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आतंकवाद के खतरे को कम करने के लिए पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देने की वकालत कर रहे हैं प्रकाश सिंह
मुंबई में आतंकवाद की घटना को हुए तीन वर्ष बीत चुके हैं। इस बीच सरकार ने आंतरिक सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए कई कदम उठाए। राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड की इकाइयां हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई और चेन्नई में भी स्थापित की गई। राष्ट्रीय जांच एजेंसी [एनआइए] का गठन हुआ। खुफिया ब्यूरो के अधीन मल्टी एजेंसी सेंटर को सक्रिय किया गया। आतंकवाद से लड़ने का प्रशिक्षण देने के लिए 20 केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं। राज्य सरकरों को पुलिस बल में वृद्धि और उसके आधुनिकीकरण के लिए निर्देश दिए गए। तटीय सुरक्षा को भी सुदृढ़ किया जा रहा है।
सवाल यह उठता है कि अभी तक जो कदम उठाए गए हैं, क्या वे पर्याप्त हैं? गृह मंत्री चिदंबरम ने पिछले दिनों मुंबई हमले की तीसरी बरसी पर एक साक्षात्कार में यह स्वीकार किया कि अभी बहुत कुछ करने को बाकी है। इसके अलावा जहां सरकार अपनी क्षमता में वृद्धि कर रही है, वहीं आतंकवादी भी नए-नए तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस संदर्भ में चिदंबरम ने दो बातों पर विशेष तौर से खेद प्रकट किया। पहला तो यह कि अभी तक नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर की स्थापना नहीं की जा सकी है। उन्होंने कहा कि ऐसी व्यवस्था अमेरिका, इंग्लैंड और फ्रांस में है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि अंततोगत्वा भारत में भी यह व्यवस्था हो जाएगी। दूसरे, उन्होंने पाकिस्तान द्वारा 26/11 के अपराधियों के विरुद्ध समुचित कार्रवाई न होने पर भी चिंता जताई। सभी जानते हैं कि लश्करे तैयबा, जो जमात-उद-दावा के नाम से भी जाना जाता है, ने 26/11 की घटना में अहम भूमिका निभाई थी, परंतु इसके मुखिया हाफिज मोहम्मद सईद को पाकिस्तान ने खुली छूट दे रखी है। वह जब-तब भारत के विरुद्ध विषवमन करता रहता है। चिदंबरम के अनुसार पाकिस्तान हाफिज सईद को स्टेट गेस्ट यानी राजकीय अतिथि की हैसियत से रखे हुए है। ऐसी हालत में पाकिस्तान से यह उम्मीद करना कि वह 26/11 के जिम्मेदार आतंकियों के विरुद्ध कोई ठोस कार्रवाई करेगा, बेकार है। दुर्भाग्य से आज चिदंबरम स्वयं विवादों में घिर गए हैं और अपने आपको कमजोर महसूस कर रहे हैं। आज उनके विरुद्ध जो माहौल बन गया है उसमें वह आतंकवाद के विरुद्ध होने वाली लड़ाई को कितना अच्छा नेतृत्व दे सकेंगे, इसमें भी संदेह है।
आतंकवाद की लड़ाई में हम पाकिस्तान को जितना भी दोष दें, हमें अपनी कमजोरी को भी स्वीकारना होगा। सच तो यह है कि आज की तारीख में हम आतंकवाद को कानूनी भाषा में आतंकवाद कहने में भी संकोच करते हैं। आतंकवाद से अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट यानी गैर कानूनी गतिविधियां निरोधक कानून के अंतर्गत निपटा जाता है। ऐसे तो चोरी और राहजनी भी गैर कानूनी गतिविधियां होती हैं। आतंकवाद को भी ऐसे अपराधों के साथ रखते हुए उससे निपटने का प्रयास हास्यास्पद है। ब्रिटेन, जिसे लोकतंत्र की जननी कहा जाता है, वहां भी आतंकवाद से निपटने का कठोर अधिनियम है। अमेरिका में तो और सख्त प्रावधान हैं, परंतु हमारे देश के राजनेता, अपना वोट बैंक बचाने के लिए उससे नरमी से निपटना चाहते हैं। नतीजा हमारे सामने है। 2010 में 13 फरवरी को पुणे में धमाका हुआ, जिसमें 17 लोगों की जानें गई। इसके बाद 7 दिसंबर को वाराणसी में विस्फोट हुआ, जिसमें दो व्यक्तियों की मृत्यु हुई। 2011 में अभी तक आतंकवाद की तीन गंभीर घटनाएं हो चुकी हैं जिनमें से दो तो दिल्ली हाईकोर्ट परिसर में हुईं और एक मुंबई में। मुंबई की घटना सबसे गंभीर थी, इसमें 26 व्यक्तियों की मृत्यु हुई और 123 घायल हुए। स्पष्ट है कि देश में आतंकवाद की घटनाएं कभी भी हो सकती हैं।
आतंकवाद के दो और पहलू भी हमारे लिए चिंता का विषय हैं-एक तो यह कि पंजाब में जो चिंगारी लगभग बुझ गई थी उसे फिर से पाकिस्तान हवा दे रहा है। आइएसआइ का बराबर प्रयास हो रहा है कि बब्बर खालसा, खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स और खालिस्तान टाइगर फोर्स फिर से पंजाब में हिंसक घटनाएं करें। अभी हाल में 12 अक्टूबर को अंबाला रेलवे स्टेशन के बाहर एक कार से पांच किलोग्राम विस्फोटक पदार्थ बरामद हुआ था। कहा जाता है कि दिल्ली में दीवाली के आसपास धमाके करने की साजिश रची गई थी। पंजाब में सतर्कता बरतनी होगी।
दूसरा चिंताजनक पहलू है आर्थिक आतंकवाद का। पाकिस्तान पिछले एक दशक से भारी मात्रा में देश में जाली नोट भेजता आ रहा है। यह नोट नेपाल, बांग्लादेश और मध्य-पूर्व से भारत भेजे जाते हैं। उद्देश्य है हमारी अर्थव्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने का। एक अनुमान के अनुसार इस समय 10 से 20 प्रतिशत तक जो नोट प्रचलन में हैं वे जाली हैं। करीब 6 लाख 10 हजार करोड़ रुपये के ऐसे नोट इस समय देश में हैं। दुर्भाग्य से इस समस्या से बड़ी नरमी से निपटा जा रहा है। वास्तव में कानून में बदलाव की आवश्यकता है। जिस व्यक्ति के पास ऐसे नोट पाए जाएं, कानूनन उसे प्रमाणित करने की आवश्यकता होनी चाहिए कि वह निर्दोष है। दंडात्मक प्रावधान भी बढ़ाने की आवश्यकता है। जो भी व्यक्ति दोषी पाए जाएं उन्हें कम से कम 10 वर्ष की जेल होनी चाहिए।
आखिर इस आतंकवाद से निपटा कैसे जाए? यह सवाल मुंह बाए खड़ा रहता है। इसका उत्तर कोई मुश्किल नहीं। पाकिस्तान को भारत में आतंकवाद की घटना करने से लाभ होता है। जो काम उसकी सेना नहीं कर सकती या जो काम वह अपनी सेना से नहीं करा सकता, वह लश्कर और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों से कराता है। हम कब तक अहिंसा की माला जपते रहेंगे और पाकिस्तान को गुलाब का फूल देते रहेंगे। बिना युद्ध किए हम भी पाकिस्तान को नाको चने चबवा सकते हैं। इसके लिए हमें अपने खुफिया संगठनों को केवल हरी झंडी देनी होगी। दुर्भाग्य से गुजराल के समय में सारे गोपनीय अभियान बंद कर दिए गए थे और बाद के प्रधानमंत्रियों ने भी उन्हें फिर से चलाने का कोई स्पष्ट निर्देश नहीं दिया। पाकिस्तान अंतर्विरोधों से ग्रस्त है। हम उस पर आसानी से चोट कर सकते हैं। जिस दिन हम यह तय कर लेंगे, उस दिन के बाद से पाकिस्तान के लिए आतंकवाद घाटे का सौदा होने लगेगा और जब पाकिस्तान को यह लगेगा कि आतंकवाद से फायदा कम और नुकसान ज्यादा है तो वह स्वत: इस खेल को बंद कर देगा। सवाल यह है कि क्या हमारे नेतृत्व को कूटनीति आती है या नहीं और राष्ट्रहित में उसमें आक्रमणकारी पर चोट पहुंचाने की इच्छाशक्ति है या नहीं?
लेखक प्रकाश सिंह सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ हैं
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