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अब तक चार आइपीएल हो चुके हैं। इन चारों में दर्शकों की भागीदारी बेहतर रही। पर इस बार यानी आइपीएल सीजन-5 को लेकर लोगों में कोई खास उत्साह नहीं है। दूसरी ओर आइपीएल की ब्रांड वैल्यू में भी कमी आई है। मीडिया पर छाने वाले विज्ञापनों की आवक भी कम हुई है। इन बातों को देखते-समझते हुए यही कहा जा सकता है कि इस बार दर्शकों में आइपीएल को लेकर कोई विशेष उत्साह नजर नहीं आ रहा है। कहा जाता है कि किसी भी चीज की अति हमेशा बुरी होती है। कोई चार साल पहले आइपीएल को लेकर दर्शकों की तरफ से काफी रिस्पांस मिला था। आइपीएल शुरू होने के पहले ही अखबार और टीवी इसके विज्ञापनों से लद जाते थे। मैच के दौरान तो सिनेमा घरों में सन्नाटा छा जाता था। आइपीएल के चलते नई फिल्में भी रिलीज नहीं होती थीं, लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है। बालीवुड को भी आइपीएल का भय नहीं है। इसीलिए एजेंट विनोद और हाउसफुल-2 भी प्रदर्शित हो गई। इसके बाद छह अपै्रल को टाइटैनिक का थ्रीडी संस्करण रिलीज हो रहा है। संभव है, उस दिन मैदान खाली रहें और सिनेमाघरों में भीड़ उमड़ पडे़। टीवी पर विज्ञापन देने वाली कंपनियों में भी उत्साह दिखाई नहीं दे रहा है। आइपीएल दर्शकों के उत्साह में कमी आने का सबूत है टीआरपी।
फटाफट क्रिकेट का मनोरंजक मंच – आईपीएल का पंच
आइपीएल के तीसरे सीजन में उसकी टीआरपी 5.2 थी, चौथे सीजन में वह घटकर 3.9 पर पहुंच गई। इस बार इसमें और कमी आने का अनुमान है। आइपीएल के प्रसारण का अधिकार प्राप्त करने वाली कंपनी को विज्ञापनों का स्लॉट बेचने और प्रायोजक खोजने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। कुछ इसी तरह की परेशानी आइपीएल चार के समय भी एसोसिएट स्पॉन्सर और मीडिया स्पॉन्सर को ढूढ़ने में भी आई थी। आइपीएल ने वह ख्याति प्राप्त नहीं की, जो इंग्लिश प्रीमियर लीग और विंबलडन को प्राप्त है। संभवत: इसके पीछे आइपीएल का नाम घोटालों से जुड़ जाना हो सकता है। आखिर आइपीएल की एक बड़ी हस्ती ललित मोदी को कौन नहीं जानता, जिनके कारण इसकी काफी फजीहत हुई थी। आइपीएल के लिए विज्ञापन देने वाली कंपनियां भी निरुत्साहित हैं। गोदरेज जैसी कंपनी ने भी इसके लिए इस बार अपने विज्ञापन देने से इनकार कर दिया। उसे लग रहा है कि इस स्पर्धा की कीमत आवश्यकता से अधिक आंकी गई है। अब तक इसके लिए सबसे अधिक विज्ञापन देने वाली कंपनी एलजी ने भी इस बार आइपीएल से खुद को दूर रखा है। उसे भी यही लगता है कि आइपीएल में दिए जाने वाले विज्ञापनों के लिए जितना खर्च किया जाता है, उसका रिस्पांस उतना नहीं मिल पाता है। अब तक हर बार इसमें विज्ञापन की दर बढ़ती रहती थी, पर इस बार दर बढ़ाने की हिम्मत कोई नहीं कर पा रहा है। पिछले साल दस सेकंड के स्लॉट के लिए 3.3 लाख रुपये वसूले जाते थे। इस बार इसकी दर में दस प्रतिशत की कमी होने की संभावना है।
हालांकि प्रसारण कंपनी ने विज्ञापनों की दरों में कमी करने से इनकार किया है, पर परदे के पीछे से बार्गेनिंग जारी है। आइपीएल में मुनाफा भी लगातार घट रहा है। इसे भले ही अभी स्वीकार न किया जा रहा हो, लेकिन इस बार अगर दर्शकों की संख्या कम होती है तो उसे स्वीकारना ही होगा। इस कारण इस बार अमिताभ बच्चन, प्रभु देवा, सलमान खान, प्रियंका चोपड़ा, अमेरिकी पॉप सिंगर केटी पैरी जैसी शख्सियत की मदद लेनी पड़ी। इन हस्तियों के कारण प्रारंभिक मैचों में भीड़ देखी जा सकती है। 2008 में जब आइपीएल की शुरुआत हुई थी, तब सभी टीमों के साथ पांच साल का करार किया गया था। इस साल यह करार खत्म हो रहा है। आइपीएल के मुख्य प्रायोजक डीएलएफ का भी करार इस सीजन में खत्म हो रहा है। डीएलएफ को यह करार 5 करोड़ डॉलर में मिला था। अब यह दूसरे करार के लिए सामने आती है या नहीं, यह देखना है। मैचों को टीवी पर दिखाने का करार भी इसी साल खत्म हो रहा है। ये सारी कंपनियां अगली बार के लिए सामने आती हैं या नहीं, इसी पर आइपीएल का भविष्य निर्भर करता है। बहरहाल, आज की युवा पीढ़ी फेसबुक और ट्विटर पर घंटों समय गुजारती है। इस पीढ़ी को किसी और मनोरंजन की आवश्यकता ही नहीं है। ऐसे में आइपीएल कहां तक युवाओं की मनोरंजन की भूख को शांत कर पाता है, यही देखना है।
लेखक महेश परिमल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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