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अन्ना हजारे ने महंगाई का कारण भ्रष्टाचार को बताया है। पिछले दिनों संसद में भी महंगाई को लेकर काफी शोर-शराबा हुआ था। पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने भी कहा कि महंगाई भ्रष्टाचार के कारण बढ़ी है। जब महंगाई पर तत्काल काबू पाने की जरूरत है तो सरकार कभी पेट्रोल के दाम तो कभी ब्याज की दरें बढ़ा देती है। पिछले 18 महीनों में ग्यारह बार ब्याज की दरों में बढ़ोतरी की गई है। अब स्थिति यह है कि महंगाई के कारण आम आदमी का जीना मुश्किल हो गया है। सांसदों ने तो अपने वेतन भत्ते और निधि को बढ़ाकर अपना कल्याण कर लिया है। सरकारी कर्मचारियों का भी महंगाई भत्ता सात फीसदी बढ़ा दिया, लेकिन देश की बाकी जनता कैसे जिए इस बारे में सरकार ने आखिर क्या सोचा है? आम आदमी की आमदनी बढ़ नहीं रही है लेकिन उस पर लगने वाले करों का भार लगातार बढ़ रहा है। सरकार के मंत्री और अधिकारी जिस तरह के घपले-घोटाले कर रहे हैं उससे वह अपने को ठगी हुई महसूस कर रही है।
भ्रष्टाचार राजकाज का जिस तरह से हिस्सा बन गया है उसे रोकने के लिए अभी तक कोई कारगर उपाय नहीं किया गया है। इससे जनता में मंत्रियों और सांसदों के खिलाफ संदेह गहरा रहा है, क्योंकि उनकी संपत्ति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है और जनता महंगाई की मार से कराह रही है। भ्रष्टाचार राजनीतिक सत्ता के शिखर पर पहुंच कर अब देश की जनता को ही मुंह चिढ़ा रहा है। जिन लोगों पर इसे रोकने की जिम्मेदारी है वे बड़ी बेशर्मी से अपने-अपने नेताओं का बचाव करते हैं। राष्ट्रमंड़ल खेलों की बात हो, पीजे थॉमस की नियुक्ति का मामला हो अथवा 2जी स्पेक्ट्रम की बात सरकार की कोताही सामने आई। इतना ही नहीं कांग्रेस का अपने मंत्रियों का बचाव भी शर्मनाक उदाहरण है। भ्रष्टाचार के मामले में कांग्रेस सहित सभी पार्टियों का रवैया एक जैसा ही है। कर्नाटक में भाजपा ने येद्दयुरप्पा और रेड्डी बंधुओं का बचाव करके साबित कर दिया है कि भ्रष्टाचार के मामले में सब एक जैसे हैं। क्षेत्रीय दलों ने तो पहले से ही भ्रष्टाचार के कीर्तिमान स्थापित कर रखे हैं। वास्तव में हमारी सभी समस्याओं की जड़ भ्रष्टाचार ही है।
यूपीए की सरकार यह दावा कर रही है कि वह देश का समावेशी विकास कर रही है, लेकिन महंगाई जिस रफ्तार से बढ़ रही है उससे देश के गरीब लोगों की आमदनी भी बाजार के जरिये बड़ी कंपनियों के पास पहुंच रही है। महंगाई पर नियंत्रण करना है तो जमाखोरी और मुनाफाखोरी पर लगाम जरूरी है। पर इसके लिए न यूपीए तैयार है और न विपक्षी दलों की राज्य सरकारें कोई कदम उठाना चाहती हैं। भ्रष्ट नेता ही जमाखोरी और मुनाफाखोरी को बढ़ावा दे रहे हैं और वे इस कमाई में हिस्सेदार हो गए हैं। सरकार अरबों-खरबों की योजनाएं चलाकर भी लोगों का पूरा कल्याण नहीं कर सकती, क्योंकि भ्रष्टाचार के कारण उसकी नीतियां कभी सफल नहीं हो सकती हैं। आज कोई योजना या कार्यक्रम ऐसा नहीं हैं जिसमें भ्रष्टाचार नहीं है।
2जी स्पेक्ट्रम, कॉमनवेल्थ गेम्स से लेकर मनरेगा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन तक तमाम योजनाएं भ्रष्टाचार की गिरफ्त में हैं। ऐसा नहीं है कि भ्रष्टाचार दूसरे देशों में नहीं है, लेकिन वहां भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों को कड़ी सजा मिलती है। कुछ लोगों को तो फांसी पर भी लटकाया गया है। हमारे यहां जिस बेशर्मी से देश के राजनेता भ्रष्ट मंत्रियों और अधिकारियों का बचाव करते नजर आते हैं उसकी मिसाल खोजनी मुश्किल है। राज्यों के लोकायुक्तों और कैग की रिपोर्ट सुबूत है कि किस तरह से जनता के धन की बंदरबाट और लूट हो रही है। उत्तर प्रदेश हो या कर्नाटक अथवा महाराष्ट्र सब जगह सार्वजनिक धन के दुरुपयोग की शिकायतें हैं, लेकिन महंगाई और भ्रष्टाचार पर राजनीतिक दल शायद ही कभी विलाप करते हैं। यूपीए सरकार के सत्ता संभालने के बाद से महंगाई के मुद्दे पर संसद में कम से कम दस बार चर्चा हो चुकी है, लेकिन इन चर्चाओं का कुछ खास नतीजा नहीं निकला। महंगाई की मार से आम आदमी को फिलहाल बचाने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा।
निरंकार सिंह स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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