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परमाणु करार के दुष्परिणाम

जागरण मेहमान कोना
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brahmaअमेरिका के साथ तीन से भी अधिक वर्षो तक परमाणु समझौते को अंतिम रूप देने के लिए वार्ता की प्रक्रिया चली थी और प्रधानमंत्री ने पूरे देश को आश्वस्त किया था कि वह इस समझौते को अंतिम स्वीकृति तभी देंगे जब इसके समर्थन में व्यापक राजनीतिक सहमति हासिल कर ली जाएगी। वह कहते रहे कि एक बार प्रक्रिया पूरी होने दीजिए इसके बाद मैं इसे संसद के सामने लाऊंगा और इस पर सदन की स्वीकृति ली जाएगी। इतना सब कहने के बावजूद वह संसद को पूरी तरह अलग-थलग रखते हुए आगे बढ़ गए। देश इस बात का प्रत्यक्ष गवाह है कि प्रधानमंत्री ने राजनीतिक सहमति बनाने की कोशिश करने की बजाय एकसूत्रीय कार्यक्रम के तहत किसी भी कीमत पर समझौते को आगे बढ़ाया। इस तरह का उत्साह दिखाने का परिणाम यह हुआ कि भारत को समझौते से जो लाभ मिल सकता था वह न केवल खोना पड़ा, बल्कि अमेरिका को और अधिक कठिन शर्ते थोपने का मौका मिल गया। मनमोहन सिंह द्वारा देश को दिए गए तमाम आश्वासनों के बावजूद अब राष्ट्र अलग-थलग पड़ता नजर आ रहा है और परिणाम हमारे अनुकूल नहीं हैं। इसका कारण यह है कि परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह यानी एनएसजी संव‌िर्द्धत और परिष्कृत उपकरणों के हस्तांतरण पर अब रोक लगा रहा है जो कि अमेरिका के हाइड एक्ट की शेष शर्तो को पूरा करने वाला है। इससे साफ है कि भारत द्वारा किया गया परमाणु समझौता अब महंगा पड़ रहा है और जिन लाभों को इसके माध्यम से बढ़ा-चढ़ाकर मिलने की बात कही गई थी वे अभी तक भ्रम से ज्यादा कुछ नहीं हैं। अमेरिका के सहयोग से निर्मित तारापुर परमाणु संयत्र के मामले में ईधन आपूर्ति को लेकर खट्टा अनुभव मिलने के बावजूद भारत नए परमाणु समझौते में अमेरिका से परमाणु ईधन की अबाधित आपूर्ति सुनिश्चित कराने के लिए कानूनी रूप से आश्वासन पाने में नाकामयाब रहा है।


यदि 1970 की तरह अमेरिका एक बार फिर एकतरफा कार्रवाई करते हुए सहयोग को खत्म करता है तो हमारे पास इससे बचने का कोई भी उपाय नहीं है। वर्ष 2008 में यह प्रचार किया गया था कि परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह देशों ने भारत को स्वच्छ और अबाधित परमाणु ईधन आपूर्ति की छूट दे दी है, लेकिन यह एक भ्रम था। राजनीतिक रूप से चौतरफा घिरी मनमोहन सिंह सरकार ने जनता में अपनी छवि बचाए रखने के लिए इस प्रचार का सहारा लिया था। वास्तव में अमेरिका ने तभी यह साफ कर दिया था कि यह छूट सशर्त होगी। यह छूट तभी तक मिलेगी जब तक कि शर्तो का पालन होता रहेगा। उस समय भी भारतीय कूटनीतिज्ञों ने कहा था कि परमाणु परीक्षण और संव‌िर्द्धत व परिष्कृत परमाणु तकनीक के हस्तांतरण संबंधी बातें साफ नहीं हैं, जिस बारे में प्रधानमंत्री को स्थिति साफ करनी चाहिए। इस संदर्भ में परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह देशों में परमाणु प्रसार को लेकर कुछ सवाल भी उभरे थे। बावजूद इसके नई दिल्ली के लिए छूट को लेकर प्रयुक्त भाषा को राजनीतिक रूप से स्वादिष्ट बनाकर पेश किया गया। हालांकि इसकी आधारभूत शर्ते हाइड एक्ट के मुताबिक ही घालमेल की गईं थीं। भारत के साथ खुले नागरिक परमाणु व्यापार के निर्णय में छूट की शर्तो को कई परतों में बांधा गया था, जिनमें से कुछ स्पष्ट थीं तो कुछ अस्पष्ट। हालांकि इसमें भारतीय परमाणु परीक्षण पर प्रतिबंध को एनएसजी के दिशानिर्देश से संदर्भित किया गया था। इसमें अनुच्छेद 16 के तहत परमाणु परीक्षण के परिणामों को शामिल किया गया है, जबकि इस गाइडलाइन के अनुच्छेद 6 और 7 में संवेदनशील तकनीक से जुड़ी शर्तो को शामिल किया गया है।


यह अनुच्छेद एक अल्पकालिक कदम के तौर पर संव‌िर्द्धत और परिष्कृत उपकरणों व संवेदनशील तकनीक के व्यापार को प्रतिबंधित करने के लिए लागू होते हैं जब तक कि एनएसजी इन पर औपचारिक प्रतिबंध नहीं लगा देता। पिछले सप्ताह औपचारिक प्रतिबंध की घोषणा कर दी गई। इसका प्रभाव भारत पर पड़ना तय है, क्योंकि हाइड एक्ट के प्रतिबंध भारत के संव‌िर्द्धत और परिष्कृत उपकरणों के हस्तांतरण और भारी जल उपकरणों पर लागू होते हैं। ये प्रावधान बहुराष्ट्रीय अथवा अमेरिकी निगरानी प्रणाली के बावजूद लागू होते हैं। यह भारत-अमेरिका के बीच हुए 123 एग्रीमेंट पर भी सवाल खड़े करता है जिसमें संव‌िर्द्धत और परिष्कृत एवं भारी जल उपकरणों के हस्तांतरण को यह कहकर अलग रखा गया था कि ये दोनों देशों का विषय है, जिन पर इनके कानून के मुताबिक विनियामक और लाइसेंस नीतियां लागू होती हैं। यहां तक कि भारत-फ्रांस और भारत-रूस के बीच हुए नागरिक परमाणु समझौते में भी संव‌िर्द्धत और परिष्कृत एवं भारी जल उपकरणों के हस्तांतरण को सहयोग के दायरे में शामिल नहीं किया गया है। एनएसजी द्वारा लगाया गया प्रतिबंध एक अन्य आधारभूत सच्चाई को भी सामने लाता है।


भारत हाइड एक्ट, 123 एग्रीमेंट और आइएईए के सुरक्षा समझौतों से बंधा हुआ है। सैन्य मामलों में परमाणु क्षमता से संपन्न होने के बावजूद भारत के साथ गैर परमाणु हथियार वाले राष्ट्र के तौर पर व्यवहार किया जाता है। इस कारण ऐसे राष्ट्रों पर परमाणु हथियारों के गैर-प्रसार वाली शर्ते लागू होती हैं, जबकि एनपीटी पर हस्ताक्षर न करने वाले देशों पर अतिरिक्त दंड प्रावधान भी लागू होते हैं। ताजा प्रतिबंध नई दिल्ली की उस पहेली का भी खुलासा करते हंै जिसके मुताबिक सरकार ने स्वच्छ और बिना शर्त एनएसजी से छूट मिलने की बात कही थी। मनमोहन सिंह ने देशवासियों को आश्वासन देकर उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी थी।


इस संदर्भ में एक दूसरा तथ्य यह है कि एक अक्टूबर, 2008 को अमेरिकी कांग्रेस ने जिस समझौते की पुष्टि की वह प्रधानमंत्री द्वारा 17 अगस्त, 2006 को संसद में देश को दिए गए आश्वासन से अलग था। भारत-अमेरिका के बीच हुए परमाणु सहयोग स्वीकृति और अप्रसार वृद्धि अधिनियम (एनसीएएनईए)में साफ किया गया है कि 123 एग्रीमेंट हेनरी जे हाइड एक्ट का अतिक्रमण कर सकता है। इसके अलावा इसमें कहा गया है कि अमेरिका द्वारा परमाणु ईधन की आपूर्ति एक राजनीतिक प्रतिबद्धता है न कि कानूनी और यह समझौता तब कुछ नहीं कर सकता यदि अमेरिका सहयोग बंद कर दे। अंतिम समझौता अमेरिका को विशेष अधिकार देता है जिसमें भारत की केवल जरूरतों की ही चर्चा की गई है। यह कहना गलत न होगा कि समझौता मनमोहन सिंह सरकार के घोटालों, तोड़े गए वादों, गैर जनजवाबदेहिता, कुव्यवस्था और उसके छद्म आवरण की सच्चाई को ही बताता है।


ब्रहमा चेलानी सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं.


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