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आइपीएल सीजन-5 की शुरुआत जब हुई तो एक साथ कई आशंकाएं थी। क्या आइपीएल का जादू कायम रह पाएगा? क्या ट्वेंटी-20 क्रिकेट का रोमांच आम दर्शकों को जोड़ पाएगा? भारतीय क्रिकेट टीम के एक साल के भीतर दो विदेशी दौरों पर मिली करारी हार से क्रिकेट के प्रशंसकों का मोहभंग हो चुका था। खास बात यह भी थी कि ज्यादातर प्रशंसकों को यह लगने लगा था कि भारतीय टीम की हार की सबसे बड़ी वजह तो आइपीएल ही है। ऐसे में आइपीएल के प्रति लोगों का भरोसा बना रहेगा या नहीं। यह सबसे बड़ा सवाल था। दर्शकों के भरोसे से जुड़ा एक और पहलू था। आइपीएल की टीमें इस बार काफी बदली हुई थीं। पहले जो टीम के ऑयकन प्लेयर हुआ करते थे, वे अब दूसरी टीमों की कप्तानी करने वाले थे। तो जो स्थानीय पहचान के चलते दर्शक अपनी अपनी टीमों से जुड़े थे, उनका क्या होगा। यह सवाल भी बेहद अहम होने वाला था। बहरहाल, इन तमाम आशंकाओं के बीच आइपीएल सीजन-5 की रंगारंग शुरुआत हुई। चेन्नई में हुए समारोह में बॉलीवुड के दिग्गज भी जुटे। सबकुछ चकाचौंध करने वाला था, लेकिन पहला मैच ही लो स्कोरिंग साबित हो गया। पिछली बार की चैंपियन चेन्नई सुपर किंग्स की टीम 20 ओवरों तक नहीं टक सकी और महज 112 रनों पर सिमट गई। यह बड़ा झटका था।
आइपीएल जैसे किसी भी आयोजन के लिए पहले मैच का हाईवोल्टेज होना बहुत जरूरी था। वह नहीं हो पाया। दूसरा मैच तो और भी लो स्कोरिंग रहा। 100 रन बनाने वाली टीम मैच जीत गई। तीसरे मैच में मुंबई इंडियंस 130 रन भी नहीं बना सकी। तो जिस टूर्नामेंट को मारामार क्रिकेट के नाम पर जाना जाता रहा, वह पहले तीन दिन में पिट गया। इसने इस टूर्नामेंट का दोहरा नुकसान कर दिया। एक तो इसके दर्शक कम हो गए। टीआरपी गिरी तो इस टूर्नामेंट के टेलीविजन प्रसारक के स्पांसर्स भी कम हो गए।
भारतीय बाजार के बड़े स्पांसर पहले से ही आइपीएल सीजन-5 को लेकर संभल कर चल रहे थे और पहले तीन मुकाबलों ने उनकी आशंका बढ़ा दी है। जब यह सब हुआ तो आइपीएल ही सवालों के घेरे में आ गया। आइपीएल को लेकर पहले से ही तमाम शिकायतें थीं। खिलाडि़यों पर पैसे को लेकर देश के बदले क्लब पर तरजीह देने का आरोप था। पैसे के लालच में खिलाड़ी अपने फिटनेस को नजरअंदाज कर लगातार खेलते रहने की कोशिश करते थे। इस पर यह भी आरोप था कि इसने खिलाडि़यों को तकनीकी तौर पर कमजोर बनाया है। इस फॉरमेट के सुपरस्टारों में टेस्ट क्रिकेट खेलने का दम मौजूद नहीं है। अचानक से ऐसी शिकायतें भी बढ़ गई, लेकिन अपने यहां एक प्रवृति यह भी है कि झटके से किसी को खारिज भी कर दिया जाता है और झटके से ही किसी को सिर आंखों पर बिठा लिया जाता है। आइपीएल के पहले सीजन की कामयाबी ने इसे खेल की दुनिया का सबसे बड़ी ओपनिंग बताया गया था। इसकी ब्रैंड वैल्यू अरबों डॉलर में बताई जाने लगी थी। अब इस बारे में कोई बात नहीं कर रहा। इसका मतलब यह नहीं है कि आइपीएल एक टूर्नामेंट के तौर पर पिट चुका है। हमें देखना चाहिए कि आइपीएल कोई खराब फॉरमेट या टूर्नामेंट नहीं है।
अगर ऐसा होता तो दुनिया भर के देशों में इसकी नकल की बात नहीं की जाती। अगर यह टूर्नामेंट औसत दर्जे का होता तो दुनिया भर के आला दर्जे के खिलाड़ी इसमें शिरकत करने को लालायित नहीं होते। दरअसल, यह एक ऐसा मंच है, जिसने बड़े स्तर पर नए खिलाडि़यों को मौका दिया। ऐसा भी नहीं है कि इस बार आइपीएल की टीवी रेटिंग धड़ाम हो चुकी है। वह कम जरूर हुई है, लेकिन इतनी कम नहीं कि उसके आधार पर आइपीएल के भविष्य को अंधकारमय बता दिया जाए। अगर आइपीएल को इस बार टीवी पर दर्शक नहीं मिल रहे हैं तो इसमें कसूर आइपीएल का नहीं है। यह भारतीय क्रिकेट के प्रति लोगों की उदासीनता है। यह उदासीनता तभी दूर होगी, जब क्रिकेट का रोमांच बढ़ेगा। बीते दो सप्ताह के आइपीएल के मुकाबले बता रहे हैं कि क्रिकेट का रोमांच बढ़ रहा है। इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि इस सीजन में अभी ही चार मैच आखिरी गेंद पर जाकर समाप्त हुए हैं, जबकि इससे पहले 2008 और 2009 में पूरे सीजन की समाप्ति के बाद तीन-तीन मैच ही आखिरी गेंद पर नतीजे तक पहुंचे थे। इस लिहाज से देखें तो उम्मीद अभी भी बाकी है। आइपीएल का बना रहना ही भारतीय क्रिकेट के हित में होगा। हां, यह जरूर है कि इसमें भी ग्लैमर और पैसे का जोर कम हो और क्रिकेट के रोमांच का जोर बढ़े। भारतीय क्रिकेट बोर्ड को इसका ध्यान गंभीरता से रखना होगा।
इस आलेख के लेखक प्रदीप कुमार हैं
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