जैसे बड़े शहर के लिए सुरक्षा कवच तैनात किया जा सकता है। इसके बाद दूसरे शहरों की बारी आएगी। विशेषज्ञों का ख्याल है कि चीनी और पाक मिसाइलों के खतरे को देखते हुए सबसे पहले संभवत: दिल्ली को ही एबीएम कवच प्रदान किया जाएगा। अगले एक-दो महीनों में एबीएम के और परीक्षण किए जाएंगे। वायुमंडल से बाहर और वायुमंडल के अंदर प्रहार करने वाली इंटरसेप्टर मिसाइलों का प्रदर्शन संतोषजनक है। भारतीय रक्षा वैज्ञानिक 2000 किलोमीटर दूर से दागी गई शत्रु की मिसाइलों के खिलाफ भारतीय सिस्टम की काबिलियत दर्शा चुके हैं। कुछ परीक्षणों के बाद भारतीय सिस्टम तैनाती की अवस्था में आ जाएगा। हमलावर मिसाइल का पता लगाने के लिए रडार नेटवर्क भी तैयार हो चुका है। इसमें लंबी दूरी का ट्रैकिंग रडार शामिल है। यह रडार 300 किलोमीटर दूर से दागी जाने वाली मिसाइलों का पता लगा सकता है। इन रडार प्रणालियों के अलावा हमलावर मिसाइल का पता लगाने के लिए उपग्रह आधारित डिटेक्शन सिस्टम भी उपलब्ध है। एबीएम सिस्टम की कार्यकुशलता हमलावर मिसाइल की रेंज पर निर्भर करती है।


अधिक रेंज वाली मिसाइलों का पता लगना मुश्किल होता है क्योंकि उनकी उड़ान की रफ्तार बहुत ज्यादा होती है। फिलहाल संतोष की बात यह है कि डीआरडीओ इस समय भारत की तरफ लक्षित चीनी और पाक मिसाइलों को रास्ते में ही निष्प्रभावी करने में सक्षम है, लेकिन चीन की मिसाइल पावर को देखते हुए डीआरडीओ को अभी काफी मेहनत करनी पड़ेगी। चीन के पास अंतरमहाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्रों का भंडार है और इन्हें दागने के लिए उसके पास बहुत बड़ा भौगोलिक क्षेत्र भी है। वह हजारों किलोमीटर दूर से भी अपनी मिसाइल छोड़ सकता है। भारतीय रक्षा वैज्ञानिक चीन की इस क्षमता से विचलित नहीं है। उन्हें विश्वास है कि वे एबीएम सिस्टम को धीरे-धीरे अपडेट करके उसे लंबी दूरी की मिसाइलों से निपटने में सक्षम बना देंगे।


शत्रुओं की परमाणु मिसाइलों को निष्फल करने के लिए एक मजबूत मिसाइल सुरक्षा कवच का होना जरूरी है, लेकिन इसके साथ ही भारत को अपने पड़ोसियों के मंसूबों से भी सतर्क रहना पड़ेगा। गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से पाकिस्तान ने अपने परमाणु कार्यक्रम की रफ्तार तेज कर दी है। पाकिस्तान का परमाणु आयुध भंडार इस समय दुनिया में सबसे तेज रफ्तार से बढ़ रहा है। खुफिया एजेंसियों के मुताबिक पाकिस्तान के पास इस समय 90 से 110 के बीच परमाणु हथियार हैं।


मुकुल व्यास स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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