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बाधाओं के बावजूद बढ़ती हिंदी

जागरण मेहमान कोना
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सूचना क्रांति के इस युग में हिंदी के प्रति राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती रुचि को सुखद संकेत के रूप में देख रहे हैं विश्वनाथ कैलखुरी शास्त्री


हिंदी प्राचीन समय से ही हमारे बहुभाषी संपूर्ण भारत की सपर्क भाषा रही है। देश की चार दिशाओं में स्थित चारधामों एव कुंभ पर्व पर आने वाले करोड़ों तीर्थयात्री एव सत-महात्मा हिंदी में ही अपने भाव संप्रेषित करते हैं। हमारे सविधान में हिंदी को अचानक राजभाषा का स्थान प्राप्त नहीं हुआ है। इसके पीछे उसका एक गरिमापूर्ण इतिहास रहा है। स्वतत्रता आदोलन के दौरान राष्ट्रभाषा की परिकल्पना प्राय: सभी राष्ट्रीय नेता एव विद्वान करते रहे हैं, किंतु राष्ट्रपिता महात्मा गाधी ने राष्ट्रभाषा के महत्व को गभीरता एव दूरदृष्टि से समझा और इसीलिए उन्होंने हिंदी की सार्वदेशिक व्याप्ति एव भाषाई विशिष्टता को देखते हुए हिंदी को स्वदेशी आदोलन का एक हथियार बनाया। उन्होंने स्वय प्रयत्नपूर्वक हिंदी सीखी। उनका कहना था कि विभिन्न प्रांतों के पारस्परिक सबधों के लिए हम हिंदी सीखें। उन्होंने दक्षिण में हिंदी शिक्षण का अभियान चलाया और उस दौर में दक्षिण में लाखों लोगों ने हिंदी सीखी। उनके प्रयास से ही 1925 में कानपुर अधिवेशन में कांग्रेस की अखिल भारतीय स्तरीय कार्यवाही हिंदी में चलाए जाने का प्रस्ताव पारित किया गया था।


उस दौर में देश के सभी क्षेत्रों के महापुरुषों, क्रांतिकारियों एव देशभक्तों ने राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने के लिए हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप प्रचारित करने का प्रयत्न किया था। उसी राष्ट्रीयभाव से हमारी सविधान सभा में 26 सितबर 1949 को हिंदीतर भाषी सदस्यों के बहुमत से हिंदी को सविधान में राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ था। तभी से प्रतिवर्ष 14 सितबर हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। सविधान के अनुसार देवनागरी में लिखित हिंदी सघ की राजभाषा होगी तथा शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप होगा तथा अनुच्छेद 343 में यह प्रावधान किया गया था कि सविधान के लागू होने के समय से 15 वर्ष की अवधि तथा अर्थात 25 जनवरी 1965 तक सघ के सभी सरकारी कार्यो के लिए पहले की भाति अंग्रेजी का प्रयोग किया जाता रहेगा। यह देश का दुर्भाग्य है कि स्वतत्रता आदोलन के दौरान देशवासियों में राष्ट्रीय एकता एव राष्ट्र प्रेम की जो उत्कट भावना थी वह धीरे-धीरे क्षुद्र स्वार्थ एव क्षेत्रीयता की सकीर्ण भावना के कारण क्षीण होने लगी। हिंदी भाषियों के हिंदी के प्रति अतिशय उत्साह एव दक्षिण में हिंदी विरोधी आदोलन के कारण राजभाषा अधिनियम 1963 पारित किया गया, जिसने हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी के प्रयोग की निरंतरता को बढ़ा दिया।


सविधान के अनुच्छेद 351 में हिंदी के विकास का उत्तरदायित्व सघ सरकार को सौंपा गया है। इसके अनुपालन में भारत सरकार ने हिंदी के विकास के लिए वे सभी प्रयास किए हैं, जिससे राजभाषा के रूप में केंद्रीय सरकार का सारा कामकाज हिंदी में किया जा सके। शब्दावली, नियमों, अधिनियमों, आदेशों, प्रारूपों, परिपत्रों एव सभी दस्तावेजों के आज हिंदी अनुवाद उपलब्ध हैं। बड़ी सख्या में केंद्र सरकार के कार्यालयों एव उपक्रमों में राजभाषा कर्मी पदस्थापित किए गए हैं। सूचना क्रांति के इस दौर में बढ़ते कंप्यूटरीकरण को देखते हुए कंप्यूटर पर हिंदी में कार्य करने की सुविधा को बढ़ाने के लिए सूचना एव प्रौद्योगिकी विभाग तथा राजभाषा विभाग द्वारा पर्याप्त प्रयास किए जा रहे हैं। इंटरनेट पर भी आज हिंदी लोकप्रिय होती जा रही है। हिंदी के वेब पोर्टल समाचार, साहित्य, व्यापार, ज्योतिष, सूचना प्रौद्योगिकी आदि की जानकारी सुलभ करा रहे है। हिंदी को विश्व भाषा के रूप में सक्षम बनाने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा वर्धा में स्थापित किए गए महात्मा गाधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय विदेशों में हिंदी के अंतरराष्ट्रीय स्वरूप को विकसित करने के लिए सचेष्ट है। विश्वविद्यालय ने नई वैश्विक व्यवस्था के अनुरूप विषयों का चयन किया है। विश्वविद्यालय ने हिंदी के पाठकों एव अध्येताओं के लिए हिंदी साहित्य के एक लाख पृष्ठ अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध करा दिए हैं तथा इसका विस्तार जारी है। अर्थजगत में एक महाशक्ति के रूप में उदीयमान भारत के उज्ज्वल भविष्य को देखते हुए विदेशों में हिंदी प्रशिक्षण का प्रचार-प्रसार हो रहा है। हाल ही में हिंदी को आस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया है। अमेरिका की विख्यात पेनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी ने एमबीए के छात्रों को हिंदी का दो वर्षीय कोर्स अनिवार्य कर दिया है। दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश में हिंदी की यह स्थिति बता रही है कि आने वाले दिनों में विश्व में हिंदी की क्या स्थिति होगी।


हिंदी के प्रचार-प्रसार में हिंदी फिल्मो, टेलीविजन एव पत्र-पत्रिकाओं का विशेष योगदान है। हिंदी क्षेत्र की कथा, गाथा, रस्म रिवाज, परिधान एव गीत सगीत के माधुर्य ने उसे हिंदी के मनोरंजन चैनलों के माध्यम से न केवल भारत में, अपितु पूरे विश्व में पहुंचा दिया है। बॉलीवुड की तो प्रारभ से ही हिंदी के प्रचार, प्रसार एव उसे लोकप्रिय बनाने में महती भूमिका रही है। देश के नक्शे में शायद ही कोई ऐसी जगह बची है जहां हिंदी फिल्में या हिंदी गाने न पहुंचते हों। हिंदी स्वय अपने सख्या बल एव भारतीय सस्कृति की सवाहिका की शक्ति पर विस्तार पा रही है। अंग्रेजी की चकाचोध में हिंदी ज्ञान उपेक्षित होते जा रहा है। वर्तमान परिदृश्य में अंग्रेजी का ज्ञान होना आवश्यक है, किंतु उसका अंधानुकरण घातक है। विश्व में महाशक्ति के रूप में उभरते भारत की राजभाषा हिंदी अभी तक सयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा नहीं बन पाई हैं, जबकि वह सख्या बल के अनुसार विश्व की तीसरी भाषा है। दुखद यह है कि अभी तक वह हिंदी प्रदेशों की उच्च शिक्षा तथा अनुसंधान सस्थानों की भाषा नहीं है। अत: हिंदी को समस्त ज्ञानवाहिनी के रूप में विकसित करने पर भारत सरकार को पूर्ण राष्ट्रभावना के साथ प्रयास करना होगा। तभी वह सही अर्थो में राजभाषा एव विश्वभाषा बनने में समर्थ होगी।


लेखक विश्वनाथ कैलखुरी शास्त्री आयकर विभाग में सहायक निदेशक, राजभाषा रह चुके हैं


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